जब जनता की आवाज ही पोर्टल (igrs) पर ही कैद होजाय

 



आईजीआरएस: शिकायत निवारण या जनता को बहलाने का नया जाल?
मनोज श्रीवास्तव,लखनऊ


बस्ती, उत्तरप्रदेश 
प्रदेश में आईजीआरएस (Integrated Grievance Redressal System) को जनता की आवाज सुनने और समस्याओं का समाधान करने के लिए बनाया गया था। लेकिन हकीकत यह है कि यह प्रणाली आज जनता के आक्रोश का अड्डा बन चुकी है।

बस्ती जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष राजेन्द्र तिवारी का मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री को भेजा गया पत्र इस पूरी सच्चाई को उजागर करता है। लाखों शिकायतें हर रोज इस पोर्टल पर दर्ज होती हैं, लेकिन उनका हाल वही है जो सरकारी दफ्तरों में फाइलों का होता है – धूल फांकना और अटक जाना।

जनता को भ्रम में डालने के लिए पोर्टल पर दिखा दिया जाता है कि शिकायत निस्तारित हो गई, जबकि जमीनी हकीकत यह है कि समस्या जस की तस पड़ी रहती है। यानी आईजीआरएस शिकायत निवारण नहीं, बल्कि “शिकायत दबाने” का औजार बन गया है।

यह कैसी व्यवस्था है जिसमें शिकायतकर्ता यह तक नहीं जान पाता कि उसकी शिकायत किस टेबल पर पड़ी है और किस अफसर ने उसे क्यों रोक रखा है? यह पारदर्शिता नहीं, बल्कि सत्ता का अपारदर्शी खेल है।

सरकार को समझना होगा कि आईजीआरएस जैसी व्यवस्थाएँ जनता का विश्वास जीतने के लिए होती हैं, खोने के लिए नहीं। यदि यह हाल रहा तो लोग पोर्टल पर क्लिक करने के बजाय सड़क पर उतर कर अपनी आवाज उठाएँगे।

राजेन्द्र तिवारी ने सही कहा है – यदि व्यवस्था जनसुलभ और पारदर्शी नहीं बनी तो जनता का भरोसा कमजोर होगा। और जब जनता का भरोसा टूटता है, तो सत्ता की नींव भी हिल जाती है।

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