आईजीआरएस पोर्टल : शासन की प्राथमिकता बनाम जनता का भरोसाबस्ती, उत्तरप्रदेश
कलेक्ट्रेट सभागार में मंगलवार को आयोजित बैठक में जिलाधिकारी रवीश गुप्ता ने स्पष्ट कहा कि शासन की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक है आमजन की शिकायतों का त्वरित और गुणवत्तापूर्ण निस्तारण। अधिकारियों को यह भी निर्देश दिया गया कि वे केवल औपचारिकता न निभाएँ, बल्कि यह सुनिश्चित करें कि शिकायतकर्ता वास्तव में संतुष्ट हो। शासन की दृष्टि से यह कदम सकारात्मक है, लेकिन जनता के अनुभव से इसका दूसरा पहलू भी सामने आता है।जिसमें अनेक जिम्मेदार अधिकारी भी उपस्थित रहे.
पक्ष :
आईजीआरएस (Integrated Grievance Redressal System) पोर्टल आम नागरिकों के लिए एक सशक्त साधन है। अब शिकायत दर्ज कराने के लिए न तो अधिकारियों के चक्कर लगाने पड़ते हैं, न ही सिफारिशें खोजनी पड़ती हैं। जिलाधिकारी द्वारा विभागीय अधिकारियों को जवाबदेह ठहराना और समयसीमा के भीतर निस्तारण का आदेश देना निश्चित ही एक पारदर्शी प्रशासन की ओर कदम है।
विपक्ष :
लेकिन, व्यावहारिक धरातल पर तस्वीर उतनी उजली नहीं है। शिकायतकर्ता को यह तक मालूम नहीं होता कि उसकी शिकायत पर किस स्तर पर जांच हुई। और तो और, जिस विभाग या अधिकारी के विरुद्ध शिकायत दर्ज होती है, वही अपनी जांच रिपोर्ट तैयार कर देता है और मामला “निस्तारित” घोषित कर दिया जाता है। निस्तारण की गुणवत्ता का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि अधिकतर मामलों में शिकायतकर्ता को न्याय के बजाय औपचारिक उत्तर ही मिलता है। परिणामस्वरूप जनता के मन में यह धारणा गहराती जा रही है कि पोर्टल केवल आंकड़े सुधारने और शासन की नज़रों में “प्रथम” आने का साधन भर है।
असली सवाल :
यदि शिकायतकर्ता की संतुष्टि ही केंद्र में नहीं होगी, तो आईजीआरएस का असली मक़सद अधूरा रहेगा। शासन चाहे मुख्यमंत्री स्तर तक इसे अपनी उपलब्धि बताए, पर जनता की नज़रों में यदि भरोसा नहीं जमेगा तो पूरा प्रयास खोखला सिद्ध होगा।
निष्कर्ष :
आईजीआरएस की असली कसौटी यही है कि शिकायतकर्ता कहे – “मेरी समस्या वास्तव में हल हुई।” इसलिए जरूरी है कि निस्तारण में पारदर्शिता बढ़े, स्वतंत्र जांच व्यवस्था लागू हो और शिकायतकर्ता को पूरी प्रक्रिया की जानकारी स्पष्ट रूप से मिले। आईजीआरएस की सफलता शासन की निगाह में नहीं, बल्कि जनता की निगाह में प्रथम आने से ही तय है.