उत्तराखंड की तर्ज पर उत्तर प्रदेश में भी मदरसों का स्वरूप समाप्त होना चाहिए?
सत्येंद्र सिंह भोलू,बस्ती उत्तरप्रदेश
देश की एकरूप शिक्षा व्यवस्था हमेशा से बहस का विषय रही है। उत्तराखंड सरकार ने हाल ही में एक बड़ा निर्णय लेकर राज्य के मदरसों को बंद कर, सभी बच्चों को सामान्य बोर्ड से जोड़ने का काम शुरू किया। अब यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में भी ऐसा कदम उठाया जाना चाहिए?
उत्तर प्रदेश में लगभग 25,000 मदरसे संचालित हैं। इनमें से करीब 16,500 मदरसे मान्यता प्राप्त हैं, जबकि 8,449 मदरसे बिना मान्यता के पाए गए हैं। इन मदरसों में करीब 18 लाख छात्र शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। सरकार की रिपोर्टों के अनुसार, इनमें से कई मदरसे शिक्षा की आड़ में पारदर्शी नहीं हैं और इनका फंडिंग स्रोत भी संदेहास्पद पाया गया है।
समस्या कहाँ है? मदरसों का बड़ा हिस्सा केवल धार्मिक शिक्षा पर केंद्रित है, जिससे छात्र मुख्यधारा से कट जाते हैं। कई मदरसे बिना मान्यता व बिना पंजीकरण संचालित हो रहे हैं, जहाँ गुणवत्ता और पारदर्शिता पर सवाल हैं।सुरक्षा एजेंसियों की रिपोर्ट के अनुसार, कुछ मदरसे असामाजिक गतिविधियों और धार्मिक कट्टरता को भी बढ़ावा दे रहे हैं।बच्चों को राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुरूप आधुनिक विषयों – गणित, विज्ञान, इतिहास और तकनीकी शिक्षा से वंचित रखा जाता है।
क्यों आवश्यक है यूपी बोर्ड से जोड़ना?
- शिक्षा का एकीकरण – जब सभी बच्चे एक समान पाठ्यक्रम पढ़ेंगे, तो समाज में दूरी कम होगी।
- राष्ट्रीयता का सशक्तिकरण – बच्चों को भारत के साझा इतिहास, संविधान और आधुनिक विज्ञान से जोड़ा जा सकेगा।
- रोजगार अवसर – मुख्यधारा की शिक्षा मिलने पर छात्र प्रतियोगी परीक्षाओं और रोजगार में आगे बढ़ पाएंगे।
- पारदर्शिता और जवाबदेही – सभी संस्थान बोर्ड के नियमों के अधीन होंगे, जिससे अवैध गतिविधियों पर रोक लगेगी।
विरोध के तर्क
स्वाभाविक है कि इस प्रस्ताव का कुछ वर्गों से विरोध होगा। उनका तर्क होगा कि यह धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन है और अल्पसंख्यक अधिकारों पर चोट है। लेकिन यह ध्यान रखना होगा कि संविधान ने मौलिक अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्यों की भी बात की है। यदि शिक्षा की आड़ में अलगाव, कट्टरता और असहिष्णुता पनपे, तो यह देशहित में नहीं माना जा सकता।
उत्तराखंड का कदम एक नया मॉडल प्रस्तुत करता है। यदि उत्तर प्रदेश में भी इसी प्रकार मदरसों का स्वरूप समाप्त कर सभी छात्रों को यूपी बोर्ड से जोड़ा जाता है, तो यह न केवल समान शिक्षा व्यवस्था की दिशा में बड़ा कदम होगा, बल्कि आने वाली पीढ़ी को कट्टरता से बचाकर राष्ट्रीय एकता और आधुनिकता की ओर ले जाएगा।
आज जरूरत है कि सरकार आंकड़ों और तथ्यों के आधार पर ठोस निर्णय ले। क्योंकि अगर शिक्षा ही विभाजन और असहिष्णुता की जड़ बने, तो यह समाज और राष्ट्र दोनों के लिए घातक है।