अवैध “मड़वानगर टोलप्लाज़ा – जनता से खुलेआम लूट, जिम्मेदार कौन?” देश में व्यवस्था और कानून का राज केवल कागज़ों तक सीमित रह गया है। बस्ती जनपद के एनएच-28 पर स्थित मड़वानगर टोलप्लाज़ा इसका जीता-जागता उदाहरण है। राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) ने हाल ही में जिन टोलप्लाज़ाओं की आधिकारिक सूची जारी की है, उसमें इस टोलप्लाज़ा का नाम तक नहीं है। इसका सीधा मतलब है कि यह वर्षों से अवैध रूप से संचालित हो रहा था और वाहनों से करोड़ों रुपये की वसूली करता रहा। सवाल है कि यह लूट किसके संरक्षण में चल रही थी? क्या यह सरकार की शह थी? क्या प्रशासन की चुप्पी इसकी गवाही देती है? या फिर टोल माफिया ने राजनीतिक और प्रशासनिक मिलीभगत से जनता को लूटने का ठेका ले रखा था? यह सिर्फ बस्ती की समस्या नहीं है, बल्कि पूरे देश की व्यवस्था पर करारा तमाचा है। जनता के खून-पसीने की कमाई से जबरन वसूला गया पैसा आखिर गया कहां? किसके खाते में जमा हुआ? टोलप्लाज़ा पर आए दिन मारपीट और खून-खराबे की घटनाएं होती रहीं, लेकिन जिम्मेदारी तय करने वाला कोई नहीं मिला। जिन अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों का काम जनता को राहत देना था, वे ही मूकदर्शक बने रहे। अब जब यह खुलासा हो चुका है कि मड़वानगर टोलप्लाज़ा अधिकृत ही नहीं था, तो इसे तत्काल बंद कराना ही पर्याप्त नहीं होगा, बल्कि अब तक हुई पूरी वसूली की जांच कराई जाए और दोषियों को सख्त सजा दी जाए। यह सवाल केवल एक टोलप्लाज़ा का नहीं है, यह सवाल व्यवस्था, पारदर्शिता और जवाबदेही का है। अगर केंद्र सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार और राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण इस पर चुप रहते हैं तो यह उनकी मिलीभगत का सबूत माना जाएगा। जनता अब और धोखा नहीं खाएगी। प्रशासन और सरकार को स्पष्ट करना होगा कि— 1. इतने वर्षों तक यह अवैध टोलप्लाज़ा क्यों चल रहा था? 2. अवैध कमाई आखिर किसकी जेब में गई? 3. इस लूट और खून-खराबे के लिए जिम्मेदार कौन है? लोकतंत्र में जनता ही सर्वोपरि है। यदि उसकी गाढ़ी कमाई इस तरह लूटी जाती रही तो यह लोकतंत्र पर सबसे बड़ा धब्बा होगा। अब वक्त आ गया है कि मंत्रालय से लेकर स्थानीय प्रशासन तक हर जिम्मेदार व्यक्ति को कठघरे में खड़ा किया जाए और जनता को उसका हक दिलाया जाए।


संपादकीय
प्राधिकरण की लिस्ट से गायब मड़वानगर टोल

“मड़वानगर टोलप्लाज़ा – जनता से खुलेआम लूट, जिम्मेदार कौन?”

राजेंद्र नाथ तिवारी

देश में व्यवस्था और कानून का राज केवल कागज़ों तक सीमित रह गया है। बस्ती जनपद के एनएच-28 पर स्थित मड़वानगर टोलप्लाज़ा इसका जीता-जागता उदाहरण है। राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) ने हाल ही में जिन टोलप्लाज़ाओं की आधिकारिक सूची जारी की है, उसमें इस टोलप्लाज़ा का नाम तक नहीं है। इसका सीधा मतलब है कि यह वर्षों से अवैध रूप से संचालित हो रहा था और वाहनों से करोड़ों रुपये की वसूली करता रहा। सवाल है कि यह लूट किसके संरक्षण में चल रही थी?

क्या यह सरकार की शह थी? क्या प्रशासन की चुप्पी इसकी गवाही देती है? या फिर टोल माफिया ने राजनीतिक और प्रशासनिक मिलीभगत से जनता को लूटने का ठेका ले रखा था?
यह सिर्फ बस्ती की समस्या नहीं है, बल्कि पूरे देश की व्यवस्था पर करारा तमाचा है। जनता के खून-पसीने की कमाई से जबरन वसूला गया पैसा आखिर गया कहां? किसके खाते में जमा हुआ?

टोलप्लाज़ा पर आए दिन मारपीट और खून-खराबे की घटनाएं होती रहीं, लेकिन जिम्मेदारी तय करने वाला कोई नहीं मिला। जिन अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों का काम जनता को राहत देना था, वे ही मूकदर्शक बने रहे। अब जब यह खुलासा हो चुका है कि मड़वानगर टोलप्लाज़ा अधिकृत ही नहीं था, तो इसे तत्काल बंद कराना ही पर्याप्त नहीं होगा, बल्कि अब तक हुई पूरी वसूली की जांच कराई जाए और दोषियों को सख्त सजा दी जाए।

यह सवाल केवल एक टोलप्लाज़ा का नहीं है, यह सवाल व्यवस्था, पारदर्शिता और जवाबदेही का है। अगर केंद्र सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार और राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण इस पर चुप रहते हैं तो यह उनकी मिलीभगत का सबूत माना जाएगा।

जनता अब और धोखा नहीं खाएगी। प्रशासन और सरकार को स्पष्ट करना होगा कि—

  1. इतने वर्षों तक यह अवैध टोलप्लाज़ा क्यों चल रहा था?
  2. अवैध कमाई आखिर किसकी जेब में गई?
  3. इस लूट और खून-खराबे के लिए जिम्मेदार कौन है?

लोकतंत्र में जनता ही सर्वोपरि है। यदि उसकी गाढ़ी कमाई इस तरह लूटी जाती रही तो यह लोकतंत्र पर सबसे बड़ा धब्बा होगा। अब वक्त आ गया है कि मंत्रालय से लेकर स्थानीय प्रशासन तक हर जिम्मेदार व्यक्ति को कठघरे में खड़ा किया जाए और जनता को उसका हक है 



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