स्मार्ट मीटर की ‘तेजी’ और जनता का असंतोष
बस्ती, उत्तरप्रदेश
कौटिल्य शास्त्री
उत्तर प्रदेश में बिजली विभाग बड़े जोर-शोर से स्मार्ट मीटर लगाने का अभियान चला रहा है। यह तकनीकी क्रांति के नाम पर उठाया गया कदम है, जिसका उद्देश्य पारदर्शिता, ऑनलाइन मॉनिटरिंग और ऊर्जा की बचत बताया गया। लेकिन हकीकत यह है कि उपभोक्ता आज इन तथाकथित स्मार्ट मीटरों से सबसे ज्यादा परेशान है।
आम धारणा बन चुकी है कि यह मीटर ‘तेज़ भागता है’। जहां पहले किसी उपभोक्ता का मासिक बिल 1000 रुपये आता था, वही बिल अब तीन गुना से भी अधिक, यानी 3000 रुपये के पार जा रहा है। न तो उपभोग में कोई बड़ा अंतर आया है और न ही बिजली की खपत बढ़ी है, फिर अचानक इतनी बड़ी छलांग कैसे? उपभोक्ता इसे सीधा-सीधा ठगी और अन्याय मान रहा है।
सवाल यह है कि क्या स्मार्ट मीटर बिजली चोरी रोकने के लिए लगाए गए थे या आम जनता की जेब पर डाका डालने के लिए? गांव से लेकर शहर तक, बस्ती से लेकर लखनऊ तक यही शिकायत सुनाई पड़ रही है कि स्मार्ट मीटर भरोसे की जगह अविश्वास का प्रतीक बन गए हैं।
सरकार को समझना होगा कि उपभोक्ता आज सबसे कमजोर कड़ी है। बिजली बिल का बोझ वह चाहकर भी टाल नहीं सकता। अगर वही बोझ अनियंत्रित तरीके से, बिना पारदर्शिता के तीन गुना कर दिया जाएगा, तो उपभोक्ता कहाँ जाएगा? न शिकायतों का समाधान मिल रहा है, न कोई तकनीकी परीक्षण हो रहा है। विभागीय जवाब सिर्फ इतना कि “मीटर सही है”। आखिर उपभोक्ता की बात कौन सुनेगा?
यह स्थिति बेहद खतरनाक है। लोकतंत्र में जनता के असंतोष को हल्के में लेना सत्ता के लिए आत्मघाती हो सकता है। स्मार्ट मीटर का मुद्दा धीरे-धीरे जनता की नाराज़गी का बड़ा कारण बनता जा रहा है। सरकार को तुरंत पारदर्शी जांच करानी चाहिए, बिलों की तुलना और स्वतंत्र ऑडिट कराना चाहिए, और जहां उपभोक्ताओं से ज्यादा वसूली हुई है वहां समायोजन सुनिश्चित करना चाहिए।
स्मार्ट मीटर स्मार्ट लूट का प्रतीक न बनें, यह सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी है। यदि ऐसा नहीं हुआ तो उपभोक्ता का असंतोष आंदोलन में बदलेगा और इसका सबसे बड़ा नुकसान सरकार को ही भुगतना पड़ेगा।
👉 जनता बिजली चोरी रोकने और तकनीक के इस्तेमाल के खिलाफ नहीं है, लेकिन यह चाहती है कि तकनीक जनता के शोषण का हथियार न बने। सरकार को स्पष्टीकरण देना ही होगा — वरना यह ‘स्मार्ट मीटर’ उत्तर प्रदेश की राजनीति में असंतोष का नया ज्वालामुखी बन सकते हैं।
क्या आप चाहेंगे कि मैं इसे और ज्यादा आक्रामक शैली में, सरकार को सीधे चुनौती देते हुए लिख दूँ ताकि यह किसी अख़बार के अग्रलेख (एडिटोरियल) की तरह लगे?