RSS की शताब्दी: डॉ. हेडगेवार की विरासत और विश्व को सार्थक दिशा

 

राजेंद्र नाथ तिवारी,बस्ती, उत्तरप्रदेश                                       वैचारिकी    

आरएसएस की शताब्दी: डॉ. हेडगेवार की विरासत और विश्व को सार्थक दिशा देने की क्षमता, एक सदी की यात्रा का प्रारंभ!

आज, 7 सितंबर 2025 को, जब हम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की स्थापना के सौ वर्ष पूरे होने का उत्सव मना रहे हैं, तो मन में एक गहन भावना जागृत होती है। यह मात्र एक संगठन की शताब्दी नहीं, बल्कि एक विचारधारा की जयंती है जो भारत की आत्मा को जगाने वाली साबित हुई। 1925 की विजयदशमी पर नागपुर के एक छोटे से मैदान, विजयनगर में, डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने एक साधारण शाखा की शुरुआत की। उस दिन की घोषणा थी: "मैं आज संगठन स्थापना की घोषणा करता हूं।" नाम? वह तो एक साल बाद आया। गहन विचार-विमर्श के बाद, कई सुझावों जैसे 'भारत उद्धारक मंडल' के बीच 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ' चुना गया। स्थापना के ठीक एक वर्ष बाद, यह नाम पड़ा, जो आज करोड़ों स्वयंसेवकों की पहचान बन चुका है।
डॉ. हेडगेवार, जिनका जन्म 1 अप्रैल 1889 को हिंदू नववर्ष के दिन नागपुर में हुआ, एक ऐसे दूरदर्शी थे जिन्होंने हिंदू समाज की एकजुटता को भारत की शक्ति का मूल माना। उनका जीवन स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा था—कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन का आयोजन, असहयोग आंदोलन में भागीदारी, और ब्रिटिश जेल में एक वर्ष का कारावास। फिर भी, वे प्रचार से दूर रहे। उनकी संगठनात्मक क्षमता ने लाखों युवाओं को दिशा दी, जो आज तवांग से लेह, ओखा से अंडमान तक फैले हैं। RSS की शताब्दी पर, यह लेख न केवल भारत के परिवर्तन की कहानी कहेगा, बल्कि यह भी तर्क देगा कि RSS की विचारधारा—व्यक्ति निर्माण, समाज सुधार और राष्ट्रीय एकता—भारत ही नहीं, बल्कि विश्व को सार्थक दिशा दे सकती है। यह एक प्रेरणादायक यात्रा है, जो 2500 शब्दों में समेटने का प्रयास है।
डॉ. हेडगेवार: एक जीवन जो लाखों को प्रेरित करता रहा
डॉ. हेडगेवार का जन्म एक साधारण ब्राह्मण परिवार में हुआ, लेकिन उनका व्यक्तित्व असाधारण था। चिकित्सक बनने के बाद, उन्होंने राजनीति और समाज सुधार को अपनाया। अनुशीलन समिति और पुलिन बिहारी बोस जैसे क्रांतिकारियों से जुड़ाव ने उन्हें ब्रिटिश निगरानी में ला खड़ा किया। 1921 में असहयोग आंदोलन के दौरान गिरफ्तारी और जेल यात्रा ने उनकी दृढ़ता को कठगरे में परखा। लेकिन हेडगेवार का विश्वास था कि स्वतंत्रता केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक भी होनी चाहिए। यही सोच ने RSS को जन्म दिया।
उनका मुख्य उद्देश्य था: एक ऐसा समाज बनाना जो आंतरिक झगड़ों से मुक्त हो, जहां जाति, भाषा या क्षेत्र की दीवारें न हों। "हिंदू राष्ट्र" का उनका स्वप्न कोई संकीर्ण था नहीं; यह विविधता में एकता का प्रतीक था। हेडगेवार ने कहा था, "संघ का कार्य हिंदू समाज को संगठित करना है, ताकि वह अपनी शक्ति से भारत को मजबूत बने।" उनकी मृत्यु 1940 में हुई, लेकिन उनकी विरासत अमर हो गई। नरेंद्र मोदी जैसे नेता से लेकर अनगिनत स्वयंसेवक तक, सभी हेडगेवार से प्रेरित हैं।
पैतृक गांव कंदकुर्ती (तेलंगाना) की कहानी इसका जीता-जागता प्रमाण है। गोदावरी, हरिद्रा और मंजिरी नदियों के संगम पर बसा यह गांव, जहां हेडगेवार का पारिवारिक घर अब स्मारक है। वहां केशव बाल विद्या मंदिर चल रहा है, जहां 30% मुस्लिम छात्र पढ़ते हैं। जलील बेग जैसे अभिभावक कहते हैं, "यह स्कूल गुणवत्ता और समावेशिता प्रदान करता है।" रफिया जैसी छात्रा गाती है, "हिंद देश के निवासी, सभी हम एक हैं..." यह दृश्य RSS की समावेशी भावना को दर्शाता है—सबका साथ, सबका विकास।
हेडगेवार के स्वयंसेवक 'प्रचारक' के रूप में एक संन्यासी जीवन जीते हैं। भगवा वस्त्र न सही, लेकिन तपस्या का जीवन। वे मीडिया की चकाचौंध से दूर, ग्रामीणों की सेवा में लगे रहते हैं। यह जीवनशैली लाखों युवाओं को आकर्षित करती है, जो राष्ट्र की भलाई के लिए सब कुछ त्याग देते हैं। शताब्दी वर्ष पर, हेडगेवार की यह विरासत हमें याद दिलाती है कि सच्चा नेतृत्व प्रचार में नहीं, सेवा में है।
RSS का सेवा नेटवर्क: भारत के हर कोने में परिवर्तन
RSS की शक्ति उसके विचार में है, लेकिन उसका विस्तार उसके सेवा कार्यों में दिखता है। आज, संघ परिवार के संगठन एक लाख 70 हजार से अधिक सेवा परियोजनाएं चला रहे हैं। वनवासी कल्याण आश्रम अकेले 30 हजार परियोजनाएं संचालित करता है—छात्रावास, स्कूल, चिकित्सा केंद्र, महिलाओं की स्वावलंबन योजनाएं। उत्तर-पूर्व के मोकोकचुंग और चांगलांग से अंडमान के पोर्ट ब्लेयर तक, जनजातीय बच्चों को शिक्षा मिल रही है। विद्या भारती का नेटवर्क 25 हजार स्कूलों का है, जिसमें 2.5 लाख छात्र और 1 लाख शिक्षक हैं। लद्दाख के बर्फीले रेगिस्तान से राजस्थान की सीमाओं तक, यह शिक्षा क्रांति फैला रहा है।
जातिवाद के खिलाफ संघ की मूक क्रांति उल्लेखनीय है। संघ परिवार में सबसे अधिक अंतरजातीय विवाह होते हैं। उत्तराखंड के जौनसार बावर में दलितों को मंदिर प्रवेश दिलाने वाले स्वयंसेवकों को समर्थन मिला। राष्ट्रीय महासचिव सुरेश 'भैय्याजी' जोशी ने कहा, "सामाजिक न्याय स्वयंसेवक का कर्तव्य है।" स्वास्थ्य क्षेत्र में, अस्पताल, रक्त बैंक, नेत्र बैंक, थैलेसीमिया बच्चों के लिए केंद्र—सब संघ से प्रेरित हैं।
आपदा राहत में RSS हमेशा अग्रणी रहा। 2001 का भुज भूकंप, 2004 की सुनामी, 2013 की उत्तरकाशी-केदारनाथ त्रासदी, या 1999 की चरखी दादरी विमान दुर्घटना—स्वयंसेवक सबसे पहले पहुंचे। वे राहत ही नहीं, पुनर्वास भी करते हैं। भारत-म्यांमा सीमा के मोरेह गांव में स्कूल चलाने वाले स्वयंसेवक हेडगेवार की देन हैं। यह नेटवर्क न केवल भारत को मजबूत कर रहा है, बल्कि सामाजिक सद्भाव का मॉडल प्रस्तुत कर रहा है।
राजनीतिक प्रभाव: BJP और राष्ट्रीय एकता
RSS को केवल BJP से जोड़ना अधूरा होगा। हां, BJP की नैतिक शक्ति संघ से आती है—अनेक नेता स्वयंसेवक हैं। लेकिन RSS राजनीति से ऊपर है। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को भारतीय जनसंघ स्थापित करने की प्रेरणा RSS से मिली। अयोध्या राम मंदिर, कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्ति—ये सब राष्ट्रीय एकता के प्रतीक हैं। स्वामी विवेकानंद के 'मनुष्य निर्माण' स्वप्न को RSS पूरा कर रहा है।
संघ ने विदेशी षड्यंत्रों के खिलाफ भारत भारती की प्रतिबद्धता जगाई। करोड़ों लोग आज राष्ट्रीयता से ओतप्रोत हैं। शताब्दी वर्ष पर, यह स्पष्ट है कि RSS ने भारत को एक मजबूत राष्ट्र बनाया, जहां विविधता एकता का आधार है।
RSS का वैश्विक दृष्टिकोण: विश्व को सार्थक दिशा
अब प्रश्न यह है: RSS भारत ही नहीं, विश्व को कैसे सार्थक दिशा दे सकता है? RSS की विचारधारा सार्वभौमिक है—व्यक्ति निर्माण, समाज सेवा, और सांस्कृतिक गौरव। विश्व आज संकटों से जूझ रहा है: जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद, सांस्कृतिक क्षय, और असमानता। RSS का मॉडल इनका समाधान है।
सबसे पहले, पर्यावरण संरक्षण। संघ के स्वयंसेवक वनरोपण, जल संरक्षण में सक्रिय हैं। विश्व स्तर पर, HSS (Hindu Swayamsevak Sangh) जैसे संगठन अमेरिका, यूके, कनाडा में फैले हैं। वे स्थानीय समुदायों को एकजुट करते हैं, जैसे अमेरिका में हिंदू-अमेरिकी एकता को बढ़ावा। 2020 की COVID महामारी में, RSS ने वैश्विक स्तर पर राहत पहुंचाई—भारत से दवाएं निर्यात, और विदेशी शाखाओं में सहायता।
दूसरा, सांस्कृतिक पुनरुत्थान। पश्चिमी दुनिया में पहचान का संकट है। RSS की 'हिंदू सभ्यता' अवधारणा—अहिंसा, सहिष्णुता, और विविधता—वैश्विक मूल्य हैं। विवेकानंद की तरह, RSS योग, ध्यान, और भारतीय दर्शन को विश्व पटल पर ला सकता है। अफ्रीका में VKA (Vanvasi Kalyan Ashram) के समकक्ष संगठन आदिवासी विकास कर रहे हैं। यूरोप में, संघ के प्रेरक प्रवासी हिंदुओं को सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ते हैं, जो बहुसांस्कृतिक समाजों में सद्भाव सिखाते हैं।
तीसरा, शांति और संघर्ष समाधान। RSS का 'शाखा' मॉडल—दैनिक व्यायाम, चर्चा, और सेवा—समुदाय निर्माण का उपकरण है। मध्य पूर्व के संघर्षों में, संघ की अहिंसा की शिक्षा शांति वार्ता में मदद कर सकती है। भारत की 'वसुधैव कुटुंबकम्' अवधारणा को RSS वैश्विक मंच पर ले जा सकता है। UN या G20 जैसे फोरम में, RSS प्रेरित नीतियां जलवायु न्याय, गरीबी उन्मूलन पर योगदान दे सकती हैं।
चौथा, युवा सशक्तिकरण। विश्व में युवा बेरोजगारी और कट्टरता का खतरा है। RSS का प्रचारक मॉडल—स्वैच्छिक सेवा—युवाओं को उद्देश्य देता है। अमेरिका में HSS के 200+ अध्याय युवाओं को नेतृत्व सिखाते हैं। भारत का IT और स्टार्टअप बूम RSS से प्रेरित उद्यमियों का योगदान है। विश्व स्तर पर, यह मॉडल अफ्रीकी या लैटिन अमेरिकी युवाओं को सशक्त बना सकता है।
पांचवां, महिला सशक्तिकरण। RSS की महिला शाखाएं (दुर्गा वाहिनी) स्वावलंबन सिखाती हैं। विश्व में लिंग असमानता के खिलाफ, यह मॉडल एशिया-अफ्रीका में फैल सकता है। उदाहरणस्वरूप, नेपाल और बांग्लादेश में संघ शाखाएं महिलाओं को शिक्षा-स्वास्थ्य दे रही हैं।
RSS का वैश्विक प्रभाव पहले से दिख रहा है। 100 देशों में 50 लाख से अधिक सदस्य। शताब्दी वर्ष पर, RSS को अंतरराष्ट्रीय सेवा नेटवर्क बनाना चाहिए—जैसे 'ग्लोबल सेवा संघ'। यह विश्व को दिखाएगा कि भारतीय विचारधारा शांति, विकास, और एकता का स्रोत है। हेडगेवार का स्वप्न था एक मजबूत भारत; अब यह विश्व गुरु भारत का आधार बने।
चुनौतियां और भविष्य की दिशा
RSS की शताब्दी पर चुनौतियां भी हैं। राजनीतिकरण के आरोप, मीडिया पूर्वाग्रह, और आंतरिक सुधार। लेकिन संघ की ताकत उसकी अनुशासन है। भविष्य में, डिजिटल शाखाएं, AI-आधारित शिक्षा, और वैश्विक साझेदारियां अपनानी होंगी। हेडगेवार की तरह, प्रचार से दूर रहकर सेवा पर फोकस।
विश्व को सार्थक दिशा देने के लिए, RSS को 'वैश्विक हिंदू एकता' से ऊपर उठकर 'मानवीय एकता' पर जोर देना चाहिए। जलवायु संकट में वन संरक्षण, महामारी में वैश्विक सहायता—ये क्षेत्र हैं जहां RSS चमक सकता है।
निष्कर्ष: शताब्दी की प्रेरणा
RSS की शताब्दी डॉ. हेडगेवार को सलाम है—जिन्होंने एक साधारण घोषणा से करोड़ों जीवन बदले। भारत में सेवा का यह नेटवर्क विश्व के लिए मॉडल है। हेडगेवार की कथा हमें सिखाती है: सच्ची शक्ति सेवा में है। शताब्दी वर्ष पर, आइए प्रतिज्ञा करें कि RSS न केवल भारत, बल्कि विश्व को सार्थक दिशा दे—एकता, शांति, और विकास की। 

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