. “वाराणसी से देश तक—वोट चोरी का काला सच

 

सामयिकी 

वोट की चोरी, घुसपैठ और लोकतंत्र का असली संकट


(कौटिल्य फाउंडेशन , अशोक कुमार पाण्डेय
 )

भारतीय लोकतंत्र की आत्मा पर सबसे गहरा प्रहार तब होता है जब वोट की लूट, घुसपैठ और फर्जी वोटर लिस्ट के सहारे सत्ता हथियाने की कोशिश की जाती है। दुर्भाग्य यह है कि आजादी के बाद से ही कांग्रेस ने यही किया और “लोकतंत्र” के नाम पर छल का तंत्र खड़ा कर दिया।

1951 से 1984 तक कांग्रेस का वोट प्रतिशत 40 से 50 के बीच रहा। परंतु जैसे ही फोटो वोटर आईडी (EPIC) लागू हुआ, कांग्रेस का वोट बैंक आधा हो गया और वह कभी भी 30% से ऊपर नहीं जा सकी। यह आंकड़े बताते हैं कि सत्ता का आधार “जनता का विश्वास” नहीं, बल्कि बेनामी वोट, बैलेट बॉक्स लूट और घुसपैठियों का खेल था।

2014 और 2019 में नरेंद्र मोदी जैसे लोकप्रिय नेता भी वाराणसी में शुरुआती गिनती में पीछे दिखाए गए। क्या बनारस की जनता अजय राय जैसे बौने नेता को प्रधानमंत्री से बड़ा मान सकती है? हरगिज नहीं। यह उसी वोटर घुसपैठ का संकेत था, जो वर्षों से सुनियोजित ढंग से फैलाया गया।

यही कारण है कि सरकार ने SIR योजना के तहत पूरे देश में मतदाता सूची की शुद्धि की शुरुआत की। बिहार से आरंभ यह अभियान अब बंगाल, झारखंड से होते हुए पूरे देश में फैल चुका है। और विपक्ष का हाहाकार इसी कारण है।

कांग्रेस और उसके साथी दल खुलकर घुसपैठियों का समर्थन करते हैं। कभी कहते हैं कि ये “गरीब लोग” हैं, कभी कहते हैं कि “अब कहां जाएंगे।” असल में यह उनके लिए वोट बैंक है। सवाल है—क्या भारत को अपना भविष्य बर्बाद कर देना चाहिए सिर्फ इसलिए कि कांग्रेस सत्ता में लौटना चाहती है?

इतिहास गवाही देता है—जिन्ना ने देश तोड़ा, औरंगजेब ने धर्मांतरण कराया, बाबर ने मंदिर तोड़ा, दाऊद और कसाब ने खून बहाया। और आज उनकी ही मानसिकता “लव जिहाद”, “फर्जी धर्मनिरपेक्षता” और “कश्मीरियत” के नाम पर पल रही है।

 क्या धर्मनिरपेक्षता का मतलब हिंदू को गाली देना है?
 क्या लोकतंत्र की आड़ में वोट की चोरी जायज है?
 क्या भारत बार-बार घुसपैठ और आतंकवाद के जख्म झेलता रहेगा?


अब समय है कि राष्ट्र स्पष्ट करे—भारत नेताओं का नहीं, जनता का है। घुसपैठियों का बोझ हिंदुओं की जेब पर नहीं थोपा जा सकता। यह लड़ाई सत्ता की नहीं, बल्कि राष्ट्र की अस्मिता और अस्तित्व की है।

 विपक्ष चाहे सड़क पर चिल्लाए, सुप्रीम कोर्ट में जाए या ईसी पर आरोप लगाए, पर अब वोटर लिस्ट की शुद्धि रुकने वाली नहीं।
 भारत को अपने लोकतंत्र को बचाना है, और घुसपैठियों को बाहर करना ही होगा।

अगर हिंदू अब भी न जागा तो इतिहास वही दोहराएगा—1378 में ईरान, 1761 में अफगानिस्तान और 1947 में पाकिस्तान।

जागो भारत! यही निर्णायक समय है।



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