सम्पादकीय:
नया भारत – आत्मनिर्भरता का स्वाभिमानी संकल्प
राजेंद्र नाथ तिवारी
एक समय था जब भारत वैश्विक शक्तियों के सामने सिर झुकाने को मजबूर रहता था। लेकिन अब परिदृश्य बदल चुका है। यह अब ‘लिबिर-लिबिर’ कहने वाला भारत नहीं रहा। यह भारत 140 करोड़ जनों की आकांक्षा और आत्मबल से भरा वह राष्ट्र है जो झुकता नहीं, बल्कि दुनिया को झुकाने की कूवत रखता है। हाल ही में अमेरिका द्वारा भारत पर कुछ उत्पादों पर टैरिफ (शुल्क) लगाया गया। यह कोई अप्रत्याशित घटना नहीं थी, पर इसकी प्रतिक्रिया में जो अप्रत्याशित रहा — वह था भारत सरकार की संतुलित चुप्पी और सटीक रणनीति। न कोई घबराहट, न कोई हड़बड़ी — और न ही कोई बयानबाज़ी। विदेश और वाणिज्य मंत्रालयों की चुप्पी ही उस रणनीतिक गहराई का संकेत थी जो आज के भारत की पहचान बन चुका है।
विपक्ष ने अनुमान लगाया कि सरकार घबरा जाएगी, किंतु हुआ इसके ठीक विपरीत। अमेरिकी टैरिफ का जवाब भारत ने कूटनीतिक नेटवर्क और व्यापारिक वैकल्पिक मार्गों से दिया। यूरोप, ब्रिक्स, मिडिल ईस्ट और अफ्रीकी देशों से भारत की नई व्यापार संधियाँ यह स्पष्ट करती हैं कि भारत अब ‘किसी एक शक्ति का मोहताज’ नहीं है।
डायमंड निर्यात और फार्मा सेक्टर जैसे क्षेत्रों में भारत की निर्भरता नहीं, बल्कि विश्व की निर्भरता भारत पर है। भारत के टेक्सटाइल, मेडिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर आज वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला की रीढ़ बन चुके हैं। और यही कारण है कि टैरिफ भारत को नहीं, अमेरिका को चोट करेगा।
आज के भारत ने यह सिद्ध कर दिया है कि अगर 1998 में परमाणु परीक्षण के बाद लगे प्रतिबंधों से भी भारत नहीं झुका, तो आज वह कहीं अधिक संगठित और आत्मनिर्भर हो चुका है। जो लोग भारत की विदेश नीति और वैश्विक नेटवर्किंग पर संदेह करते हैं, उन्हें समझ लेना चाहिए कि यह भारत अब एक 'रिएक्टिव राष्ट्र' नहीं, बल्कि 'प्रोएक्टिव शक्ति' बन चुका है। हम अब कोई निर्णय दबाव में नहीं, अपने राष्ट्रीय हितों की कसौटी पर लेते हैं। हमारा रास्ता अब केवल गांधी-नेहरू का नहीं, सावरकर, शास्त्री और अटल का भी है — जहां स्वाभिमान, संप्रभुता और आत्मनिर्भरता मूलमंत्र हैं।यह भारत अब किसी भूरेलाल की चिंता नहीं करता।
140 करोड़ भारतीयों को चिंतित होने की आवश्यकता नहीं। भारत अब किसी 'भूरेलाल' की मर्जी पर नहीं चलता। आज का भारत आत्मनिर्भर है, वैश्विक मंचों पर दृढ़ है, और निर्णय लेने में सक्षम है। जो भी विदेशी दबाव आएँगे, भारत उनसे सामर्थ्य के साथ निपटेगा — क्योंकि यह नया भारत है: दृढ़, निर्णायक और आत्मगौरव से भरपूर।
राजेंद्र नाथ तिवारी
एक समय था जब भारत वैश्विक शक्तियों के सामने सिर झुकाने को मजबूर रहता था। लेकिन अब परिदृश्य बदल चुका है। यह अब ‘लिबिर-लिबिर’ कहने वाला भारत नहीं रहा। यह भारत 140 करोड़ जनों की आकांक्षा और आत्मबल से भरा वह राष्ट्र है जो झुकता नहीं, बल्कि दुनिया को झुकाने की कूवत रखता है। हाल ही में अमेरिका द्वारा भारत पर कुछ उत्पादों पर टैरिफ (शुल्क) लगाया गया। यह कोई अप्रत्याशित घटना नहीं थी, पर इसकी प्रतिक्रिया में जो अप्रत्याशित रहा — वह था भारत सरकार की संतुलित चुप्पी और सटीक रणनीति। न कोई घबराहट, न कोई हड़बड़ी — और न ही कोई बयानबाज़ी। विदेश और वाणिज्य मंत्रालयों की चुप्पी ही उस रणनीतिक गहराई का संकेत थी जो आज के भारत की पहचान बन चुका है।
विपक्ष ने अनुमान लगाया कि सरकार घबरा जाएगी, किंतु हुआ इसके ठीक विपरीत। अमेरिकी टैरिफ का जवाब भारत ने कूटनीतिक नेटवर्क और व्यापारिक वैकल्पिक मार्गों से दिया। यूरोप, ब्रिक्स, मिडिल ईस्ट और अफ्रीकी देशों से भारत की नई व्यापार संधियाँ यह स्पष्ट करती हैं कि भारत अब ‘किसी एक शक्ति का मोहताज’ नहीं है।
डायमंड निर्यात और फार्मा सेक्टर जैसे क्षेत्रों में भारत की निर्भरता नहीं, बल्कि विश्व की निर्भरता भारत पर है। भारत के टेक्सटाइल, मेडिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर आज वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला की रीढ़ बन चुके हैं। और यही कारण है कि टैरिफ भारत को नहीं, अमेरिका को चोट करेगा।
आज के भारत ने यह सिद्ध कर दिया है कि अगर 1998 में परमाणु परीक्षण के बाद लगे प्रतिबंधों से भी भारत नहीं झुका, तो आज वह कहीं अधिक संगठित और आत्मनिर्भर हो चुका है। जो लोग भारत की विदेश नीति और वैश्विक नेटवर्किंग पर संदेह करते हैं, उन्हें समझ लेना चाहिए कि यह भारत अब एक 'रिएक्टिव राष्ट्र' नहीं, बल्कि 'प्रोएक्टिव शक्ति' बन चुका है। हम अब कोई निर्णय दबाव में नहीं, अपने राष्ट्रीय हितों की कसौटी पर लेते हैं। हमारा रास्ता अब केवल गांधी-नेहरू का नहीं, सावरकर, शास्त्री और अटल का भी है — जहां स्वाभिमान, संप्रभुता और आत्मनिर्भरता मूलमंत्र हैं।यह भारत अब किसी भूरेलाल की चिंता नहीं करता।
140 करोड़ भारतीयों को चिंतित होने की आवश्यकता नहीं। भारत अब किसी 'भूरेलाल' की मर्जी पर नहीं चलता। आज का भारत आत्मनिर्भर है, वैश्विक मंचों पर दृढ़ है, और निर्णय लेने में सक्षम है। जो भी विदेशी दबाव आएँगे, भारत उनसे सामर्थ्य के साथ निपटेगा — क्योंकि यह नया भारत है: दृढ़, निर्णायक और आत्मगौरव से भरपूर।
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