मोदीजी! कोर्ट की पहल पर बौद्धिक कर्ज माफी योजना चलाइए, पात्र आपके सामने की कुर्सी पर बैठा है





चित्र,सोशल मीडिया से साभार

बस्ती, उत्तरप्रदेश    बौद्धिक कर्ज माफी योजना का प्रथम पात्र कौन?

जब न्यायालय ने ‘राहुल न्याय’ कर डाला!” जिस दिन सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी को फिर से संविधान की पाठशाला में बिठाया, वह दिन न्यायपालिका के उस दुर्लभ पाठ का हिस्सा बन गया, जिसे ‘राहुल न्याय’ कहा जाना चाहिए। अब ज़रा सोचिए, कोर्ट पूछ बैठा — "ये 2000 वर्ग किलोमीटर चीन ले गया है, आपको कैसे पता?"




अरे भैया! राहुल जी तो गूगल अर्थ की चेतना हैं — उन्हें बिना ड्रोन, बिना सैटेलाइट और बिना तथ्य के हर बात पता होती है।
पाकिस्तान से शांति, चीन से दोस्ती और भारत से शिकायत — यही उनका ‘वैचारिक GPS’ है।

जब-जब देश का मनोबल उठता है, राहुल जी कसम खा लेते हैं कि एक ‘टप्पा’ नीचे गिरा ही देंगे — कभी वीर सावरकर को ब्रिटिश एजेंट बताकर, कभी राफेल को दलाली का जहाज कहकर, और अब चीन को भूमि हड़पने वाला सत्यवादी हरिशचंद्र साबित करने में जुटे हैं। और सुप्रीम कोर्ट?वोउसने बड़ी शांति से समझा दिया —
"अगर उसी आधार पर तुम सावरकर को दोषी ठहराते हो, तो गांधी जी भी अंग्रेजों की नौकरी करते थे!" अब राहुल जी सोच में पड़ गए होंगे — “तो क्या अगली बार गांधी जी पर भी बयान देना पड़ेगा? पर सावधान! अगली फटकार के बाद मौन व्रत ही एकमात्र विकल्प बचेगा।
अब बात केवल एक आदमी की नहीं है, सवाल विपक्ष की सोच की पराजय का है।
जब नेता संसद को धमकी, चुनाव आयोग को धक्का, और सेना को शंका देता है —
तब न्यायालय को ही राष्ट्रीय समझदारी का ठेका उठाना पड़ता है। राहुल जी, आपको तो सुप्रीम कोर्ट ने तीसरी बार प्रेमपूर्वक झाड़ दिया, पर आप हैं कि बौद्धिक लॉकडाउन से बाहर ही नहीं निकलते।

अब शायद संविधान को “पाठशाला एक्सप्रेस” चलानी होगी, जिसका पहला यात्री सीट पर तानाशाह की तर्ज पर अकड़ कर बैठा होगा — नाम पूछने की ज़रूरत नहीं।

 "सुप्रीम कोर्ट की बेल्ट, राहुल की बुद्धि पर!"

तीसरी बार सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी को फटकारा, मगर असर ज़ीरो! लगता है कोर्ट भी अब ‘बौद्धिक कर्ज़माफ़ी योजना’ चला रहा है — बार-बार समझा रहा है, पर राहुल जी तो तथ्यहीन तूफान के पर्याय हैं। कभी चीन को ज़मीन दे आते हैं, कभी वीर सावरकर पर चुटकुला बना देते हैं। न्यायालय पूछे — “सबूत कहाँ है?”, तो जवाब मिलता है — “भावना में बह गया था।” संसद को धमकाना, सेना पर सवाल उठाना और अब कोर्ट से पिटना — यही है ‘राहुल ब्रांड राजनीति’, जिसमें ज्ञान कम, हिम्मत ज़रूरत से ज़्यादा होती है।


 
 

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