"बस्ती में BUMS डॉक्टर बने एलोपैथिक सर्जन – स्वास्थ्य विभाग सो रहा है या देख रहा है?"

 



"बस्ती में BUMS डॉक्टर बने एलोपैथिक सर्जन – स्वास्थ्य विभाग सो रहा है या देख रहा है?"



बस्ती, उत्तर प्रदेश:
जनपद बस्ती में स्वास्थ्य सेवाओं का हाल देखिए — यहाँ BUMS (बैचलर ऑफ यूनानी मेडिसिन एंड सर्जरी) डिग्रीधारी डॉक्टर खुलेआम एलोपैथिक दवाएं लिख रहे हैं, इंजेक्शन और ड्रिप लगा रहे हैं, और तो और, बड़े-बड़े ऑपरेशन भी कर रहे हैं। सवाल यह है कि जब मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) और नेशनल कमीशन फॉर इंडियन सिस्टम ऑफ मेडिसिन (NCISM) के नियम स्पष्ट रूप से इस पर रोक लगाते हैं, तो यह "मेडिकल जादूगरी" आखिर हो कैसे रही है? स्थानीय सूत्रों के अनुसार, दर्जनों नर्सिंग होम और प्राइवेट हॉस्पिटल में यह अवैध चिकित्सा धंधा वर्षों से चल रहा है। "यूनानी डिग्री – एलोपैथिक सर्जरी" का यह अद्भुत मेल न केवल कानून के विरुद्ध है बल्कि मरीजों की जान से खुला खिलवाड़ है। सूत्रों द्वारा उपलब्ध कराई गई सूची में नूर हॉस्पिटल, गोल्डन हॉस्पिटल, आयशा हॉस्पिटल, स्टार हॉस्पिटल,  नूर हॉस्पिटल,सागर हॉस्पिटल सहित और दर्जनों अन्य संस्थान शामिल हैं, जहाँ ये BUMS डिग्रीधारी डॉक्टर एलोपैथिक चिकित्सकों का चोला पहनकर ऑपरेशन थिएटर में उतर रहे हैं।

कानून क्या कहता है?
राष्ट्रीय आयुष आयोग अधिनियम 2020 और भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम 1956 के अनुसार, आयुष पद्धति के चिकित्सक केवल अपनी प्रणाली की दवाओं का उपयोग कर सकते हैं। एलोपैथिक उपचार, इंजेक्शन, ड्रिप और सर्जरी करना उनके लिए प्रतिबंधित है।लेकिन…जब नियम किताबों में हों और कार्रवाई फाइलों में, तो जमीन पर "व्यवस्था" का हाल ऐसा ही होता है। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी या तो इस खेल से अनजान हैं, या फिर "जानकारी में भी अंजान" बने हुए हैं।

जनता का सवाल:
जब गलत दवा और गलत सर्जरी से किसी की जान जाती है, तो जिम्मेदार कौन होगा — वह डॉक्टर, जो अपनी डिग्री की सीमा तोड़ता है, या वह सिस्टम, जो आंख मूंदकर उसे ऐसा करने देता है?


बस्ती का यह मामला सिर्फ एक जिले की कहानी नहीं है, यह भारत की उस स्वास्थ्य व्यवस्था का आईना है, जहाँ कानून का डर नहीं, बल्कि "जुगाड़" का बोलबाला है। अगर समय रहते कार्रवाई नहीं हुई, तो अगली खबर शायद किसी की मौत की हो सकती है.










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