बस्ती, उत्तर प्रदेश —
जिले के बहादुरपुर ब्लॉक के पोखरनी गांव के निवासी सुरेश कुमार श्रीवास्तव ने ब्लॉक प्रशासन और ग्राम प्रधान की मिलीभगत से हुए भ्रष्टाचार के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया है। जिलाधिकारी कार्यालय के समक्ष उन्होंने आमरण अनशन शुरू कर दिया है, और दो टूक शब्दों में कहा है — "जब तक दोषियों पर कार्रवाई नहीं होती, तब तक मैं अन्न और जल ग्रहण नहीं करूंगा।"
पूरा मामला मनरेगा योजना से जुड़ा हुआ है, जिसमें सुरेश कुमार के नाम पर 14 दिनों के काम का भुगतान कर दिया गया, जबकि उक्त काम जेसीबी मशीन से कराया गया और मस्टररोल में फर्जी दस्तखत दिखाकर भुगतान की प्रक्रिया पूरी कर दी गई।
पीड़ित का आरोप है कि उसने शपथपत्र के साथ कई बार ब्लॉक व जिला प्रशासन को लिखित शिकायत दी, परंतु अब तक कोई सुनवाई नहीं हुई। न ही दोषियों पर कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई, न ही धन की रिकवरी हुई।
यह न केवल ग्राम पंचायत प्रणाली पर एक करारा तमाचा है, बल्कि मनरेगा जैसे श्रम-आधारित सामाजिक सुरक्षा योजना की साख को भी गहरे संकट में डालता है।
प्रशासन की चुप्पी और कार्रवाई से परहेज़ यह संकेत देती है कि व्यवस्था की नीयत में ही खोट है। अगर एक साधारण नागरिक अपने ही नाम पर फर्जी भुगतान की शिकायत लेकर अनशन पर बैठने को मजबूर हो, तो यह लोकशाही का कैसा स्वरूप है?
अब देखना यह है कि क्या जिलाधिकारी इस अनशन को गंभीरता से लेकर जांच का आदेश देंगे, या यह मामला भी फाइलों में धूल खाता रह जाएगा।