"जब अस्पतालों का नवीनीकरण भी राजनीति और प्रबंधन की सुस्ती में दम तोड़ दे"
बरस्ती ज़िले की यह खबर एक बार फिर हमारे स्वास्थ्य तंत्र के खोखलेपन को उजागर करती है। चार महीने बीत गए, लेकिन अस्पतालों का नवीनीकरण पूरा नहीं हुआ। 325 आवेदनों में से केवल 185 अस्पताल मानकों पर खरे उतरे, 20 के आवेदन रद्द कर दिए गए और 25 अब भी ‘जांच’ के नाम पर लटके हैं।
सबसे अहम बात—मुख्य चिकित्सा अधिकारी (CMO) ने खुलकर कहा है कि इस देरी के लिए प्रबंधन तंत्र और जिला प्रशासन दोनों जिम्मेदार हैं। यानी यह सिर्फ अस्पतालों की गलती नहीं, बल्कि वह सरकारी मशीनरी भी दोषी है जो जनता के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए तैनात है।
प्रशासनिक लापरवाही की कीमत आम जनता चुका रही है
नवीनीकरण का मतलब है कि अस्पताल में योग्य चिकित्सक, मानक उपकरण और आपातकालीन सुविधाएँ मौजूद हों। जब प्रशासन महीनों तक जांच पूरी नहीं करता, तो मरीज ऐसे संस्थानों के भरोसे रह जाते हैं जिनकी सुरक्षा और सेवा संदिग्ध है। यह देरी एक प्रशासनिक अपराध है, क्योंकि इसका सीधा असर लोगों के जीवन पर पड़ता है।
CMO का आरोप—सिस्टम में ही रुकावट
CMO की टिप्पणी साफ़ संकेत देती है कि कागज़ी कार्रवाई, समन्वय की कमी और निर्णय लेने में ढिलाई, इस संकट की जड़ हैं।
नवीनीकरण फाइलें समय पर पूरी नहीं होतीं। जाँच के दौरान मानकों की सूची पर सही निगरानी नहीं रखी जाती .ज़िले के स्तर पर अस्पताल पंजीकरण को लेकर कोई ‘समयसीमा पालन’ तंत्र नहीं है। जब जिला प्रशासन और स्वास्थ्य प्रबंधन तंत्र खुद समयबद्ध काम न करें, तो सवाल सिर्फ निजी अस्पतालों पर नहीं, बल्कि पूरी व्यवस्था पर उठता है। अगर मरीजों की जिंदगी को प्राथमिकता नहीं दी जाएगी, तो बाकी योजनाओं और घोषणाओं का कोई मतलब नहीं रह जाता। बीमारी का इलाज डॉक्टर करता है, लेकिन स्वास्थ्य व्यवस्था की बीमारी का इलाज सिर्फ जवाबदेही और पारदर्शिता से होता है।"
CMO का बयान इस मामले में एक चेतावनी है—अगर जिला प्रशासन और प्रबंधन तंत्र ने अब भी अपनी गति और नीयत नहीं बदली, तो जनता का भरोसा पूरी तरह टूट जाएगा।