जिला सहकारी बैंक का धन लुटती सहकारी समितियाँ: खाद बिक्री में भारी घोटाले की आशंका
बस्ती जनपद में सहकारी समितियों द्वारा उर्वरक वितरण के नाम पर बड़े पैमाने पर वित्तीय अनियमितताओं की सूचनाएं सामने आ रही हैं। जिला सहकारी बैंक द्वारा खाद वितरण हेतु प्रदान की गई धनराशि का उपयोग किस हद तक हुआ, यह गंभीर जांच का विषय बन चुका बैंक के आंकड़ों के अनुसार, सहकारी समितियों को किसानों तक औसत 12 मीट्रिक टन खाद बिक्री करनी थी। लेकिन जांच में सामने आया कि 15 समितियों ने 400 गुना तक अधिक खाद की बिक्री का दावा किया है, जो न केवल असंभव प्रतीत होता है, बल्कि स्पष्ट रूप से फर्जीवाड़े की ओर संकेत करता है।
कुछ प्रमुख प्रश्न जो उठते हैं: कहां गई इतनी खाद? जब समितियों ने भारी मात्रा में खाद बिक्री का रिकॉर्ड दर्शाया, तो किसान आज भी खाद के लिए कतारों में क्यों हैं? क्या यह खाद वास्तव में किसानों तक पहुंची या कागजों पर ही खपत दिखाकर उसका ग़लत इस्तेमाल हुआ?
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किसने निगरानी की जिम्मेदारी निभाई? बैंक के अधिकारी और कर्मचारी इस गड़बड़ी से कैसे अनभिज्ञ रहे? क्या यह लापरवाही थी या मिलीभगत?
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जांच की निष्क्रियता:पूर्व में प्रारंभ की गई जांच भी मात्र औपचारिकता बनकर रह गई है। न तो दोषियों पर कार्रवाई हुई और न ही धन की रिकवरी का कोई स्पष्ट प्रयास दिखा।
विशेष उल्लेखनीय बिंदु: 15 समितियों द्वारा 400 गुना खाद बिक्री की सूचना ने पूरे तंत्र की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। किसानों से पूछने पर अधिकांश ने खाद की अनुपलब्धता और कालाबाज़ारी की शिकायतें कीं।
- कुछ समितियाँ तो ऐसी हैं जिनके पास गोदाम तक नहीं हैं, फिर भी लाखों की बिक्री दर्शाई गई है।
निष्कर्ष: यह स्पष्ट है कि जिला सहकारी बैंक का करोड़ों रुपये का धन भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ता जा रहा है। समितियों के साथ-साथ बैंक प्रशासन, खाद निरीक्षण विभाग तथा जिला प्रशासन की निष्क्रियता इस घोटाले को बढ़ावा दे रही है।
सिफारिशें:
- इस पूरे प्रकरण की सीबीसीआईडी या आर्थिक अपराध शाखा से निष्पक्ष जांच कराई जाए।
- संबंधित समिति सचिव, बैंक अधिकारियों, और गोदाम प्रभारियों की तत्काल जवाबदेही तय हो।
- खाद वितरण को पारदर्शी बनाने के लिए डिजिटल ट्रैकिंग प्रणाली लागू की जाए।
- किसानों से सीधे फीडबैक लेकर वितरण की सत्यता जांची जाए।
यह मामला न केवल प्रशासनिक विफलता का उदाहरण है, बल्कि किसानों की पीड़ा और सरकारी संसाधनों की बर्बादी का प्रमाण भी है। इसकी अनदेखी आने वाले समय में कृषि संकट को और बढ़ा सकती है।
सत्येंद्र सिंह भोलू