एनजीओ के नाम पर हेराफेरी – आदित्य श्रीवास्तव प्रकरण पर एक सामाजिक विश्लेषण

 


एनजीओ के नाम पर हेराफेरी – आदित्य श्रीवास्तव प्रकरण पर एक सामाजिक विश्लेषण

बस्ती, उत्तर प्रदेश।
बस्ती जनपद की नगर पंचायत हर्रैया में "लक्ष्य फाउंडेशन" नामक एनजीओ के द्वारा लाखों रुपये की कथित हेराफेरी का मामला एक बार फिर यह सोचने को मजबूर करता है कि क्या विकास के नाम पर सरकारी धन का दुरुपयोग एक सुनियोजित उद्योग बन चुका है?

इस प्रकरण में लक्ष्य फाउंडेशन के संस्थापक आदित्य श्रीवास्तव पर नगर पंचायत हर्रैया के चेयरमैन द्वारा गंभीर आरोप लगाए गए हैं। आरोप है कि संस्था ने बायो टॉयलेट, कंपोस्टिंग यूनिट, रीसाइक्लिंग इकाई आदि के कार्य दिखाकर नगर पंचायत से 15 लाख 23 हजार 500 रुपये की धनराशि प्राप्त की, लेकिन मौके पर कोई कार्य हुआ ही नहीं। जब स्थानीय जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों ने वास्तविकता जानने की कोशिश की, तो पाया कि जमीन पर कुछ भी नहीं है – न कोई निर्माण, न कोई मशीनें और न ही कोई गतिविधि।

जांच और कानून की दिशा में बढ़ता कदम

नगर पंचायत चेयरमैन विनायक सिंह की शिकायत पर जब एसडीएम और सीडीओ की टीम ने मौके का निरीक्षण किया, तो फर्जीवाड़े की पुष्टि हुई। अब आदित्य श्रीवास्तव पर IPC की धाराओं 420, 406, 467, 468, और 471 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है। ये सभी धाराएं जालसाजी, धोखाधड़ी और विश्वासघात जैसी गंभीर आपराधिक श्रेणियों में आती हैं।

इस पूरे प्रकरण में यह भी सामने आया है कि लक्ष्य फाउंडेशन को वित्तीय वर्ष 2020–21 से 2022–23 तक अलग-अलग योजनाओं में लगभग 28 लाख रुपये की सरकारी सहायता दी गई थी। इनमें से अधिकांश कार्य कागजों पर ही दर्शाए गए, जबकि मौके पर कुछ भी मौजूद नहीं था।

समाज और प्रशासन की चिंता

यह घटना केवल एक एनजीओ द्वारा की गई ठगी नहीं, बल्कि इससे अधिक चिंता का विषय यह है कि नगर पंचायत और प्रशासन ने बिना किसी ठोस सत्यापन के इतनी बड़ी धनराशि कैसे जारी कर दी? यदि समय रहते चेयरमैन विनायक सिंह ने हस्तक्षेप न किया होता, तो यह मामला कभी उजागर नहीं हो पाता।

सवाल यह भी उठता है कि क्या इस तरह के एनजीओ पूरे प्रदेश में सक्रिय हैं, जो जन कल्याण की योजनाओं की आड़ में सरकारी धन की लूट मचा रहे हैं? क्या प्रशासन की निगरानी प्रणाली इतनी कमजोर हो गई है कि फर्जी बिल और कागजों के आधार पर भुगतान होते रहें?

आगे की राह

इस मामले की पारदर्शी जांच और कठोर कानूनी कार्रवाई की आवश्यकता है। साथ ही, अन्य सभी स्थानीय निकायों को भी ऐसे फर्जी एनजीओ के विरुद्ध ऑडिट और भौतिक सत्यापन की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए। यह समाज और प्रशासन दोनों की जिम्मेदारी है कि जन धन की सुरक्षा हो और विकास कार्य केवल कागजों पर नहीं, ज़मीन पर नजर आएं।

यह मामला उदाहरण बन सकता है—अगर कानून अपना काम करता है।
वरना अगला आदित्य श्रीवास्तव किसी और नगर में फिर नई ठगी करेगा।

रिपोर्ट – लोक हित विश्लेषण टीम
कौटिल्य का भारत


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