सरप्लस सफाई कर्मी, घाटे में सफाई, फाइलों में चमक जमीन पर गंदगी





बस्ती: सफाईकर्मी कागजों में तीन-तीन, मैदान में एक भी नहीं – स्कूलों में चपरासी तक नसीब नहीं, नौकरशाही मौज में

बस्ती जनपद की सफाई व्यवस्था का गणित सुनकर हंसी भी आएगी और गुस्सा भी। जिले में 3280 सफाईकर्मी तैनात, जबकि ग्राम पंचायतें हैं सिर्फ 1185। यानी औसतन हर गांव में तीन-तीन सफाईकर्मी, लेकिन नालियां चमकाने के बजाय ज़्यादातर कुर्सियां चमका रहे हैं।

ज़मीनी हकीकत यह है कि प्राथमिक विद्यालयों और एडेड जूनियर हाई स्कूलों में चपरासी तक नहीं, जबकि गांवों में सफाईकर्मी फाइलों में मौजूद, मैदान में नदारद। कई सफाईकर्मी सीडीओ, एसडीएम और बड़े बाबुओं के दफ्तरों में सरकारी “ड्यूटी” बजा रहे हैं। विभाग खुद मान चुका है कि 127 सफाईकर्मी सरप्लस—यानि न जिम्मेदारी, न हिसाब, लेकिन तनख्वाह पूरी और समय पर।

सरकार और सिस्टम की अकल पर सवाल—अगर इनसे काम नहीं लेना है तो घर बैठाइए, पेंशन की तरह तनख्वाह देते रहिए। और अगर काम लेना है तो इनको सीधे स्कूलों में नियुक्त कर दीजिए—ताकि बच्चों को साफ-सुथरा माहौल मिले और सफाईकर्मी भी अपनी पहचान फाइलों से निकालकर ज़मीनी हकीकत में दिखाएं।

लेकिन… बस्ती में भी वही पुरानी बीमारी—नौकरशाही बड़ी हो या छोटी, काम करने से ज्यादा काम टालने में उस्ताद। नतीजा: सफाईकर्मी “वेतनभोगी दर्शक” बन गए हैं और सरकारी व्यवस्था “कागजी वीर”।



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