उदित राज का राहुल गांधी को "दूसरा अंबेडकर" कहना एक अतिशयोक्तिपूर्ण और गैर-जिम्मेदाराना बयान है, जो न केवल डॉ. भीमराव अंबेडकर की ऐतिहासिक विरासत का अपमान करता है, बल्कि सामाजिक न्याय के मुद्दों को सस्ती राजनीति का हथियार बनाता है। अंबेडकर एक महान विद्वान, संविधान निर्माता और दलित-पिछड़े वर्गों के लिए आजीवन संघर्ष करने वाले क्रांतिकारी थे, जिनका योगदान अद्वितीय और अतुलनीय है। दूसरी ओर, राहुल गांधी, हालांकि हाल के वर्षों में सामाजिक न्याय और जातिगत जनगणना जैसे मुद्दों पर मुखर हुए हैं, उनकी उपलब्धियाँ और वैचारिक गहराई अभी तक अंबेडकर के कद के आसपास भी नहीं पहुँची है।
उदित राज का यह बयान कांग्रेस की उस पुरानी रणनीति का हिस्सा लगता है, जिसमें भावनात्मक मुद्दों और प्रतीकों का इस्तेमाल कर वोट बैंक को लुभाने की कोशिश की जाती है। राहुल गांधी ने स्वयं तालकटोरा स्टेडियम में स्वीकार किया कि उन्होंने पहले OBC मुद्दों को गहराई से नहीं समझा, और उनकी पार्टी ने जातिगत जनगणना जैसी पहल में चूक की। ऐसे में, उन्हें अचानक "दूसरा अंबेडकर" बताना न केवल हास्यास्पद है, बल्कि उन समुदायों के साथ मजाक है, जिनके लिए अंबेडकर एक प्रेरणा और आंदोलन का प्रतीक हैं।
बीजेपी नेताओं, जैसे शहजाद पूनावाला और राजीव चंद्रशेखर, ने इस बयान की आलोचना करते हुए इसे अंबेडकर और दलित समाज का अपमान बताया, और इसमें कुछ हद तक सच्चाई है। अंबेडकर ने अपने जीवन में जिन सिद्धांतों और संघर्षों को जिया, उनकी तुलना किसी समकालीन राजनेता से करना उनकी विरासत को कमतर करना है। उदित राज का यह दावा कि राहुल गांधी OBC के लिए "दूसरे अंबेडकर" बन सकते हैं, अगर वह उनकी बातों का समर्थन करें, एक तरह से समुदाय को भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल करने की कोशिश है।
सपा नेता अबू आजमी ने भी सही कहा कि अंबेडकर का कद वैश्विक था, और राहुल गांधी की अपनी टीम ही उन्हें पीछे खींच रही है। यह बयान न केवल अंबेडकर की गरिमा को ठेस पहुँचाता है, बल्कि राहुल गांधी के लिए भी एक अनावश्यक बोझ बनाता है, क्योंकि ऐसी तुलनाएँ उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठा सकती हैं। उदित राज को चाहिए कि वह ऐसी अतिशयोक्तियों से बचें और सामाजिक न्याय के लिए ठोस नीतियों और कार्यों पर ध्यान दें, न कि खोखली बयानबाजी पर।