मोहन भागवत की नव हुंकार, भारत शेर बनेगा, न दैन्यंम न पलायनम् ,आपरेशन सिंदूर नए भारत का ट्रेलर

 

मोहन भागवत का ‘शेर वाला भारत’ संदेश – राष्ट्रवाद, राजनीति और सामाजिक संतुलन का समीकरण

राजेंद्र नाथ तिवारी,बस्ती, उत्तरप्रदेश 


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने केरल की धरती से यह संदेश दिया कि भारत को अब ‘सोने की चिड़िया’ नहीं बल्कि ‘शेर’ बनना है। यह बयान केवल सांस्कृतिक या शैक्षिक परिप्रेक्ष्य में सीमित नहीं था, बल्कि इसके राजनीतिक और रणनीतिक निहितार्थ भी स्पष्ट हैं। जिस समय संसद में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ और आतंकवाद पर बहस हो रही थी, उसी समय भागवत का यह वक्तव्य एक व्यापक राष्ट्रवादी विमर्श को बल देता नजर आया।

राजनीतिक सन्दर्भ और समय-निर्धारण
भागवत का वक्तव्य ऐसे समय आया जब पहलगाम में आतंकियों के खिलाफ सफल एनकाउंटर ने राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर सरकार की दृढ़ छवि को मजबूत किया। संसद में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और गृहमंत्री अमित शाह के बयान पहले ही यह संकेत दे चुके थे कि अब आतंकवाद पर “नरम नीति” नहीं अपनाई जाएगी। ऐसे माहौल में भागवत का “शेर वाला भारत” संदेश भाजपा के राष्ट्रवादी नैरेटिव को और धार देता है, खासकर बिहार, बंगाल, केरल और तमिलनाडु जैसे चुनावी राज्यों में।

सांस्कृतिक-शैक्षिक दृष्टिकोण



भागवत ने मैकाले की शिक्षा नीति का उल्लेख करते हुए स्पष्ट किया कि भारत अपनी परंपरा और संस्कृति से कटकर ताकतवर नहीं बन सकता। उनका मानना है कि शिक्षा केवल रोजगार का साधन नहीं, बल्कि समाज निर्माण और सेवा-भाव को मजबूत करने का माध्यम होनी चाहिए। यह दृष्टिकोण संघ की लंबे समय से चली आ रही उस सोच से मेल खाता है जिसमें शिक्षा में भारतीय मूल्यों और नैतिकता का समावेश प्राथमिकता रखता है।

भारत बनाम इंडिया बहस
भागवत का “भारत को भारत ही कहना चाहिए” वाला संदेश न केवल सांस्कृतिक पहचान का आग्रह है, बल्कि विपक्षी “INDIA” गठबंधन के नामकरण पर अप्रत्यक्ष प्रतिक्रिया भी माना जा सकता है। उनका कहना कि ‘India that is Bharat’ ठीक है, लेकिन अनुवाद नहीं होना चाहिए, सांस्कृतिक अस्मिता के मुद्दे को राजनीतिक विमर्श से जोड़ता है।

सामाजिक संतुलन का प्रयास
महत्वपूर्ण यह है कि भागवत ने ‘कट्टर हिंदू’ की परिभाषा को नरम करते हुए कहा कि कट्टरता का मतलब नफरत नहीं, बल्कि सभी को गले लगाना है। यह संदेश ऐसे समय में आया है जब भाजपा के लिए हिंदुत्व के तीखे स्वर कभी-कभी नए मतदाताओं को दूर भी कर सकते हैं। इससे यह संकेत मिलता है कि संघ आगामी चुनावों में हिंदुत्व के साथ समावेशिता का संतुलन साधना चाहता है।

दक्षिण भारत में रणनीतिक संदेश
केरल में यह भाषण देना अपने आप में बड़ा राजनीतिक संकेत है। दक्षिण भारत में भाजपा को ‘बाहरी’ पार्टी माना जाता है, लेकिन शिक्षा, संस्कृति और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दों पर संघ और उससे जुड़े संगठन धीरे-धीरे पकड़ बनाने का प्रयास कर रहे हैं। ईसाई और मुस्लिम समुदाय के बीच प्रत्यक्ष वोट बैंक बनाना कठिन है, इसलिए सामाजिक सेवाओं और सांस्कृतिक आयोजनों के माध्यम से जमीन तैयार की जा रही है।

निष्कर्ष
भागवत का ‘शेर वाला भारत’ संदेश, संसद में ऑपरेशन सिंदूर की चर्चा और पहलगाम एनकाउंटर—तीनों घटनाएं मिलकर एक संगठित राष्ट्रवादी कथा गढ़ती हैं। भाजपा के लिए यह कथा केवल सुरक्षा और ताकत का प्रतीक नहीं, बल्कि चुनावी राजनीति में विपक्ष के जातीय समीकरण और आर्थिक मुद्दों के शोर को दबाने का माध्यम भी बन सकती है। हालांकि, इस रणनीति की सफलता इस पर निर्भर करेगी कि क्या राष्ट्रवाद का यह संदेश महंगाई, बेरोजगारी और क्षेत्रीय असंतोष जैसे मुद्दों के ऊपर स्थायी प्रभाव डाल पाता है या नहीं।


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