नोएडा का फर्जी कॉल सेंटर कांड — व्यवस्था की आँखों पर पट्टी
बस्ती, नोएडा,लखनऊ से मनोज श्रीवास्तव, ओपी श्रीवास्तव
नोएडा में फर्जी इंटरनेशनल कॉल सेंटर का भंडाफोड़, 18 लोगों की गिरफ्तारी, करोड़ों की अंतरराष्ट्रीय ठगी — सुनने में यह पुलिस की बड़ी सफलता लग सकती है। लेकिन असलियत यह है कि यह घटना हमारी व्यवस्था की सुस्ती, लापरवाही और संभवतः मिलीभगत का खुला सबूत है।
सोचिए, सेक्टर-63 में महीनों से 23 लैपटॉप, 25 मोबाइल फोन, दर्जनों चार्जर, पेन ड्राइव और फर्जी माइक्रोसॉफ्ट आईडी कार्ड के साथ एक पूरा साइबर ठग साम्राज्य चल रहा था। आरोपी गूगल ऐप से विदेशी नागरिकों का निजी डाटा खरीदते, उनके सिस्टम में वायरस भेजते, फिर खुद को माइक्रोसॉफ्ट टेक्निकल सपोर्ट बताकर डराते और क्रिप्टो करेंसी के जरिए रकम वसूलते थे। यह सब किसी अंधेरी गली में नहीं, बल्कि देश के सबसे विकसित माने जाने वाले आईटी हब में चल रहा था।
सवाल यह है कि पुलिस और खुफिया तंत्र को यह सब पहले क्यों नहीं दिखा? क्या हमारी साइबर क्राइम सेल केवल तब हरकत में आती है जब मामला सुर्खियों में आ जाए? इतने बड़े नेटवर्क के अस्तित्व की भनक भी अगर महीनों तक न लगे, तो यह या तो व्यवस्था की अक्षमता है या स्थानीय स्तर पर संरक्षण का मामला। दोनों ही स्थितियां शर्मनाक हैं।
यह गिरोह अमेरिकी टेक्नोलॉजी वेंडर्स के संपर्क में था, करोड़ों की ठगी कर चुका था और तकनीकी रूप से इतना दक्ष था कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की साख पर चोट पहुँचा सकता था। बावजूद इसके, स्थानीय पुलिस को तभी नींद से जागना पड़ा जब ऑपरेशन को अंजाम देना आसान हो गया।
दरअसल, हमारी व्यवस्था की सबसे बड़ी खामी यही है — अपराधियों का नेटवर्क तेज़, हाई-टेक और संगठित है, जबकि हमारी कानून व्यवस्था धीमी, ढीली और पिछड़ी सोच में फँसी हुई है। जब तक व्यवस्था अपराध होने से पहले रोकथाम की नीति पर काम नहीं करेगी और साइबर निगरानी को मजबूत नहीं बनाएगी, तब तक ऐसे गिरोह पनपते रहेंगे और हर बार देश की छवि दाँव पर लगती रहेगी।
आज जरूरत केवल गिरफ्तारी की नहीं, बल्कि व्यवस्था की मानसिकता बदलने की है — वरना कल एक और कॉल सेंटर, एक और गिरोह, और एक और "बड़ी सफलता" के साथ यही कहानी दोहराई जाएगी।