पैसे से अहंकार खरीद सकते हैं, सुख-चैन नहीं:

 


पैसे से अहंकार खरीद सकते हैं, सुख-चैन नहीं: एक  विश्लेषण 

आज के युग में पैसा वह जादुई छड़ी है, जिसे लहराते ही लोग झुकने को तैयार हो जाते हैं। यह वह चाबी है, जो हर ताले को खोलने का दावा करती है, फिर चाहे वह ताला सामाजिक प्रतिष्ठा का हो या भौतिक सुख-सुविधाओं का। लेकिन, जैसा कि पुरानी कहावत है, "पैसा सब कुछ नहीं खरीद सकता," यह बात आज भी उतनी ही सटीक है, जितनी सैकड़ों साल पहले थी। पैसा आपको अहंकार की ऊंची मीनार पर चढ़ा सकता है, लेकिन सुख और चैन? वे तो उस मीनार की सीढ़ियों पर भी नहीं मिलते। आइए, इस विषय पर एक व्यंग्यात्मक नजर डालें।

पैसा और अहंकार: एक अटूट जोड़ी

पैसा और अहंकार का रिश्ता तो ऐसा है, मानो दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हों। आपने कितनी बार देखा होगा कि जैसे ही किसी की जेब में चार पैसे आते हैं, उसका सिर सातवें आसमान पर चढ़ जाता है? महंगी गाड़ियां, डिजाइनर कपड़े, और आलीशान बंगले—ये सब अहंकार के वो सामान हैं, जो पैसों की दुकान से आसानी से खरीदे जा सकते हैं। लोग इन चीजों को खरीदते नहीं, बल्कि इन्हें अपने व्यक्तित्व का हिस्सा बना लेते हैं। "मैं जो हूं, मेरे पास जो है, उसकी वजह से हूं," यह सोच आज के समाज में इतनी गहरी पैठ बना चुकी है कि लोग अपनी पहचान को ही अपनी संपत्ति से जोड़ लेते हैं।

लेकिन यह अहंकार कितना खोखला होता है, यह तब पता चलता है जब पैसा साथ छोड़ देता है। जिस व्यक्ति को कल तक लोग "साहब" कहकर झुकते थे, वही आज "कौन?" बन जाता है। पैसा आपको वह अहंकार देता है, जो दूसरों की नजरों में आपको बड़ा दिखाता है, लेकिन अपने आप में? वहां तो आप वही पुराने, असुरक्षित, और खाली इंसान रहते हैं। पैसा आपको यह भ्रम दे सकता है कि आप दुनिया के मालिक हैं, लेकिन यह भ्रम तब टूटता है जब आप रात को अकेले में अपने मन की शांति के लिए तरसते हैं।

सुख-चैन: वह अनमोल खजाना

अब बात करते हैं सुख और चैन की, जो पैसे की दुकान में नहीं बिकते। सुख और चैन वे अनमोल रत्न हैं, जो न तो सोने-चांदी से खरीदे जा सकते हैं, न ही बैंक बैलेंस से हासिल किए जा सकते हैं। आप कितना भी पैसा खर्च कर लें, लेकिन अगर आपके परिवार में प्यार नहीं, दोस्तों में विश्वास नहीं, और मन में संतुष्टि नहीं, तो वह पैसा सिर्फ एक ढेर कागज है। आज के दौर में लोग सुख को भौतिक सुख-सुविधाओं से जोड़ लेते हैं। बड़ा टीवी, लग्जरी कार, विदेशी छुट्टियां—लोग सोचते हैं कि ये चीजें उन्हें खुश कर देंगी। लेकिन कितनी बार ऐसा होता है कि ये सब हासिल करने के बाद भी मन में एक अजीब-सी खालीपन रह जाता है?

यह खालीपन इसलिए आता है क्योंकि सुख और चैन का असली स्रोत पैसा नहीं, बल्कि रिश्ते, आत्म-संतुष्टि, और मानसिक शांति हैं। पैसा आपको पांच-सितारा होटल में रात बिताने का टिकट दे सकता है, लेकिन नींद? वह तो आपके मन की शांति पर निर्भर करती है। पैसा आपको दुनिया का सबसे महंगा खाना खिला सकता है, लेकिन स्वाद? वह तो आपके अपनों के साथ हंसी-मजाक में खाए गए सादे भोजन में होता है। यह विडंबना ही है कि लोग पैसे के पीछे भागते-भागते उन चीजों को खो देते हैं, जो असल में सुख और चैन देती हैं।

व्यंग्य का असली निशाना

यहां असली व्यंग्य उस समाज पर है, जो पैसे को भगवान का दर्जा देता है। हमारा समाज हमें सिखाता है कि पैसा ही सब कुछ है। "पैसा बोलता है," "पैसा ही शक्ति है," जैसे जुमले हमारी सोच में इस कदर घुस गए हैं कि हमने सुख और चैन को ताक पर रख दिया है। लोग दिन-रात मेहनत करते हैं, तनाव झेलते हैं, रिश्ते तोड़ते हैं, सिर्फ इसलिए कि उनकी जेब में और पैसा आए। लेकिन क्या यह पैसा उन्हें वह खुशी देता है, जिसके लिए वे इतना सब करते हैं? जवाब ज्यादातर मामलों में "नहीं" होता है।

और फिर, जब लोग पैसे के पीछे भागते-भागते थक जाते हैं, तब उन्हें एहसास होता है कि असली सुख तो उन छोटी-छोटी चीजों में था, जो उन्होंने अनदेखा कर दिया। वह हंसी, जो बचपन में दोस्तों के साथ ठहाकों में मिलती थी। वह सुकून, जो मां के हाथ के खाने में था। वह चैन, जो रात को बिना किसी चिंता के सोने में था। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। पैसा तो उनके पास होता है, लेकिन सुख और चैन? वे कहीं पीछे छूट गए होते हैं।

निष्कर्ष

तो, यह है पैसे की वह मायावी दुनिया, जहां अहंकार तो सस्ते में मिल जाता है, लेकिन सुख और चैन अनमोल हैं। पैसा आपको ऊंची कुर्सी पर बिठा सकता है, लेकिन वह कुर्सी कितनी आरामदायक होगी, यह आपके मन की शांति पर निर्भर करता है। समाज हमें पैसे का पीछा करने की दौड़ में शामिल होने को कहता है, लेकिन असली समझदारी इसमें है कि हम इस दौड़ में अपने सुख और चैन को पीछे न छोड़ दें। आखिर, पैसा तो आता-जाता रहेगा, लेकिन सुख और चैन? वे एक बार खो गए, तो फिर लौटकर नहीं आते।

इसलिए, अगली बार जब आप पैसे के पीछे भागें, तो जरा ठहरकर सोच लें—क्या आप अहंकार खरीदने की जल्दी में हैं, या सुख और चैन को पाने की कोशिश में? जवाब आपकी जिंदगी का रास्ता तय करेगा।

राजेंद्र नाथ तिवारी

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