बस्ती का हेल्थ माफ़िया: जांच रिपोर्ट और संपादकीय चेतावनी
बस्ती जिले में स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण के साथ-साथ सरकारी निगरानी के कमजोर होने ने एक संगठित “हेल्थ माफ़िया” को जन्म दिया है। निजी नर्सिंग-होम और क्लिनिक केवल इलाज के लिए नहीं, बल्कि मुनाफ़ा कमाने की मशीन बन गए हैं। इस प्रक्रिया में न केवल मरीज आर्थिक रूप से लुट रहे हैं, बल्कि उनके जीवन के साथ भी खिलवाड़ हो रहा है।
शामिल अस्पताल और संस्थान
नूर अस्पताल, गोल्डन हॉस्पिटल, आयशा हॉस्पिटल, स्टार हॉस्पिटल, सागर हॉस्पिटल, डिलाइट हॉस्पिटल, हयात हॉस्पिटल, गोल्डन हॉस्पिटल बनकटी, बटागली एक्स-रे, मरियम हॉस्पिटल जिगिना, जियान अस्पताल, एस.एस. अस्पताल, आइडियल हॉस्पिटल, कृष्णा इंस्टिट्यूट, जीवन ज्योति हॉस्पिटल—इन नामों को बस्ती की जनता अब भरोसे के नहीं, भय के प्रतीक के रूप में पहचानने लगी है।
मुख्य आरोप और पैटर्न
- अनियमित पंजीकरण – कई अस्पताल कमजोर या लापता लाइसेंस पर चल रहे हैं; निरीक्षण वर्षों से नहीं हुआ।
- BUMS डिग्रीधारी डॉक्टरों द्वारा सर्जरी – कानूनी रूप से वर्जित होते हुए भी खुलेआम।
- रेफ़रल माफ़िया नेटवर्क – मरीजों को जानबूझकर महंगे टेस्ट सेंटर और बड़े अस्पताल भेजा जाता है, कमीशन वसूला जाता है।
- ओवरचार्जिंग और फर्जी बिलिंग – इंजेक्शन, दवाइयाँ और जांचों पर 100% से 500% तक अतिरिक्त वसूली।
- अत्यधिक दवा और ऑपरेशन – अनावश्यक एंटीबायोटिक, आईसीयू में फालतू भर्ती और बेवजह ऑपरेशन।
- शिकायतों की अनदेखी – सीएमओ कार्यालय में शिकायतें दबाई जाती हैं, जवाब महीनों तक नहीं आता।
जमीनी असर
- गरीब परिवार कर्ज और बर्बादी में धकेले जा रहे हैं।
- स्थानीय लोगों का सरकारी अस्पतालों और स्वास्थ्य सेवाओं पर भरोसा टूट रहा है।
- मेडिकल नैतिकता लगभग समाप्त—इलाज मुनाफ़े के हिसाब से तय होता है, मरीज की जरूरत से नहीं।
साक्ष्य एकत्र करने के तरीके
- मरीजों के बिल, रेफ़रल नोट और मेडिकल रिकॉर्ड की प्रतियां।
- CMO कार्यालय से निरीक्षण रिपोर्ट और पंजीकरण फाइलें (RTI द्वारा)।
- पीड़ित मरीजों के लिखित/रिकॉर्डेड बयान।
- एक ही लैब/फार्मेसी के साथ जुड़े रेफ़रल पैटर्न का डेटा।
तत्काल अनुशंसित कार्रवाई
- 48 घंटे के भीतर रेड-टीम निरीक्षण — बिना लाइसेंस/नियम विरुद्ध चल रहे अस्पताल तत्काल सील।
- लाइसेंस और दर सूची सार्वजनिक — हर नर्सिंग-होम के प्रवेश द्वार पर प्रदर्शित।
- रेफ़रल कमीशन पर रोक — उल्लंघन पर लाइसेंस निरस्तीकरण और आपराधिक मामला।
- शिकायत फास्ट-ट्रैक — 15 दिन के भीतर अनिवार्य निपटान, देरी पर दंड।
- जन-जागरूकता अभियान — “आपका बिल, आपका अधिकार” जैसी पहल।
संपादकीय चेतावनी
बस्ती में स्वास्थ्य व्यवस्था अब बीमार है—यह मुनाफ़े के आईसीयू में भर्ती है और उसे वेंटिलेटर पर सरकार ने रखा है। इन अस्पतालों को सिर्फ़ मुनाफ़ा कमाने के ठिकाने में बदलने वाले डॉक्टर और संचालक उतने ही जिम्मेदार हैं, जितने इन पर आंख मूंद लेने वाले अधिकारी।
यदि अब भी कार्रवाई नहीं हुई तो अगली बड़ी त्रासदी के बाद केवल प्रेस कॉन्फ्रेंस और माफ़ीनामे बचेंगे, मरीज नहीं। यह लड़ाई केवल स्वास्थ्य विभाग की नहीं—हर जागरूक नागरिक की है।