जनक भूमि से जगत गुरु तक — भारत की वैचारिक यात्रा
"जनक भूमि से जगत गुरु तक" केवल एक नारा नहीं, बल्कि यह भारत की उस सभ्यता-यात्रा का बोध है जिसने विश्व को विचार, संस्कार और समाधान दिए। भारत का इतिहास केवल भौगोलिक या राजनीतिक उत्थान-पतन की गाथा नहीं है, यह एक वैचारिक धरोहर है जिसमें धर्म, दर्शन, विवेक और वैश्विक कल्याण की भावना केंद्र में रही है।
भारत की पहचान भोगवादी साम्राज्य नहीं, बल्कि त्याग, तप, और ज्ञान में स्थित एक विश्वगुरु राष्ट्र की रही है। आज, जब विश्व फिर से भारत की ओर देख रहा है, तब इस अवधारणा को समझना और दोहराना आवश्यक है।
1. जनक भूमि: भारत की आत्मा का प्रतीक
"जनक" मिथिला के वे महान राजर्षि थे जिन्होंने शास्त्र और शासन दोनों में संतुलन बनाया। उनके द्वार पर याज्ञवल्क्य जैसे ऋषि जाते हैं, और वही जनक "विदेह" कहलाते हैं — जो देह की सीमाओं से परे ज्ञान में स्थित हैं।
- जनक भूमि केवल भौगोलिक संकेत नहीं, यह भारत की वैचारिक जड़ों की ओर इशारा है।
- यही भूमि "राम" और "सीता" जैसी आदर्श व्यक्तित्वों की जननी है — एक मर्यादा का प्रतीक, दूसरा त्याग और सहनशीलता की मूर्ति।
भारत का मूल स्वभाव जनक जैसा है — न्यायप्रिय, विवेकी, और आत्मज्ञानी।
2. वैदिक दृष्टि से वैश्विक दायित्व तक
भारत की संस्कृति ने सदा यह माना कि “एकं सद् विप्रा बहुधा वदन्ति” — सत्य एक है, ज्ञानी उसे अनेक रूपों में कहते हैं।
- हमारी सभ्यता सामूहिक कल्याण की अवधारणा पर आधारित रही — चाहे वह गृहस्थ धर्म हो या राजधर्म।
- ऋग्वेद से लेकर गीता तक, भारत की आत्मा में दायित्वबोध है — शक्ति हो पर संयमित हो, ज्ञान हो पर अहंकारविहीन हो।
इसलिए भारत ‘जग’ को जीतने नहीं, ‘जग’ को जोड़ने निकला।
3. भारत का वैश्विक योगदान — विचार से विजय
- तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला जैसे ज्ञान केंद्रों से निकले विचारकों ने बौद्धिक उपनिवेश नहीं, बल्कि आध्यात्मिक प्रेरणा दी।
- बौद्ध धर्म, योग, आयुर्वेद, गणित, दर्शन — भारत की सभी देनें मनुष्य को भीतर से समृद्ध करती हैं।
- स्वामी विवेकानंद जब शिकागो में बोले, तो यह ‘वाणी की शक्ति’ नहीं, ‘भारत की आत्मा’ बोल रही थी।
भारत तलवार से नहीं, तर्क और तप से विश्वगुरु बना।
4. समकालीन भारत — पुनः वैचारिक नेतृत्व की ओर
21वीं सदी में भारत केवल एक उभरती अर्थव्यवस्था नहीं, बल्कि एक उभरता हुआ मूल्य-आधारित नेतृत्वकर्ता है।
- अंतरराष्ट्रीय योग दिवस, वसुधैव कुटुम्बकम् का G20 थीम, चंद्रयान-3 की सफलता — यह सब संकेत हैं कि भारत ज्ञान और विज्ञान दोनों में अग्रणी भूमिका में है।
- आज दुनिया युद्ध और स्वार्थ से त्रस्त है, ऐसे में भारत का "ध्यानमूलक समाधान, संवादमूलक संस्कृति और सह-अस्तित्व का दर्शन" मानवता को नई दिशा दे सकता है।
5. जनक भूमि से जगत गुरु तक — एक सतत यात्रा
यह यात्रा एक वंश की नहीं, यह यात्रा एक विचारधारा की है।
यह भारत की उस भावना की यात्रा है जिसमें,सत्ता में संयम है, संपत्ति में सेवा है,शक्ति में शील है।
भारत को ‘जगत गुरु’ बनना है तो केवल टेक्नोलॉजी से नहीं, सांस्कृतिक चेतना और नैतिक नेतृत्व से बनना होगा।
“जनक भूमि से जगत गुरु तक” भारत के राष्ट्रत्व का वैचारिक घोष है।
यह स्मरण कराता है कि:“भारत भूमि केवल धरा नहीं, यह धरोहर है।यह मिट्टी केवल उगाती नहीं, यह चेतना जागृत करती है।”
आज आवश्यकता है कि भारत अपने ‘जनक’ स्वरूप को पहचानकर, ‘जगत गुरु’ के दायित्व को निभाए।
धर्म, ज्ञान और करुणा की जिस भूमि से यात्रा आरंभ हुई थी, उसी को आधार बनाकर भारत विश्व का नैतिक मार्गदर्शक बने — यही समय की पुकार है।....क्रमशः