"121 करोड़ मोबाइल उपभोक्ताओं पर ‘साइबर सुरक्षा’ की तलवार!"

 







  साइबर सुरक्षा या डिजिटलनियंत्रण
?"121 करोड़ मोबाइल उपभोक्ताओं पर ‘साइबर सुरक्षा’ की तलवार!"  भारत सरकार एक नया नियम लाने जा रही है — दूरसंचार साइबर सुरक्षा नियम 2024 में संशोधन। नाम सुनने में भले ही तकनीकी लगे, लेकिन इसके प्रभाव बेहद व्यावहारिक और व्यापक हैं। यह सिर्फ संचार मंत्रालय की कवायद नहीं, बल्कि यह भारत के 121 करोड़ मोबाइल उपभोक्ताओं, डिजिटल कारोबार, और डिजिटल निजता के मूलभूत ढांचे को बदल देने वाला प्रस्ताव है।

 सरकार क्या कर रही है? सरकार ने एक नया वर्ग गढ़ा है — TIUE (Telecom Identifier User Entities), जिसमें हर वह डिजिटल सेवा शामिल है जो मोबाइल नंबर या OTP से जुड़ी पहचान का उपयोग करती है — चाहे वह बैंकिंग ऐप हो, फूड डिलीवरी, ई-कॉमर्स साइट, या कोई वीडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म। ऐसे सभी मंचों को अब सरकार के बनाए केंद्रीय मोबाइल नंबर सत्यापन प्लेटफॉर्म (MNV) से मोबाइल नंबर जांच करवाने होंगे। और इसके लिए प्रति अनुरोध ₹1.5 से ₹3 का शुल्क लगेगा। साफ है — सरकार चाहती है कि हर डिजिटल उपस्थिति को नियंत्रित और ट्रैक किया जा सके।
 समस्या क्या है? 1. लागत का बोझ — नवाचार पर वार कई डिजिटल कंपनियों (Zomato, PhonePe, Swiggy, आदि) के लिए OTP के ज़रिए पहचान सत्यापन एक रूटीन है। अगर हर चेक पर उन्हें ₹3 खर्च करना पड़े, तो यह सालाना करोड़ों का खर्च होगा। एक स्टार्टअप जो अभी अपने पैर पसार रहा है, वह इस लागत को कैसे वहन करेगा?  निजता पर प्रश्न ,यदि हर मोबाइल नंबर सरकार के केंद्रीकृत सर्वर से होकर गुज़रेगा, और हर डिजिटल पहचान वहीं से सत्यापित होगी — तो क्या यह डिजिटल निगरानी का नया मॉडल नहीं है?
क्या यह नागरिक की स्वतंत्रता और डेटा गोपनीयता के साथ समझौता नहीं है?

 लोकतांत्रिक पारदर्शिता का अभाव 
क्या इन नियमों पर कोई सार्वजनिक बहस हुई? क्या नागरिकों, स्टार्टअप्स, उद्योग संगठनों की राय ली गई?
उत्तर है — नहीं। सरकार की मंशा क्या है? सरकार का दावा है कि यह कदम साइबर फ्रॉड और स्पूफ़िंग से लड़ने के लिए है। निश्चित रूप से, मोबाइल आधारित धोखाधड़ी एक गंभीर समस्या है, और सरकार को इससे निपटने का अधिकार है। लेकिन क्या समाधान ऐसा हो जो नए संकट पैदा कर दे?

 सुरक्षा के नाम पर अगर निजता समाप्त हो जाए, तो वह लोकतंत्र नहीं, एक नियंत्रित शासन होता है।सवाल जो उठाए जाने चाहिए क्या ये नियम सिर्फ बड़े कॉर्पोरेट्स को फायदा पहुंचाएंगे और छोटे स्टार्टअप्स को खत्म करेंगे? क्या यह एक नए सरकारी डेटाबेस युग की शुरुआत है, जहाँ हर क्लिक, लॉगिन, और पहचान सरकारी मंज़ूरी से चलेगी? क्या इसमें किसी न्यायिक या स्वतंत्र निगरानी तंत्र का प्रावधान है? भारत आज डिजिटल क्रांति के शिखर पर है — UPI, डिजिलॉकर, ONDC जैसी पहलों ने दुनिया को दिखाया है कि भारत बिना विदेशी मॉडल के भी आत्मनिर्भर हो सकता है। लेकिन यदि वही सरकार केंद्र से हर मोबाइल क्रिया नियंत्रित करने की मंशा रखे, तो यह आत्मनिर्भरता नहीं, आत्म-नियंत्रण की शुरुआत है।

हर नियम, चाहे वह सुरक्षा के नाम पर हो या तकनीकी कारण से, यदि वह जनता के अधिकारों, निजता, और डिजिटल आज़ादी पर अंकुश लगाए, तो उसे सिर्फ नियम नहीं कहा जा सकता – उसे नीतिगत खतरा कहा जाना चाहिए।

सरकार को चाहिए कि वह इन नियमों को लागू करने से पहले सार्वजनिक बहस, उद्योग संवाद, और न्यायिक समीक्षा की व्यवस्था करे। सुरक्षा जरूरी है, पर निगरानी के बिना आज़ादी नहीं होती।
बस्ती उत्तरप्रदेश से राजेंद्र नाथ तिवारी




 

Post a Comment

Previous Post Next Post

Contact Form