2027 के पूर्व योगी सेना की बड़ी चूक,अपने कुनबे पर ही प्रहार

 लखनऊ से  मनोज श्रीवास्तव


इतिहास अक्सर वर्तमान की राजनीति और प्रशासन पर गहरी छाप छोड़ता है। सिकंदर और पोरस का युद्ध इसका सटीक उदाहरण है। पोरस ने जिस सेना और हाथियों पर भरोसा किया, वही अंततः उसकी हार का कारण बने। बाराबंकी प्रकरण में यही दृश्य दुबारा जीवित हो उठा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पुलिस, जो सरकार की ताक़त और अनुशासन की प्रतीक मानी जाती है, उसी ने अपने ही वैचारिक कुनबे—अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के छात्रों पर डंडा चला दिया। यह ठीक वैसा ही था जैसे युद्धभूमि में पोरस के हाथी घबरा कर अपनी ही सेना को कुचलने लगे थे।

यह घटना सिर्फ़ पुलिसिया अतिरेक नहीं है, बल्कि सत्ता और संगठन के बीच बने उस विरोधाभास का प्रतीक है, जो चुनावी साल नज़दीक आते-आते और गहराता जाएगा। एबीवीपी के छात्र शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे थे, उनका मुद्दा भी गंभीर था—कानून की पढ़ाई जैसी संवेदनशील शिक्षा बिना बार काउंसिल की मान्यता के कराई जा रही थी। सवाल था युवाओं के भविष्य और करियर का। लेकिन इसे संवाद से सुलझाने की जगह लाठीचार्ज का सहारा लिया गया। नतीजा वही हुआ जो पोरस के युद्ध में हुआ था—अपनों को ही कुचलने का दृश्य।

घटना के बाद विपक्ष को मौका मिल गया। समाजवादी पार्टी, कांग्रेस, शिवसेना जैसी पार्टियों की छात्र इकाइयों ने विरोध जताकर सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया। यह विरोध इतना असरदार था कि सरकार को तत्कालीन सीओ सिटी को हटाना पड़ा, कोतवाल और चौकी इंचार्ज को लाइन हाजिर करना पड़ा। यानी सरकार ने अप्रत्यक्ष रूप से स्वीकार किया कि पुलिस से गलती हुई थी।

लेकिन सबसे अहम प्रश्न यह है कि यह गलती कैसे और क्यों हुई? क्या स्थानीय प्रशासन ने मुख्यमंत्री की छवि बचाने के चक्कर में अति उत्साह दिखाया? या फिर पुलिस तंत्र में संवादहीनता इतनी गहरी हो चुकी है कि उसे छात्र-युवाओं की जायज़ पीड़ा समझ ही नहीं आती?

इतिहास सिखाता है कि पोरस के हाथियों का पलटना केवल सेना की हार नहीं थी, बल्कि रणनीति और नेतृत्व की असफलता का प्रतीक था। ठीक वैसे ही बाराबंकी में पुलिस की यह कार्रवाई योगी सरकार के नेतृत्व के लिए चेतावनी है कि अगर राज्य का प्रशासन अपनी ही विचारधारा के अनुयायियों पर प्रहार करेगा तो विपक्ष को कहीं से मौका खोजने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी।

इस घटना ने साफ़ कर दिया है कि "पोरस के हाथी" वाली भूल अब भी दोहराई जाती है। फर्क सिर्फ़ इतना है कि तब तीर चलते थे, अब लाठियाँ। पोरस ने युद्ध हारा था, लेकिन योगी सरकार को यह समझना होगा कि अगर ऐसी घटनाएँ बार-बार होती रहीं तो 2027 की चुनावी जंग में उसकी अपनी "सेना" ही उसका सबसे बड़ा संकट बन सकती है।

ज्ञातव्य है संगठन मंत्री धर्म पाल संकट मोचन का पूरा प्रयास कर रहे है 


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