मदरसे पर अवैध कब्ज़ा, प्रशासन मौन
बस्ती/कप्तानगंज।
कप्तानगंज क्षेत्र के मदरसे को लेकर गंभीर अनियमितताओं का मामला सामने आया है। पुराने उपजिलाधिकारी (एसडीएम) और लेखपाल की लिखित रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से यह उल्लेख है कि मदरसे द्वारा सरकारी ज़मीन पर कब्ज़ा किया गया है। इसके बावजूद मदरसा प्रबंधन न केवल सरकारी लाभ और छूट प्राप्त कर रहा है, बल्कि कागज़ों में हेरफेर करके अपने पक्ष को मजबूत करने का प्रयास कर रहा है।
जानकारी के अनुसार, लेखपाल द्वारा दी गई रिपोर्ट और पूर्व एसडीएम द्वारा किए गए प्रमाणीकरण को आज तक प्रशासन ने संज्ञान में नहीं लिया। जबकि यह पूरा मामला जिलाधिकारी बस्ती और वर्तमान एसडीएम हरैया के संज्ञान में है।
स्थानीय नागरिकों का आरोप है कि इस मामले में कार्रवाई न होना प्रशासनिक उदासीनता और मिलीभगत को दर्शाता है। लोगों का कहना है कि IGRS जैसी शिकायत निस्तारण प्रणाली भी ऐसे मामलों में विफल हो रही है, क्योंकि शिकायतें दर्ज तो हो रही हैं लेकिन कार्रवाई का कोई परिणाम सामने नहीं आता।
अब देखना यह होगा कि जिला प्रशासन इस पर कब और कैसी ठोस कार्यवाही करता है
अवैध कब्ज़ा और प्रशासन की चुप्पी: बस्ती की व्यवस्था पर सवाल बस्ती जनपद में कप्तानगंज का मदरसा आज प्रशासन की नाकामी का जीता-जागता उदाहरण बन चुका है। पुराने एसडीएम और लेखपाल की रिपोर्ट में जब साफ़-साफ़ लिख दिया गया कि मदरसे की ज़मीन पर कब्ज़ा है, तो आखिर जिला प्रशासन क्यों चुप है? क्या वजह है कि जिस मदरसे पर अवैध कब्ज़े का ठप्पा लग चुका है, वही सरकारी लाभ और छूट पाने में सफल हो रहा है?
क्या प्रशासन दबाव में है या साठगाँठ में? यह सिर्फ़ ज़मीन कब्ज़े का मामला नहीं है, बल्कि प्रशासन की विश्वसनीयता पर गहरा प्रश्नचिह्न है। अगर लेखपाल और एसडीएम की रिपोर्ट के बावजूद कोई कार्यवाही न हो, तो फिर जनता किस पर विश्वास करे?
IGRS जैसी व्यवस्था जनता को न्याय दिलाने के लिए बनी थी, लेकिन आज यही व्यवस्था चौपट हो गई है। शिकायतें कागज़ों में दर्ज हो रही हैं और फाइलों में दब रही हैं। नतीजा यह कि अवैध कब्ज़ाधारी फल-फूल रहे हैं और आम नागरिक ठगा जा रहा है।
बस्ती का प्रशासन यदि अब भी कार्रवाई नहीं करता तो यह साबित होगा कि प्रशासन जनता का नहीं, कब्ज़ाधारियों का सेवक बन चुका है। यह हालात न सिर्फ़ निंदनीय हैं बल्कि खतरनाक भी.