आजमगढ़: उत्तर प्रदेश और यूपी पुलिस से जुड़ा एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है। आजमगढ़ पुलिस में एक थाने पर तैनात होमगार्ड प्रदेश का बड़ा गैंगस्टर निकला, लेकिन किसी को इसकी भनक तक नहीं लगी। हैरानी की बात ये भी है कि मुबारकपुर थाने के प्रभारी इसी गैंगस्टर होमगार्ड निरंकार राम मालखाने की सुरक्षा की जिम्मेदारी देते चले आ रहे थे। इस बात का खुलासा होते ही अब प्रदेश और यूपी पुलिस डिपार्टमेंट में हड़कंप मच गया है
"वर्दी में गैंगस्टर: कानून की रखवाली , अपराध का पहरा?"
"आज़मगढ़ मुबारकपुर थाने का खुलासा सिर्फ़ एक होमगार्ड की करतूत नहीं, बल्कि भर्ती से लेकर विभागीय निगरानी तक पूरे सिस्टम
वर्दी में गैंगस्टर – व्यवस्था की आँख में धूल
आज़मगढ़ के एक थाने पर तैनात होमगार्ड का “गैंगस्टर” निकलना महज़ एक सनसनीख़ेज़ घटना नहीं है, बल्कि हमारी सुरक्षा व्यवस्था के गहरे सड़ांध भरे ज़ख्म को उजागर करता है। यह सिर्फ़ एक व्यक्ति की आपराधिक पृष्ठभूमि का मामला नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की नाकामी और लापरवाही की जीवंत मिसाल है।
सबसे पहले सवाल भर्ती और तैनाती प्रक्रिया पर उठता है। किसी भी सुरक्षा बल में शामिल होने से पहले विस्तृत चरित्र सत्यापन अनिवार्य होता है, पर यहाँ लगता है कि या तो काग़ज़ी खानापूर्ति कर ली गई या फिर जानबूझकर आँखें मूँद ली गईं। वर्दी थमाने से पहले यह देखना जरूरी है कि वह व्यक्ति अपराधी मानसिकता का तो नहीं, लेकिन यहाँ तो अपराधी को ही कानून की रखवाली सौंप दी गई।
थाने और विभाग की भूमिका भी उतनी ही संदिग्ध है। जिस थाने में यह होमगार्ड तैनात था, वहां के अफ़सर क्या उसकी गतिविधियों से अनजान थे? या फिर यह “जानकारी” जानबूझकर दबाई गई, क्योंकि अपराधी को अंदर से सुरक्षा देने वाले हाथ वहीं मौजूद थे? अगर यह सच है तो यह सिर्फ़ नैतिक नहीं बल्कि कानूनी अपराध भी है।
इस घटना ने एक बार फिर साबित किया कि जब अपराधी वर्दी में घुस जाते हैं, तो कानून का पहरा लूटेरों के हाथों में बंदूक सौंपने जैसा है। इससे गैंग को न सिर्फ़ थानों की अंदरूनी जानकारी मिलती है, बल्कि गिरफ्तारी और कार्रवाई से बचने का भी रास्ता साफ़ हो जाता है। सबसे बड़ा नुकसान जनता के भरोसे का होता है — और यह भरोसा टूट जाए तो कानून व्यवस्था महज़ काग़ज़ पर बचती है।
अब समय है कि इस मामले को ‘एक व्यक्ति की गलती’ कहकर दबाया न जाए। जरूरत है पूरी भर्ती प्रक्रिया की पुनः जांच, सभी तैनात कर्मियों का वार्षिक चरित्र सत्यापन, और संदिग्धों पर कड़ी तकनीकी निगरानी की। जो अफसर इस लापरवाही के लिए जिम्मेदार हैं, उन्हें भी कठघरे में खड़ा करना होगा।
वर्दी में गैंगस्टर सिर्फ़ एक थाने की गलती नहीं, बल्कि पूरी व्यवस्था की बीमारी का लक्षण है। इलाज तभी होगा जब हम लक्षण नहीं, बीमारी पर प्रहार करेंगे। वरना जनता का सवाल हमेशा गूंजता रहेगा “जब रखवाले ही डाकू बन जाएं, तो भरोसा किस पर करें?”.