विभाजन की विभीषिका: कांग्रेस क्यों बोली ‘उलटबांसी’?
भारत का विभाजन केवल एक भौगोलिक घटना नहीं था, यह सभ्यता पर पड़ा सबसे बड़ा घाव था। लाखों लाशें, करोड़ों बेघर, टूटी हुई परंपराएँ और रिश्ते—इतिहास का ऐसा काला पन्ना जिसे कोई भी संवेदनशील राष्ट्र कभी भूल नहीं सकता। लेकिन जब प्रधानमंत्री ने 14 अगस्त को “विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस” घोषित किया, तो कांग्रेस ने इसे “उलटबांसी” कह दिया। सवाल यह है कि जो त्रासदी लाखों भारतीयों के खून से लिखी गई, उसे याद करना उलटबांसी कैसे हो गया?
कांग्रेस का राजनीतिक डर
कांग्रेस जानती है कि विभाजन की स्मृति का ज़िक्र होते ही उंगलियाँ उसकी ओर उठेंगी। आखिर 1947 में सत्ता की चाबी उसके हाथों में थी। ब्रिटिशों के साथ समझौते उसने किए, सीमाएँ उसने स्वीकार कीं और पाकिस्तान बनने का रास्ता उसी ने खोला। यह बोझ कांग्रेस के कंधों पर आज भी है। इसलिए जब विभाजन की विभीषिका को याद करने की बात होती है तो कांग्रेस बौखला जाती है।
धर्मनिरपेक्षता का ढाल
कांग्रेस की राजनीति का एक बड़ा आधार मुस्लिम तुष्टिकरण रहा है। विभाजन की त्रासदी का सच यह है कि सांप्रदायिक दंगों में मुख्य रूप से हिंदू और सिखों ने सबसे ज्यादा कीमत चुकाई। यदि यह विमर्श खुले में आएगा तो कांग्रेस की बनाई “धर्मनिरपेक्ष छवि” दरक जाएगी और उसका वोट बैंक असहज हो जाएगा। इसीलिए कांग्रेस इसे “उलटबांसी” कहकर दबाना चाहती है।
सत्ता से विपक्ष तक का द्वंद्व
भाजपा चाहती है कि विभाजन की पीड़ा एक राष्ट्रीय स्मृति बने, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ जानें कि देश को तोड़ने की कीमत क्या होती है। लेकिन कांग्रेस को यह कदम सीधे अपनी असफलता की याद दिलाता है। उसे लगता है कि भाजपा इस स्मृति को “राष्ट्रवादी एजेंडा” बनाकर उसकी विफलताओं को जनता के सामने परोसेगी। यही कारण है कि कांग्रेस बौखलाहट में इसे “उलटबांसी” कह बैठती है।
इतिहास से भागना या सच स्वीकारना?
कांग्रेस का रुख दरअसल इतिहास से भागने की कोशिश है। जर्मनी ने होलोकॉस्ट की भयावह स्मृति को शिक्षा का हिस्सा बनाया ताकि आने वाली पीढ़ियाँ गलती न दोहराएँ। पर भारत में विभाजन जैसे महा-त्रासदी को कांग्रेस केवल इसलिए भुलाना चाहती है क्योंकि इससे उसकी पोल खुलती है। क्या करोड़ों शहीदों और शरणार्थियों की स्मृति को “उलटबांसी” कह देना उचित है?
निष्कर्ष
सच यह है कि विभाजन किसी एक दल की विफलता नहीं, बल्कि पूरे नेतृत्व की कमजोरी थी। मगर कांग्रेस की सबसे बड़ी गलती यही है कि वह आज भी अपनी जिम्मेदारी स्वीकार करने के बजाय आँखें मूँदकर इसे “उलटबांसी” कह रही है। इतिहास से भागकर कोई दल खुद को बचा नहीं सकता। विभाजन की विभीषिका को स्मरण करना केवल राजनीति नहीं, बल्कि उन लाखों पीड़ित आत्माओं के प्रति हमारा नैतिक कर्तव्य है।