राहुल और विपक्ष : लोकतंत्र के नाम पर नौटंकी
एभारत का लोकतंत्र दुनिया का सबसे बड़ा है, लेकिन इसके लिए सबसे बड़ा बोझ आज का विपक्ष है। विपक्ष वह ताक़त होता है जो सत्ता को आईना दिखाए, विकल्प दे, जनता की आवाज़ उठाए। लेकिन हमारे यहाँ विपक्ष की हालत यह है कि राहुल गांधी और उनकी टोली ने इसे कॉमेडी सर्कस बना दिया है।
राहुल गांधी संसद में बोलते हैं तो लगता है जैसे कॉलेज का नाकाम छात्र बिना तैयारी के वाइवा दे रहा हो। कभी कहते हैं कि “मुझे बोलने नहीं दिया गया”, कभी कहते हैं “मोदी जी डरे हुए हैं”। असल में डर जनता को है—डर इस बात का कि देश की सबसे पुरानी पार्टी का नेतृत्व ऐसे हाथों में है जिसे खुद अपनी बात समझ में नहीं आती।
कांग्रेस हो या अन्य विपक्षी दल, सबका एजेंडा एक ही है—मोदी हटाओ, चाहे भारत मिटाओ। जब मोदी गरीब को मुफ्त राशन देते हैं, तो इन्हें उसमें भी खोट नजर आता है। जब मोदी किसान के लिए योजना लाते हैं, तो ये उसे जुमला कहते हैं। और जब सेना पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक करती है, तो ये सबूत मांगकर दुश्मन के सुर में सुर मिलाते हैं। कौटिल्य होते तो कहते—“यह विपक्ष नहीं, यह राज्यद्रोह की नकल है।”
हकीकत यह है कि विपक्ष का असली धंधा अब “परिवार बचाओ” बन गया है। कांग्रेस राहुल बाबा को प्रधानमंत्री बनते देखने का अधूरा सपना पाल रही है, समाजवादी पार्टी अखिलेश की साइकिल के पंचर में हवा भर रही है, आरजेडी लालू वंश का “जमानत युग” बचाने में लगी है, टीएमसी ममता का दरबार है और डीएमके करुणानिधि परिवार की दुकान। जनता पूछती है—देश कौन चलाएगा? परिवार या राष्ट्र?
आज का विपक्ष संसद में मुद्दे नहीं, माइक तोड़ने और नारे लगाने में विशेषज्ञ है। टीवी कैमरा देखे बिना यह लोग बोलते ही नहीं। असल मुद्दों पर बहस करना तो मानो इन्हें अपमान लगता है। यही कारण है कि जनता हर चुनाव में इन्हें किनारे कर देती है।
कौटिल्य ने कहा था—“राजनीति का पहला धर्म लोकहित है।” लेकिन विपक्ष का धर्म है केवल लोकलाज का मज़ाक उड़ाना। यह वही विपक्ष है जो चीन पर चुप, पाकिस्तान पर मौन, लेकिन मोदी पर दिन-रात भौंकता है। इसे राष्ट्र की चिंता नहीं, बल्कि अपनी कुर्सी की भूख है।
सच यह है कि भारत का लोकतंत्र विपक्ष की वजह से नहीं, बल्कि जनता की समझदारी और मोदी सरकार की नीतियों से जिंदा है। विपक्ष आज लोकतंत्र का प्रहरी नहीं, बल्कि लोकतंत्र पर कलंक है।
अगर राहुल गांधी और उनके साथी ऐसे ही नकारात्मकता के नशे में डूबे रहे, तो आने वाली पीढ़ियाँ इन्हें केवल एक सबक की तरह पढ़ेंगी—कैसे सत्ता पाने की भूख ने विपक्ष को जनता से काटकर इतिहास के कब्रिस्तान में दफना दिया।