सपना सिपाही बनने को था=हकीकत इस्तीफा और खुद कशी की कतार,3568 ने ठुकराई वर्दी

 

 

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यूपी पुलिस की नौकरी से बढ़ती बेरुख़ी — केवल रोजगार नहीं, जीवनशैली की भी चुनौती

उत्तर प्रदेश में बहुचर्चित 60,244 पदों की पुलिस भर्ती प्रक्रिया ने न केवल प्रशासनिक गंभीरता को उजागर किया, बल्कि इससे एक सामाजिक और मानसिक पहलू भी सामने आया है। इतने बड़े पैमाने पर भर्तियों के बाद 3,568 अभ्यर्थियों का नौकरी न जॉइन करना और 100 से अधिक का प्रशिक्षण के दौरान ही इस्तीफा देना यह दर्शाता है कि पुलिस की नौकरी अब सिर्फ “सरकारी नौकरी” नहीं रही, बल्कि यह एक कठिन और अनुशासित जीवनशैली की मांग करती है, जो हर युवा के बस की बात नहीं।

बेरोजगारी की मार झेल रहे समय में जब एक-एक नौकरी के लिए लाखों आवेदन होते हैं, तब यह सवाल गंभीर हो जाता है कि आखिर चयनित होकर भी इतने लोग क्यों पीछे हट रहे हैं? क्या नौकरी पाने की दौड़ में युवाओं ने यह सोचा ही नहीं कि पुलिस की नौकरी का अर्थ है अनुशासन, कठोर दिनचर्या, मानसिक दबाव और कभी-कभी निजी जीवन की पूरी बलि?

दूसरी ओर, पुलिस प्रशिक्षण संस्थानों में आत्महत्या जैसे गंभीर मामले यह संकेत देते हैं कि मानसिक स्वास्थ्य की अनदेखी इस पूरी प्रक्रिया की एक बड़ी चूक है। सिपाही तरुण कुमार की आत्महत्या हो या भूपेंद्र का ज़हर खाना — ये केवल व्यक्तिगत मामले नहीं हैं, बल्कि यह पूरी व्यवस्था की संवेदनशीलता पर प्रश्नचिह्न हैं। भर्ती और प्रशिक्षण के बीच एक ‘मनोवैज्ञानिक पुल’ की आवश्यकता है, जो युवाओं को इस भूमिका के लिए मानसिक रूप से तैयार करे।

गोरखपुर पीटीएस में महिला अभ्यर्थियों द्वारा विरोध प्रदर्शन हो या अन्य जिलों में इस्तीफा देने के कारण — ये सब यह इंगित करते हैं कि प्रशिक्षण का वातावरण, संवाद की कमी और सशक्त मार्गदर्शन का अभाव अभी भी बड़े मुद्दे हैं। यह जिम्मेदारी केवल पुलिस विभाग की नहीं, बल्कि सरकार, समाज और शिक्षा व्यवस्था की भी है कि युवाओं को सिर्फ रोजगार के लिए नहीं, बल्कि भूमिका की जिम्मेदारी के लिए भी तैयार किया जाए।

निष्कर्षतः, पुलिस सेवा एक सेवा भावना, कर्तव्यनिष्ठा और आत्मानुशासन की मांग करती है। इसे महज़ एक "सरकारी नौकरी" मानने की प्रवृत्ति युवाओं को भ्रमित करती है। यदि हम वास्तव में एक सक्षम और संवेदनशील पुलिस बल चाहते हैं, तो केवल चयन प्रक्रिया नहीं, बल्कि पूर्व-प्रशिक्षण मनोवैज्ञानिक परामर्श, संवेदनशील प्रशिक्षण पद्धति और जीवन कौशल शिक्षा को भी उसी गंभीरता से लागू करना होगा। वरना, यह सिलसिला भविष्य में और भी गहरा संकट बन सकता है।

मनोज श्रीवास्तव लखनऊ

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