बस्ती में पति की चीखें थाने तक पहुंचीं, लेकिन व्यवस्था सोती रही

बस्ती में पति की चीखें थाने तक पहुंचीं, लेकिन व्यवस्था सोती रही!

स्थान: हरैया थाना, बस्ती | ग्राम: बिजरा


बस्ती, उत्तरप्रदेश 

बस्ती जनपद के हरैया थाना अंतर्गत ग्राम बिजरा निवासी एक पीड़ित युवक ने अपनी ही पत्नी और उसके मायकेजनों से प्रताड़ित होकर जब थाना दरवाज़ा खटखटाया, तो उम्मीद थी कि न्याय मिलेगा। लेकिन हकीकत यह निकली कि थाने में सुनवाई से पहले ही नींद भारी पड़ गई, और ‘न्याय’ थाने की मेज़ के किसी कोने में दुबक गया।

क्या है मामला?
ग्राम बिजरा निवासी युवक राज मिश्रा ने साफ शब्दों में एक लिखित प्रार्थना पत्र के माध्यम से आरोप लगाया कि उसकी पत्नी, उसकी ससुराल और स्थानीय स्तर पर सक्रिय कुछ व्यक्तियों द्वारा उसे जानबूझकर झूठे मुकदमे में फंसाने की साजिश रची जा रही है। मामला केवल मानसिक प्रताड़ना का नहीं है, बल्कि कई स्तर पर पारिवारिक शोषण और साजिश की भी बू इसमें आ रही है।

राज मिश्रा का कहना है कि उसकी शादी 22 मई 2025 को हुई थी, लेकिन उसके बाद से ही पत्नी और उसके परिजन उसे प्रताड़ित करने लगे। युवक के अनुसार पत्नी का चरित्र संदेहास्पद है और वह आए दिन अपने मायके वालों की साजिश में शरीक होकर उसे झूठे आरोपों में फंसाने की धमकी देती है।

थाने में गोहार – लेकिन अधिकारी ‘सुप्त’!
सबसे दुखद पहलू यह है कि जब राज मिश्रा ने हरैया थाने का दरवाज़ा खटखटाया, तो थानाध्यक्ष सहित अन्य अधिकारियों की ‘चुप्पी’ और ‘निर्लिप्तता’ ने पीड़ित की आशाओं पर पानी फेर दिया। ऐसा प्रतीत होता है जैसे थाने की व्यवस्था न तो संवेदनशील है, न सजग।

प्रशासन के लिए प्रश्नचिह्न:

  • आखिर क्यों नहीं ली गई समय रहते इस युवक की शिकायत पर कार्रवाई?
  • क्या महिलाओं द्वारा दर्ज शिकायतों पर तत्परता से कार्यवाही करने वाली पुलिस, पुरुष पीड़ितों की आवाज़ को अनसुना करने लगी है?
  • क्या यह लैंगिक न्याय की एकतरफा व्याख्या नहीं?

समाज के लिए चेतावनी:
यह मामला केवल एक युवक का नहीं, बल्कि उस सामाजिक व्यवस्था पर सवाल है, जहाँ पुरुषों की पीड़ा को 'मजाक' मान लिया जाता है।

न्याय की मांग:
राज मिश्रा ने प्रशासन से अपील की है कि उसकी पत्नी और उसके परिजनों द्वारा रची जा रही झूठी कहानी और मानसिक उत्पीड़न की सच्चाई उजागर कर न्याय दिया जाए।

सवाल वही – क्या अब थानों में इंसाफ सिर्फ़ चयनित संवेदनाओं का विषय बनकर रह गया है?
या फिर पीड़ित की पहचान ही तय करेगी कार्रवाई का स्तर?

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