"बॉडी तो बनी नहीं, लेकिन समाज को बीमार कर दिया – बिना रजिस्ट्रेशन सप्लीमेंट्स का कारोबार"
हरिओम प्रकाश और भोलू सिंह की कलम से
बस्ती सहित आजकल गली-गली, सोशल मीडिया की गलियों से लेकर जिम के कोनों तक, एक नया सपना बेचा जा रहा है—"पतले को मोटा और मोटे को पतला बना देंगे।" लेकिन सवाल ये है कि ये चमत्कार आखिर किस कीमत पर हो रहा है?
बिना किसी सरकारी पंजीकरण, गुणवत्ता नियंत्रण या चिकित्सकीय परीक्षण के, बाज़ार में हर्बल न्यूट्रिशन सप्लीमेंट्स के नाम पर एक खतरनाक खेल खेला जा रहा है। इन्हें बेचने वाले खुद को "वेलनेस कोच," "हर्बल डॉक्टर," और "न्यूट्रिशन एक्सपर्ट" कहते हैं—जबकि उनकी योग्यता सोशल मीडिया फॉलोअर्स से अधिक कुछ नहीं।
इन सप्लीमेंट्स के पीछे कोई वैज्ञानिक रिसर्च नहीं, कोई मेडिकल अप्रूवल नहीं—बस एक दावा होता है, और उसके पीछे अंधविश्वास। ये ‘हर्बल’ कहकर खुद को सुरक्षित साबित करते हैं, लेकिन हकीकत यह है कि अनियंत्रित मात्रा में लिया गया कोई भी पदार्थ, चाहे वह जड़ी-बूटी ही क्यों न हो, जहर भी बन सकता है।
इन फॉर्मूलों में अक्सर स्टेरॉयड, हार्मोन, या भारी धातुएं तक पाई जाती हैं—जो लीवर, किडनी, और हार्मोन सिस्टम को गंभीर क्षति पहुंचा सकते हैं। दुर्भाग्य यह है कि यह सारा कारोबार बिना किसी रजिस्ट्रेशन, बिना लाइसेंस, और बिना जिम्मेदारी के फल-फूल रहा है।
स्वास्थ्य मंत्रालय की चुप्पी, एफएसएसएआई की ढील और आम जनता की जागरूकता की कमी इस अवैध व्यवसाय को पनपने दे रही है।
ये सिर्फ शरीर का सवाल नहीं है—यह समाज के स्वास्थ्य, विश्वास और कानून के सम्मान का सवाल है।
ज़रूरत है कि सरकार ऐसे अवैध उत्पादों और उनके ‘डीलरों’ पर कड़ी कार्रवाई करे। जनता को भी चाहिए कि वह इंस्टाग्राम फॉलोअर्स की बजाय डॉक्टर की सलाह पर भरोसा करे।
क्योंकि सपनों के पीछे भागते-भागते कहीं हकीकत की सेहत न गंवा बैठे।
बस्ती के अंबिका पांडे की कहानी ,हर्बल न्यूटिशन के साइड इफेक्ट का जीवंत उदाहरण है.सरकार मोन, सीएमओ मौन प्रशासन भी मौन?