क्या कावड़ के साथ बारूद भी लाए थे कावड़िए?थानाध्यक्ष क्यों रहे मूकदर्शक?

 

 


    कांवड़ नहीं, ‘कांड’ यात्रा! साबित हुई कप्तानगंज में कावड़ यात्रा 


बस्ती ,कप्तानगंज उत्तरप्रदेश 

जनपद की कांवड़ यात्रा इस बार केवल भक्ति की नहीं, बल्कि हंगामे की यात्रा साबित हुई। भगवान शिव की जयकारों के बीच डंडे, ईंटें और हाकियां भी ‘हर हर महादेव’ के साथ बरसीं। 9 दिन बाद पुलिस को याद आया कि बवाल हुआ था, और उसने FIR भी दर्ज कर दी — वाह, व्यवस्था के स्मरणशक्ति को प्रणाम!

मुख्य आरोपी सर्वेश यादव और उसके 15 साथियों पर मुकदमा हुआ है। पुलिस कहती है कि कांवड़ का भेष बनाकर षड्यंत्र किया गया। तो क्या अब श्रद्धा की यात्रा के भीतर साजिश का बक्सा भी साथ लादना जरूरी हो गया है?

राम मंदिर पर कथित टिप्पणी के बाद बवाल भड़का — फिर कांवड़िए भक्ति से ज्यादा ‘क्रांति’ में जुट गए। पुलिस पर हमला, सार्वजनिक संपत्ति में आगजनी, और जो हाथ में होना चाहिए था — गंगाजल, वहां निकले ईंट और डंडे! पुलिस कहती है, CCTV देख कर पहचान लिया गया। पर सवाल है —उस मुसलमान का क्या दोष जो जुआ खेलने कप्तानगंज गया था और बवाल के बाद उसके मोहल्ले को घूरा गया? या उस पुलिस का क्या कहना जो भगवा देखकर आंखें मूंद लेती है, और टोपी देखकर डंडा निकाल लेती है?

क्या अब कांवड़ यात्रा धार्मिक परंपरा है या रणनीतिक आयोजन? जब व्यवस्था आंख पर चश्मा पहन ले — जिसमें एक लेंस सत्ता का हो और दूसरा नफ़रत का — तब दंगे के बाद भी सिर्फ कुछ नाम देखे जाते हैं, बाकी ‘भगवा’ में घुल जाते हैं।

शिव भक्ति का अर्थ कभी विध्वंस नहीं था — लेकिन आज,जब हर कंधे पर डमरू के साथ डंडा भी लटका हो, तो कौन बताए —कांवड़िए दोषी हैं, या यह व्यवस्था जो खुद भटक चुकी है?


राजेन्द्रनाथ ‘तिवारी

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