“त्याग की मूरत – नेहरू-गांधी परिवार”
(लेखक – राजेंद्र नाथ तिवारी)
भारत माता के भाग्य में शायद लोकतंत्र का नहीं, एक वंश विशेष का राजयोग लिखा था। आज़ादी की लड़ाई में जिन करोड़ों लोगों का नाम इतिहास की धूल में दब गया, उनके बीच एक सूरज चमका – नेहरू जी, और फिर क्या था, इस देश को "नेहरू बंधन" में जकड़ने का मिशन शुरू हो गया।
नेहरू जी ने लोकतंत्र को इस तरह मजबूत किया कि प्रधानमंत्री की कुर्सी को पारिवारिक झूला बना दिया – जहां पहले खुद झूले, फिर बेटी इंदिरा जी, फिर बेटा राजीव जी, फिर बहू सोनिया जी, फिर पोता राहुल जी... और अब एक नयी पीढ़ी तैयार है – पिंक टी शर्ट में क्रांति का पैगाम देने वाली प्रियंका जी!
त्याग की परंपरा
नेहरू-गांधी परिवार ने इस देश के लिए बहुत कुछ त्यागा है।
इंदिरा जी ने लोकतंत्र को आपातकाल में बंदीगृह में डालकर त्याग दिखाया,
राजीव जी ने 21वीं सदी की सौगात देने के बदले बोफोर्स की धुंध में देश को घुमा दिया,
सोनिया जी ने त्याग की पराकाष्ठा करते हुए खुद प्रधानमंत्री न बनकर देश को मनमोहन दे दिया — ताकि परदे के पीछे से रिमोट कंट्रोल से देश चले।
राहुल जी का योगदान
और अब आइए, राहुल गांधी जी पर।
राहुल बाबा, जिन्हें हर चुनाव अनुभव का रियलिटी शो समझ आता है। वे हर बार हार को "मदर ऑफ ऑल विक्ट्री" मानकर, अगले चुनाव के लिए नया मुहावरा गढ़ते हैं। उन्होंने युवाओं को समझाया कि आलू की फैक्ट्री लग सकती है, ट्यूब लाइट कैसे काम करती है, और मोदी जी आरएसएस की शाखा से निकलते हैं जैसे कोई रामलीला से निकलता है।
उनके भाषणों में तर्क का नहीं, त्याग का प्रवाह होता है – त्याग कीजिए व्याकरण का, इतिहास का, भौगोलिक तथ्यों का... और खालिस "प्योर गांधी स्टाइल" में बोलिए।
सत्ता का वैकल्पिक नाम: वंशवाद
देश में अगर बेरोजगारी है, तो इसका हल है – वंशवाद।
स्वास्थ्य तंत्र टूटा है, तो इसकी दवा है – एक और गांधी पोस्टर।
महंगाई बढ़ रही है? कोई बात नहीं – प्रियंका जी के रोड शो में फूल बरसाइए,
और अगर जनता सवाल पूछे, तो कहिए – “हमें तो सत्ता चाहिए ही नहीं, हम तो सिर्फ सेवा करते हैं।”
आख़िरी बात
देश में नेहरू-गांधी परिवार का योगदान ऐसा है, जैसे दूध में नींबू गिरा हो – दिखता तो सफ़ेद है, पर स्वाद बदल चुका है।
उन्होंने देश को लोकतंत्र सिखाया – मगर ऐसा कि कुर्सी सिर्फ खानदान में रहे।
उन्होंने नारी सशक्तिकरण को बढ़ाया – पर शर्त यही रही कि सरनेम गांधी हो।
उन्होंने हर हार को नई शुरुआत बताया – और हर चुनाव को बचपन की ड्रिल समझा।
जय हो त्याग की मूरतों की,
जय हो लोकतंत्र के राजवंश की।
देश बदले या न बदले –
पर पोस्टर में एक ही चेहरा चमके, यही असली भारत की तरक्की है!
(लेखक – राजेंद्र नाथ तिवारी)
भारत माता के भाग्य में शायद लोकतंत्र का नहीं, एक वंश विशेष का राजयोग लिखा था। आज़ादी की लड़ाई में जिन करोड़ों लोगों का नाम इतिहास की धूल में दब गया, उनके बीच एक सूरज चमका – नेहरू जी, और फिर क्या था, इस देश को "नेहरू बंधन" में जकड़ने का मिशन शुरू हो गया।
नेहरू जी ने लोकतंत्र को इस तरह मजबूत किया कि प्रधानमंत्री की कुर्सी को पारिवारिक झूला बना दिया – जहां पहले खुद झूले, फिर बेटी इंदिरा जी, फिर बेटा राजीव जी, फिर बहू सोनिया जी, फिर पोता राहुल जी... और अब एक नयी पीढ़ी तैयार है – पिंक टी शर्ट में क्रांति का पैगाम देने वाली प्रियंका जी!
त्याग की परंपरा
नेहरू-गांधी परिवार ने इस देश के लिए बहुत कुछ त्यागा है।
इंदिरा जी ने लोकतंत्र को आपातकाल में बंदीगृह में डालकर त्याग दिखाया,
राजीव जी ने 21वीं सदी की सौगात देने के बदले बोफोर्स की धुंध में देश को घुमा दिया,
सोनिया जी ने त्याग की पराकाष्ठा करते हुए खुद प्रधानमंत्री न बनकर देश को मनमोहन दे दिया — ताकि परदे के पीछे से रिमोट कंट्रोल से देश चले।
राहुल जी का योगदान
और अब आइए, राहुल गांधी जी पर।
राहुल बाबा, जिन्हें हर चुनाव अनुभव का रियलिटी शो समझ आता है। वे हर बार हार को "मदर ऑफ ऑल विक्ट्री" मानकर, अगले चुनाव के लिए नया मुहावरा गढ़ते हैं। उन्होंने युवाओं को समझाया कि आलू की फैक्ट्री लग सकती है, ट्यूब लाइट कैसे काम करती है, और मोदी जी आरएसएस की शाखा से निकलते हैं जैसे कोई रामलीला से निकलता है।
उनके भाषणों में तर्क का नहीं, त्याग का प्रवाह होता है – त्याग कीजिए व्याकरण का, इतिहास का, भौगोलिक तथ्यों का... और खालिस "प्योर गांधी स्टाइल" में बोलिए।
सत्ता का वैकल्पिक नाम: वंशवाद
देश में अगर बेरोजगारी है, तो इसका हल है – वंशवाद।
स्वास्थ्य तंत्र टूटा है, तो इसकी दवा है – एक और गांधी पोस्टर।
महंगाई बढ़ रही है? कोई बात नहीं – प्रियंका जी के रोड शो में फूल बरसाइए,
और अगर जनता सवाल पूछे, तो कहिए – “हमें तो सत्ता चाहिए ही नहीं, हम तो सिर्फ सेवा करते हैं।”
आख़िरी बात
देश में नेहरू-गांधी परिवार का योगदान ऐसा है, जैसे दूध में नींबू गिरा हो – दिखता तो सफ़ेद है, पर स्वाद बदल चुका है।
उन्होंने देश को लोकतंत्र सिखाया – मगर ऐसा कि कुर्सी सिर्फ खानदान में रहे।
उन्होंने नारी सशक्तिकरण को बढ़ाया – पर शर्त यही रही कि सरनेम गांधी हो।
उन्होंने हर हार को नई शुरुआत बताया – और हर चुनाव को बचपन की ड्रिल समझा।
जय हो त्याग की मूरतों की,
जय हो लोकतंत्र के राजवंश की।
देश बदले या न बदले –
पर पोस्टर में एक ही चेहरा चमके, यही असली भारत की तरक्की है!