राजेन्द्र नाथ तिवारी,बस्ती/वशिष्ठनगर
वैद्य नमस्तुभ्यं यमराज सहोदर:
यमराज हरत प्रणाम भवान प्रणान धनानी च.. हे डॉक्टर साहब आप यमराज के बड़े भाई हैं यमराज तो केवल जान लेता है और आप जान और धन दोनों लेते हैं इसलिए आपको बार-बार प्रणाम है इस व्यवस्था पर पूरी चिकित्सा व्यवस्था पर एक व्यंग्यात्मक विस्तृत लेख लिखिए
चिकित्सा व्यवस्था: यमराज के बड़े भाई का कारोबार
"वैद्य नमस्तुभ्यं यमराज सहोदर:
यमराज हरत प्रणान भवान प्रणान धनानी च..."
इस दोहे में कवि ने बड़े ही व्यंग्यात्मक ढंग से चिकित्सा व्यवस्था की सच्चाई को उजागर किया है। यमराज, जो मृत्यु का देवता है, वह तो केवल प्राण लेता है, लेकिन हमारे आधुनिक वैद्य जी—अरे, माफ कीजिए, डॉक्टर साहब—वे तो प्राण और धन दोनों का एक साथ "इलाज" कर देते हैं। और फिर, इलाज के बाद भी रोगी की हालत में सुधार हो या न हो, बिल का सुधार तो निश्चित रूप से होता है। आइए, इस चिकित्सा व्यवस्था पर एक व्यंग्यात्मक नजर डालते हैं, जो आज के दौर में न केवल जीवन रक्षक है, बल्कि जेब रक्षक भी है—बशर्ते आपकी जेब में कुछ बचा हो!
अस्पताल: यमराज का आधुनिक मंदिर आज के दौर में अस्पताल वह पवित्र तीर्थस्थल बन चुका है, जहां मरीज अपनी जिंदगी और जमा-पूंजी दोनों अर्पित करने आता है। जैसे ही आप अस्पताल के भव्य दरवाजे में प्रवेश करते हैं, वहां का चमचमाता माहौल, वातानुकूलित प्रतीक्षालय, और रिसेप्शन पर बैठी वह मुस्कुराती हुई रिसेप्शनिस्ट आपको यह भरोसा दिलाती है कि आप स्वर्ग के द्वार पर खड़े हैं। लेकिन जैसे ही आपका नंबर आता है और आप डॉक्टर साहब के सामने पहुंचते हैं, आपको एहसास होता है कि यह स्वर्ग नहीं, बल्कि यमराज का नया अड्डा है।
डॉक्टर साहब, जो यमराज के बड़े भाई की उपाधि से नवाजे गए हैं, आपकी बीमारी को देखते ही इतने गंभीर हो जाते हैं कि लगता है, आपकी बीमारी नहीं, बल्कि आपकी जेब की हालत का निदान कर रहे हैं। "हम्म... यह तो गंभीर मामला है," कहकर वे आपको टेस्टों की एक लंबी सूची थमा देते हैं—खून की जांच, एक्स-रे, एमआरआई, सीटी स्कैन, और न जाने क्या-क्या। अगर आपने पूछ लिया कि "डॉक्टर साहब, क्या यह सब जरूरी है?" तो जवाब मिलता है, "देखिए, हम कोई रिस्क नहीं ले सकते।" लेकिन यह रिस्क किसका है? आपकी जान का, या उनकी कमाई का? यह एक अनसुलझा रहस्य है।
टेस्ट: धन की गंगा में स्नान अस्पताल की लैब वह पवित्र गंगा है, जहां आपका धन स्नान करने जाता है। हर टेस्ट की कीमत इतनी होती है कि आप सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि क्या आप बीमार हैं या आपकी जेब बीमार है। और मजेदार बात यह है कि टेस्ट के परिणाम आते हैं, तो डॉक्टर साहब कहते हैं, "रिपोर्ट तो नॉर्मल है, लेकिन हम फिर भी सावधानी बरतेंगे।" सावधानी का मतलब? और टेस्ट, और दवाइयां, और शायद एक ऑपरेशन की सलाह।
अब ऑपरेशन की बात आती है, तो वह एक अलग ही नाटक है। छोटी-सी बीमारी के लिए भी आपको ऑपरेशन की सलाह दी जाती है, क्योंकि "यह आज नहीं तो कल जरूरी होगा।" और अगर आपने पूछ लिया कि क्या कोई और तरीका है, तो जवाब मिलता है, "हां, लेकिन उसमें समय लगेगा।" समय? अरे भाई, समय तो आपकी जिंदगी का है, लेकिन पैसा तो आपकी जेब का है! फिर भी, आप ऑपरेशन के लिए राजी हो जाते हैं, क्योंकि यमराज के बड़े भाई की सलाह को कौन टाल सकता है?
दवाइयां: धन की भेंट ऑपरेशन के बाद आती है दवाइयों की बारी। डॉक्टर साहब की पर्ची में ऐसी-ऐसी दवाइयां लिखी होती हैं, जिनके नाम सुनकर लगता है कि आप किसी अंतरराष्ट्रीय मेडिकल कॉन्फ्रेंस में बैठे हैं। और इन दवाइयों की कीमत? वह इतनी होती है कि आप सोचते हैं कि क्या यह दवा बीमारी ठीक करेगी या आपकी आर्थिक स्थिति को और बीमार कर देगी। लेकिन चूंकि आप डॉक्टर साहब की बात को वेदवाक्य मान चुके हैं, आप चुपचाप मेडिकल स्टोर की ओर बढ़ते हैं, जहां स्टोर वाला आपकी जेब को और हल्का कर देता है।
बीमा: एक और जाल अब आप सोच रहे होंगे कि बीमा तो है न, वह तो काम आएगा। लेकिन जनाब, बीमा कंपनियां भी यमराज के छोटे भाई-बहनों की तरह हैं। जब तक आप स्वस्थ हैं, वे आपको प्रीमियम भरने के लिए लुभाते हैं। लेकिन जैसे ही आप बीमार पड़ते हैं और क्लेम करने की बारी आती है, वे ऐसे नियम और शर्तें निकाल लाते हैं कि आपको लगता है कि आपने बीमा नहीं, बल्कि अपनी जिंदगी का सौदा किया है। "यह बीमारी कवर नहीं है," "यह प्री-एक्सिस्टिंग कंडीशन है," "यह टेस्ट जरूरी नहीं था"—ऐसे बहानों की फेहरिस्त इतनी लंबी होती है कि आप थककर क्लेम करना ही छोड़ देते हैं।
निजी अस्पताल: धन की खेती निजी अस्पताल तो इस व्यवस्था के सबसे बड़े खिलाड़ी हैं। उनके भव्य भवन, पांच सितारा सुविधाएं, और "विश्वस्तरीय" इलाज का दावा आपको लुभाता है। लेकिन जैसे ही आप वहां भर्ती होते हैं, आपका बिल इतना बढ़ जाता है कि आपको लगता है कि आपने अस्पताल में नहीं, बल्कि किसी फाइव-स्टार होटल में महीनों की छुट्टियां बिताई हैं। एक रात के लिए बेड चार्ज, ऑक्सीजन चार्ज, नर्सिंग चार्ज, और यहां तक कि डॉक्टर साहब के मुस्कुराने का भी चार्ज! और अगर आपने पूछ लिया कि "यह चार्ज क्यों?" तो जवाब मिलता है, "यह हमारा स्टैंडर्ड प्रोटोकॉल है।" प्रोटोकॉल? अरे, यह तो लूट का प्रोटोकॉल है!
सरकारी अस्पताल: एक अलग कहानी अब अगर आप सोचते हैं कि सरकारी अस्पताल में जाकर आप इस लूट से बच जाएंगे, तो वहां भी एक अलग नाटक इंतजार कर रहा है। वहां आपको मुफ्त इलाज तो मिलता है, लेकिन बेड के लिए महीनों की प्रतीक्षा, डॉक्टर साहब का इंतजार, और दवाइयों की कमी आपको यह सोचने पर मजबूर कर देती है कि क्या मुफ्त इलाज का मतलब "इलाज के बिना मरने की आजादी" है। और अगर आप रिश्वत देकर काम जल्दी करवाना चाहते हैं, तो वहां भी यमराज का छोटा भाई मौजूद है, जो आपकी जेब को हल्का करने के लिए तैयार बैठा है।
निष्कर्ष: यमराज का बड़ा भाई तो कुल मिलाकर, हमारी चिकित्सा व्यवस्था एक ऐसी मशीन बन चुकी है, जो न केवल आपकी बीमारी का इलाज करती है, बल्कि आपकी जेब का भी "इलाज" कर देती है। डॉक्टर साहब, जो कभी समाज के भगवान माने जाते थे, आज यमराज के बड़े भाई बन चुके हैं। यमराज तो केवल प्राण लेता है, लेकिन हमारे वैद्य जी प्राण और धन दोनों लेते हैं, और फिर भी आपको बार-बार प्रणाम करने की सलाह देते हैं।
इस व्यवस्था को बदलने की जरूरत है। इलाज एक सेवा होना चाहिए, न कि व्यापार। लेकिन जब तक यह व्यवस्था ऐसी ही चलती रहेगी, तब तक हमें यही कहना होगा:
"वैद्य नमस्तुभ्यं यमराज सहोदर:
यमराज हरत प्रणाम भवान प्रणान धनानी च..."
तो अगली बार जब आप अस्पताल जाएं, तो अपनी जेब को संभालकर रखें, क्योंकि वहां यमराज का बड़ा भाई आपका इंतजार कर रहा है!