(कलम वही जो सत्ता को भी खटक जाए)
मनोज यादव,पत्रकार
राजनीति की बुढ़िया कुर्सी और 'रिटायरमेंट की सीखजब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘रिटायरमेंट’ की सलाह दी जाती है, तो राजनीति की उम्रदराज बेंच पर बैठे कुछ चेहरे अचानक जवान हो उठते हैं। कांग्रेस की बागडोर थामे सोनिया गांधी, जिनकी उम्र अब 80 के पार है, और पार्टी के मौजूदा अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, जो 83 की दहलीज़ लांघ चुके हैं — ये वही लोग हैं जो मोदी को सियासत से संन्यास लेने की सलाह देते फिरते हैं।
अब ये बात तो उसी तरह है जैसे खुद लाठी टेकती राजनीति, दूसरों को 'तेज चलने' की नसीहत दे।
सोनिया गांधी, जिनकी सक्रियता अब केवल राज्यसभा की आरामदेह सीट तक सिमट चुकी है, और खरगे जी, जिनकी पार्टी उन्हें 'रबर स्टैम्प' से ज़्यादा कभी इस्तेमाल नहीं करती — जब वे नरेंद्र मोदी जैसे अब भी दिन में 18 घंटे काम करने वाले नेता को रिटायरमेंट की सलाह देते हैं, तो यह वैसा ही है जैसे पेंशनभोगी स्टाफ ऑफिसर, फील्ड में तैनात जवान को ‘थकान’ का पाठ पढ़ा रहा हो।
क्या राजनीति का रिटायरमेंट चार्ट सिर्फ बीजेपी नेताओं के लिए बना है?
या फिर कांग्रेस में सेवा-निवृत्ति का नियम केवल तब लागू होता है जब कोई विपक्ष में दमदार खड़ा हो?
सच तो यह है कि हमारे यहां राजनीति में 'रिटायरमेंट' शब्द उतना ही अजनबी है जितना 'ईमानदारी' और 'उत्तरदायित्व'।
राजनीति में जब तक वोट मिलते रहें, तब तक जोड़ों का दर्द भी सेवा भावना कहलाता है।
जब हार सामने दिखे तो उम्रदराज़ होने की ढाल बनाकर मैदान से खिसक लेना, और फिर मंच से दूसरों को ‘बुज़ुर्ग’ घोषित कर देना – यही आज की राजनीतिक चालाकी है।
ख़रगे जी! सोनिया जी!
अगर मोदी को 75 की उम्र में 'रिटायरमेंट' का टिकट थमाना है, तो पहले अपने ही पास बैठे 80 पार नेताओं का टिकट चेक कर लीजिए।
वरना जनता कहेगी —
"जो खुद कुर्सी पर बैठे हैं बुढ़ापे के सहारे, वो मोदी से कहें रिटायर हो जाओ प्यारे?"
व्यंग्यकार: [राजनीतिक लाठी]
(कलम वही जो सत्ता को भी खटक जाए)