आज की राजनीति और कौटिल्य की प्रासंगिकता

📰 संपादकीय कॉलम

📅 आज की राजनीति और कौटिल्य की प्रासंगिकता

✍️ कौटिल्य का भारत विशेष संपादकीय


जब राजनीति जनसेवा से अधिक सत्ता का साधन बन जाए, जब सिद्धांतों की जगह सौदेबाज़ी और अवसरवाद बैठ जाए, तब इतिहास की ओर मुड़कर देखना आवश्यक हो जाता है। ऐसे समय में चाणक्य (कौटिल्य) की शिक्षाएं हमें रास्ता दिखाने वाली दीपशिखा की तरह हैं। मौर्य सम्राज्य के निर्माता और ‘अर्थशास्त्र’ के रचयिता कौटिल्य केवल प्राचीन भारत के महान नीतिज्ञ नहीं थे, बल्कि वे एक ऐसे विचारक थे जिनकी नीतियाँ आज भी समयसापेक्ष और प्रासंगिक हैं।

लोकनीति नहीं, लाभनीति?
कौटिल्य ने राज्य के मूल में “लोक कल्याण” को रखा था, न कि “व्यक्तिगत या दलगत स्वार्थ” को। वर्तमान राजनीति में जहां जनता केवल चुनावी आंकड़ा बनकर रह गई है, वहां यह दृष्टिकोण दिशा देने वाला हो सकता है।

राजनीति का नैतिक पतन
कौटिल्य कहते हैं — “जिस राजा की नीतियाँ नैतिक नहीं, वह जल्द ही विनाश की ओर जाता है।” आज की राजनीति में भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, और अफसर-नेता गठजोड़ के विरुद्ध यह वाक्य गूंजता प्रतीत होता है।

सुशासन के सूत्र
कौटिल्य का मत था कि “राजा प्रजा का सेवक है, स्वामी नहीं।” आज जब सत्ताधारी खुद को ‘राजा’ समझने लगे हैं, तब यह स्मरण कराना आवश्यकल है कि संविधान सर्वोच्च है, न कि कोई व्यक्ति।

कूटनीति और सुरक्षा नीति में भी मार्गदर्शक
गुप्तचर तंत्र, सीमाओं की रक्षा, पड़ोसी राज्यों से संबंध — हर विषय पर कौटिल्य के विचार आज की भारत सरकार की विदेश नीति और सुरक्षा दृष्टिकोण के लिए मार्गदर्शक बन सकते हैं।

निष्कर्ष:
कौटिल्य की नीतियां न केवल राजनीतिज्ञों के लिए, बल्कि प्रशासकों, नीति-निर्माताओं और सामान्य जनता के लिए भी प्रेरणादायी हैं। जिस दिन भारत का नेतृत्व चाणक्य के आदर्शों को आत्मसात कर लेगा, उसी दिन सच्चे अर्थों में “सुशासन” का उदय होगा।

 सम्पादकीय समर्पित: राष्ट्रहित के लिए प्राचीन ज्ञान की आधुनिक व्याख्या को

— राजेन्द्र नाथ तिवारी
कौटिल्य का  भारत

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