धर्म अब चप्पल पहनकर परोसा जाता है और साधु बिसलेरी पीकर पचाते हैं – यही है नए भारत की धार्मिक क्रांति!"



 चप्पल पहने सांसद, बोतलबंद साधु — ये है अयोध्या का नया धर्म-संदेश!

–कौटिल्य शास्त्री

आस्था अब AC हॉल में बैठ गई है, और सेवा अब कैमरों की क्लिक पर होती है। एक समय था जब संत भूखे रहकर समाज को आत्मसंयम सिखाते थे, और आज... वो बोतलबंद पानी के बिना खाना नहीं निगलते। दृश्य अयोध्या का है, और पात्र — एक सांसद, कुछ भगवाधारी भोजनार्थी, और पूरा तामझाम।

सांसद महोदय (जिन्हें देखकर कोई कहे ‘विप्र’ और कोई कहे ‘विपत्ति’) चमचमाती गुलाबी जैकेट में, गले में सोने की मालाएं लटकाए, थालियों में परोस रहे हैं। लेकिन क्षमा करें — पैरों में चमड़े की सैंडल! जी हाँ, वही पैर जो परंपरा में मंदिर की दहलीज़ से पहले ही चप्पल उतारने को कहते हैं, आज साधुओं के सम्मुख उन्हें पहने खड़े हैं।

बगल में बैठे अयोध्यावासी ‘साधु’ भी कम दिलचस्प नहीं — माथे पर त्रिपुंड, गले में रुद्राक्ष, लेकिन हाथ में बिसलेरी की बोतल और घड़ी में स्मार्ट वॉच! लगता है अब साधु भी "Wi-Fi संत" बन गए हैं। सेवा का भाव नहीं, बल्कि “VVIP भंडारा” का शृंगार चल रहा है।

धर्म का यह नवसंस्करण देखकर मन ने पूछा – “क्या यह रामराज्य है या फोटोशूट?”

सांसद महोदय की भृकुटियाँ भी यज्ञ की तरह उठी हुई थीं, मानो वे स्वयं भगवान बन भोजन परोसने आए हों। कैमरा इधर मुड़ा, वे मुस्काए। थाली में चम्मच रखी, फोटो लिया गया। अगले दिन अखबारों में खबर बनी – "सांसद ने साधुओं की सेवा कर धर्म के प्रति समर्पण दिखाया।"

अरे भाई, सेवा अगर दिखानी पड़े तो वह सेवा नहीं, प्रचार है।

और ये तथाकथित साधु? अगर इतनी ही भूख लगी थी तो परंपरा के अनुसार पंगत में बैठ जाते, साधारण भोजन लेते। मगर नहीं – इनको चाहिए सोने की थाली, AC हॉल, फोटोग्राफर और मिनरल वॉट

"धर्म अब चप्पल पहनकर परोसा जाता है और साधु बिसलेरी पीकर पचाते हैं – यही है नए भारत की धार्मिक क्रांति!"

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