भारत-नेपाल सीमा पर धर्मांतरण और डेमोग्राफिक परिवर्तन: एक गंभीर चुनौती और दोनों सरकारों के बीच सहयोग की आवश्यकता

 

भारत-नेपाल सीमा पर धर्मांतरण और डेमोग्राफिक परिवर्तन: एक गंभीर चुनौती और दोनों सरकारों के बीच सहयोग की आवश्यकता


प्रदीप सिंह ,सम्वाददाता, सिद्धार्थनगर, उत्तरप्रदेश
भारत और नेपाल के बीच 1,850 किलोमीटर लंबी खुली सीमा दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आर्थिक संबंधों का प्रतीक रही है। 1950 की भारत-नेपाल शांति और मित्रता संधि ने इस रिश्ते को और मजबूती प्रदान की, जिसके तहत दोनों देशों के नागरिकों को सीमा पार मुक्त आवाजाही और आर्थिक अवसरों की सुविधा मिली। हालांकि, हाल के वर्षों में इस खुली सीमा पर धर्मांतरण और डेमोग्राफिक परिवर्तन से संबंधित गतिविधियों ने दोनों देशों के लिए सुरक्षा, सामाजिक और सांस्कृतिक चुनौतियां खड़ी की हैं। यह लेख इन गतिविधियों की प्रकृति, उनके प्रभाव और भारत व नेपाल सरकारों के बीच परस्पर विचार-विमर्श की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।
1. भारत-नेपाल सीमा पर धर्मांतरण की गतिविधियां
भारत-नेपाल सीमा, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश (महाराजगंज, सिद्धार्थनगर, बलरामपुर, बहराइच) और बिहार (पश्चिम चंपारण) जैसे भारतीय जिलों और नेपाल के रूपनदेही, कपिलवस्तु, नवलपरासी और पर्सा जैसे क्षेत्रों में, धर्मांतरण की गतिविधियां बढ़ रही हैं। कुछ प्रमुख बिंदु इस प्रकार हैं:
मिशनरी गतिविधियां: विदेशी मिशनरी संगठन, विशेष रूप से ईसाई मिशनरी, गरीब, अशिक्षित और वंचित समुदायों को निशाना बना रहे हैं। ये संगठन शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं, भोजन और आर्थिक सहायता का लालच देकर लोगों को ईसाई धर्म अपनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। नेपाल के ग्रामीण क्षेत्रों में, जहां सरकारी सुविधाओं और रोजगार का अभाव है, ऐसी गतिविधियों के लिए अनुकूल परिस्थितियां मौजूद हैं।
गुप्त प्रचार: खुली सीमा के कारण, मिशनरी संगठन नेपाल से भारत के सीमावर्ती गांवों में भी अपनी गतिविधियां संचालित कर रहे हैं। कुछ मामलों में, लोगों को विदेश में रोजगार या बेहतर जीवन का झूठा वादा करके धर्म परिवर्तन के लिए प्रेरित किया जा रहा है।
इस्लामी प्रभाव: हाल की कुछ रिपोर्ट्स में यह भी दावा किया गया है कि भारत-नेपाल सीमा पर कुछ संगठन इस्लामिक प्रभाव बढ़ाने और डेमोग्राफिक परिवर्तन की साजिश रच रहे हैं। आयकर विभाग की जांच में यह सामने आया कि दक्षिण भारत की कुछ धार्मिक संस्थाओं से फंडिंग के जरिए अवैध मस्जिदों और मदरसों का निर्माण किया जा रहा है, जिसका उद्देश्य क्षेत्र की जनसांख्यिकी को बदलना है।
2. डेमोग्राफिक परिवर्तन का खतरा
धर्मांतरण की गतिविधियां न केवल धार्मिक संतुलन को प्रभावित कर रही हैं, बल्कि सीमावर्ती क्षेत्रों में जनसांख्यिकीय परिवर्तन (डेमोग्राफी चेंज) का भी खतरा पैदा कर रही हैं। कुछ प्रमुख पहलू इस प्रकार हैं:
सामाजिक तनाव: नेपाल के कुछ हिस्सों में बढ़ते धार्मिक असंतुलन के कारण सामाजिक तनाव की संभावना बढ़ रही है। हिंदू और बौद्ध समुदायों के बीच ऐतिहासिक सांस्कृतिक एकता को खतरा हो सकता है, जिसका असर भारत पर भी पड़ सकता है।
राष्ट्रीय सुरक्षा: खुली सीमा का उपयोग आतंकवादी समूहों और राष्ट्रविरोधी तत्वों द्वारा हथियार, गोला-बारूद और नकली मुद्रा की तस्करी के लिए किया जा रहा है। धर्मांतरण की गतिविधियां और अवैध निर्माण कार्य इन गतिविधियों को और बढ़ावा दे सकते हैं।
अवैध निर्माण: उत्तर प्रदेश सरकार ने नेपाल सीमा पर अवैध मस्जिदों और मदरसों के खिलाफ कार्रवाई तेज की है। सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) ने इन गतिविधियों को डेमोग्राफिक परिवर्तन का संकेत माना है।
आर्थिक प्रभाव: आयकर विभाग की जांच में पता चला कि नेपाल सीमा पर संदिग्ध यूपीआई लेनदेन के जरिए करोड़ों रुपये का लेन-देन हो रहा है, जिसका उपयोग अवैध धर्मांतरण और धार्मिक ढांचों के निर्माण में किया जा रहा है।
3. भारत और नेपाल सरकारों के बीच सहयोग की आवश्यकता
इन गंभीर चुनौतियों से निपटने के लिए भारत और नेपाल सरकारों को परस्पर विचार-विमर्श और ठोस रणनीति विकसित करने की आवश्यकता है। निम्नलिखित बिंदु इस दिशा में महत्वपूर्ण हो सकते हैं:
(i) संयुक्त सीमा प्रबंधन तंत्र
निगरानी बढ़ाना: दोनों देशों को सीमा पर निगरानी को मजबूत करने के लिए संयुक्त गश्त और तकनीकी उपकरणों का उपयोग करना चाहिए। सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) और नेपाल के सशस्त्र प्रहरी बल (एपीएफ) के बीच समन्वय को और प्रभावी बनाया जा सकता है।
अवैध गतिविधियों पर नियंत्रण: सीमा पार होने वाले अवैध व्यापार, तस्करी और धर्मांतरण गतिविधियों को रोकने के लिए संयुक्त कार्यबल का गठन किया जा सकता है।
(ii) जागरूकता और सामुदायिक सशक्तिकरण
शिक्षा और रोजगार: सीमावर्ती क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के अवसरों का विस्तार करके वंचित समुदायों को प्रलोभनों से बचाया जा सकता है।
जागरूकता अभियान: स्थानीय समुदायों को धर्मांतरण के दुष्प्रभावों और उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करने के लिए अभियान चलाए जाने चाहिए।
(iii) नीतिगत सुधार
1950 की संधि पर पुनर्विचार: कुछ नेपाली नागरिक 1950 की शांति और मित्रता संधि को विभेदकारी मानते हैं। दोनों देशों को इस संधि की समीक्षा कर इसे 21वीं सदी के संदर्भ में अपडेट करने पर विचार करना चाहिए।
अवैध फंडिंग पर रोक: दोनों सरकारों को संदिग्ध धार्मिक संगठनों और एनजीओ की फंडिंग पर नजर रखने के लिए संयुक्त जांच तंत्र स्थापित करना चाहिए।
(iv) सांस्कृतिक और धार्मिक सहयोग
साझा विरासत का संरक्षण: भारत और नेपाल हिंदू और बौद्ध धर्म की साझा सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा दे सकते हैं। लुंबिनी, बोधगया और अन्य तीर्थ स्थलों को विकसित करने के लिए संयुक्त परियोजनाएं शुरू की जा सकती हैं।
सांस्कृतिक कूटनीति: दोनों देश सांस्कृतिक आदान-प्रदान और संयुक्त आयोजनों के माध्यम से आपसी विश्वास को मजबूत कर सकते हैं।
(v) राजनयिक संवाद
द्विपक्षीय वार्ता: भारत और नेपाल को सीमा विवादों (जैसे कालापानी और लिपुलेख) और धर्मांतरण जैसे मुद्दों को सुलझाने के लिए नियमित उच्च-स्तरीय वार्ता आयोजित करनी चाहिए।
संयुक्त आयोग की बैठकें: भारत-नेपाल संयुक्त आयोग और अंतर-सरकारी समिति (आईजीसी) जैसे मंचों का उपयोग इन मुद्दों पर विचार-विमर्श के लिए किया जा सकता है।
4. चुनौतियां और समाधान
चुनौतियां:
खुली सीमा का दुरुपयोग: खुली सीमा अवैध गतिविधियों को रोकने में बाधा उत्पन्न करती है।
राजनीतिक अस्थिरता: नेपाल की आंतरिक राजनीतिक अस्थिरता सहयोग को प्रभावित कर सकती है।
तीसरे देशों का हस्तक्षेप: कुछ रिपोर्ट्स में संकेत मिले हैं कि तीसरे देश (जैसे चीन) इन गतिविधियों को बढ़ावा दे सकते हैं।
समाधान:
दोनों देशों को एक-दूसरे की संप्रभुता का सम्मान करते हुए पारदर्शी संवाद को बढ़ावा देना चाहिए।
स्थानीय प्रशासन और सुरक्षा बलों को संवेदनशीलता के साथ कार्रवाई करनी चाहिए ताकि सांप्रदायिक तनाव न बढ़े।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ सहयोग करके अवैध फंडिंग और मिशनरी गतिविधियों पर नजर रखी जा सकती है।
5. निष्कर्ष
भारत-नेपाल सीमा पर धर्मांतरण और डेमोग्राफिक परिवर्तन की गतिविधियां दोनों देशों के लिए एक जटिल और संवेदनशील मुद्दा हैं। ये गतिविधियां न केवल सांस्कृतिक और धार्मिक सद्भाव को प्रभावित करती हैं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और सामाजिक स्थिरता के लिए भी खतरा पैदा करती हैं। भारत और नेपाल सरकारों को इस चुनौती से निपटने के लिए संयुक्त रणनीति अपनानी होगी, जिसमें सीमा प्रबंधन, सामुदायिक सशक्तिकरण, नीतिगत सुधार और सांस्कृतिक सहयोग शामिल हों। दोनों देशों की साझा सांस्कृतिक विरासत और ऐतिहासिक मित्रता इस दिशा में एक मजबूत आधार प्रदान करती है। यदि दोनों सरकारें परस्पर विश्वास और सहयोग के साथ काम करें, तो इस चुनौती को अवसर में बदला जा सकता है, जिससे क्षेत्रीय शांति और समृद्धि को बढ़ावा  मिले।
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