"अखिलेश की खामोशी: पत्नी के अपमान पर चुप्पी, सियासी मजबूरी या रणनीति?"

 

राजेंद्र नाथ तिवारी
बस्ती उत्तरप्रदेश 

 सामान्यतया एक आदर्श भारतीय नारी की वेश भूषा,परिधान डिंपल यादव के व्यक्तित्व का वैशिष्ट्य है स्त्रियोचित समस्त सांससकारों से संपृक्त श्री मति डिंपल को कोईकुछ भी कह सकता है ,पर संस्कारवान नारी जीवन उनका स्वभाव है.अखिलेश यादवकी डिंपल के ऊपर मस्जिद से की गई टिप्पणी नारी अपमान है.यत्र नारायस्तु पूज्यंते रमंते तंत्र देवता.
अखिलेश यादव की मौलाना साजिद रशीदी द्वारा उनकी पत्नी डिंपल यादव पर की गई अपमानजनक टिप्पणी के बाद चुप्पी को लेकर भारतीय राजनीति में तीखी बहस छिड़ी है। इस मुद्दे पर उनकी खामोशी को कई लोग उनकी मजबूरी और राजनीतिक रणनीति से जोड़कर देख रहे हैं। नीचे इस विषय पर एक मारक और संतुलित विवेचन प्रस्तुत है:


अखिलेश यादव की चुप्पी की पृष्ठभूमि 22 जुलाई 2025 को अखिलेश यादव और उनकी पत्नी डिंपल यादव, जो मैनपुरी से सांसद हैं, संसद भवन के पास मस्जिद में गए थे। वहां समाजवादी पार्टी (सपा) के अन्य सांसदों के साथ एक बैठक हुई, जिसके बाद मौलाना साजिद रशीदी, ऑल इंडिया इमाम एसोसिएशन के अध्यक्ष, ने डिंपल यादव के पहनावे और मस्जिद में उनकी उपस्थिति को लेकर आपत्तिजनक और अभद्र टिप्पणी की। इस टिप्पणी ने न केवल सपा, बल्कि पूरे राजनीतिक परिदृश्य में हंगामा मचा दिया। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया, और अखिलेश की चुप्पी पर सवाल खड़े किए।
अखिलेश की चुप्पी की संभावित मजबूरियां वोट बैंक की राजनीति और मुस्लिम समुदाय का समर्थन:
समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में मुस्लिम समुदाय के बीच मजबूत आधार रखती है। अखिलेश यादव की चुप्पी को कई विश्लेषकों ने उनकी रणनीति के रूप में देखा है, ताकि इस समुदाय को नाराज न किया जाए। मौलाना साजिद रशीदी एक प्रभावशाली धार्मिक नेता हैं, और उनके खिलाफ सख्त रुख अपनाने से सपा का मुस्लिम वोट बैंक प्रभावित हो सकता है।
भाजपा ने इस मुद्दे को "मुस्लिम तुष्टिकरण" के रूप में प्रचारित किया है, जिससे अखिलेश पर दबाव बढ़ा है। उनकी चुप्पी को कुछ लोग सियासी मजबूरी के रूप में देखते हैं, जहां वह वोट बैंक को प्राथमिकता दे रहे हैं।
रणनीतिक चुप्पी और विवाद को टालने की कोशिशअखिलेश यादव एक परिपक्व और रणनीतिक राजनेता के रूप में जाने जाते हैं। उनकी चुप्पी को एक सोची-समझी रणनीति के रूप में देखा जा सकता है, जिसका उद्देश्य इस विवाद को और तूल न देना है। उत्तर प्रदेश की राजनीति में धार्मिक और सांप्रदायिक मुद्दे जल्दी ही बड़े विवाद का रूप ले सकते हैं, और अखिलेश शायद इस मामले को ठंडा करना चाहते हैं।
इसके अलावा, डिंपल यादव ने स्वयं इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया देकर कहा कि वह अपने सम्मान की रक्षा करने में सक्षम हैं, जिससे अखिलेश को इस मामले में हस्तक्षेप न करने का एक आधार मिला।
पार्टी की छवि और आंतरिक एकतासपा पहले से ही इस मुद्दे पर असहज स्थिति में है, क्योंकि मस्जिद में बैठक को लेकर पहले ही भाजपा और कुछ मुस्लिम धार्मिक नेताओं ने आलोचना की थी। मौलाना साजिद की टिप्पणी के बाद सपा की ओर से कोई आधिकारिक बयान न देना इस बात का संकेत हो सकता है कि पार्टी इस मामले को दबाकर अपनी आंतरिक एकता बनाए रखना चाहती है।
सपा कार्यकर्ता प्रवेश यादव ने मौलाना के खिलाफ लखनऊ के विभूतिखंड थाने में एफआईआर दर्ज की, जिससे पार्टी ने इस मुद्दे पर कुछ हद तक अपनी स्थिति स्पष्ट की। हालांकि, अखिलेश का व्यक्तिगत रूप से चुप रहना उनकी रणनीति का हिस्सा हो सकता है।
महिला सशक्तिकरण और व्यक्तिगत छवि अखिलेश यादव ने अतीत में महिला सशक्तिकरण के लिए कई कदम उठाए हैं, जैसे 2012 में 1090 महिला हेल्पलाइन की शुरुआत। उनकी चुप्पी को कुछ लोग उनकी पत्नी डिंपल यादव को स्वतंत्र रूप से इस मुद्दे से निपटने का मौका देने के रूप में भी देखते हैं। हालांकि, यह रणनीति उलटी भी पड़ सकती है, क्योंकि उनकी खामोशी को कमजोरी या तुष्टिकरण के रूप में प्रचारित किया जा रहा है।
भाजपा और एनडीए का रुख भाजपा ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया है, और इसे सपा की "मुस्लिम तुष्टिकरण" की नीति का सबूत बताया है। भाजपा सांसदों ने संसद परिसर में विरोध प्रदर्शन किया, जिसमें उन्होंने नारे लगाए जैसे "नारी शक्ति का अपमान नहीं सहेंगे"। भाजपा नेत्री बेबी रानी मौर्य ने अखिलेश की चुप्पी को "राजनीतिक कायरता" करार दिया और इसे नारी सम्मान पर हमला बताया। भाजपा का यह रुख सपा को घेरने और उत्तर प्रदेश की हिंदू-मुस्लिम राजनीति में ध्रुवीकरण को बढ़ाने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।
मौलाना साजिद रशीदी की प्रतिक्रिया मौलाना साजिद ने अपनी टिप्पणी पर माफी मांगने से इनकार कर दिया और इसे सही ठहराया, यह कहते हुए कि उन्होंने मस्जिद की पवित्रता की रक्षा के लिए यह बयान दिया। उनकी इस हठधर्मिता ने विवाद को और हवा दी, और सपा के लिए स्थिति को और जटिल कर दिया।
अखिलेश की चुप्पी का विश्लेषण
अखिलेश की चुप्पी को निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर समझा जा सकता है:
सियासी संतुलन: अखिलेश शायद इस मुद्दे को तूल देकर मुस्लिम समुदाय और हिंदू मतदाताओं के बीच संतुलन बिगड़ने से बचना चाहते हैं। उत्तर प्रदेश में 2027 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए, वह किसी भी तरह के धार्मिक विवाद से बचना चाहते हैं।
डिंपल यादव की स्वायत्तता: डिंपल ने इस मुद्दे पर अपनी बात रखकर यह संदेश दिया कि वह स्वयं इस मामले को संभाल सकती हैं। अखिलेश की चुप्पी उनकी पत्नी की इस स्वायत्तता का समर्थन हो सकती है।
विपक्ष का दबाव: भाजपा और एनडीए के आक्रामक रुख ने अखिलेश को रक्षात्मक स्थिति में ला दिया है। उनकी चुप्पी को कमजोरी के रूप में प्रचारित किया जा रहा है, जिससे सपा की छवि को नुकसान हो सकता है।

अखिलेश यादव की चुप्पी उनकी सियासी मजबूरी का परिणाम हो सकती है, जहां वह मुस्लिम वोट बैंक को नाराज करने और धार्मिक विवाद को बढ़ाने से बचना चाहते हैं। हालांकि, यह रणनीति उनकी छवि को कमजोर भी कर सकती है, क्योंकि इसे उनकी पत्नी के अपमान को नजरअंदाज करने के रूप में देखा जा रहा है। यह स्थिति उत्तर प्रदेश की जटिल सामाजिक और धार्मिक गतिशीलता को दर्शाती है, जहां हर कदम का सियासी असर पड़ता है। अखिलेश को इस मामले में संतुलित और प्रभावी रुख अपनाने की जरूरत है, ताकि वह अपनी और अपनी पार्टी की विश्वसनीयता को बनाए रख सकें।

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