उत्तरप्रदेश सरकार का दोहरा मान दंड, कान्वेंट स्कूलों के लिए 3से ऊपर के बच्चा एडमिशन और प्राइमरी में 6 वर्ष कैसे सुधरेगी प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था?

 उत्तरप्रदेश सरकार का दोहरा मान दंड, कान्वेंट स्कूलों के लिए 3से ऊपर के बच्चा एडमिशन और प्राइमरी में 6 वर्ष कैसे सुधरेगी प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था?

राजेन्द्र नाथ तिवारी,बस्ती,वशिष्ठनगर

उत्तर प्रदेश सरकार की प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं, लेकिन कॉन्वेंट स्कूलों में 3 वर्ष से अधिक आयु के बच्चों के दाखिले और प्राइमरी स्कूलों में 6 वर्ष की आयु सीमा के नियमों को लेकर कुछ सवाल और आलोचनाएं हैं, जिन्हें "दोहरा मानदंड" के रूप में देखा जा सकता है। यहाँ इस मुद्दे का विश्लेषण और प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए किए जा रहे प्रयासों का विवरण दिया गया है:

दोहरे मानदंड का मुद्दा कॉन्वेंट स्कूलों में 3 वर्ष से अधिक आयु के बच्चों का दाखिला: राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 और शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) 2009 के तहत, प्री-स्कूल में प्रवेश के लिए न्यूनतम आयु 3 वर्ष निर्धारित की गई है। यह नियम कॉन्वेंट स्कूलों पर लागू होता है, जहां प्री-प्राइमरी कक्षाओं (नर्सरी, LKG, UKG) में 3 वर्ष से अधिक आयु के बच्चों को दाखिला दिया जाता है।aajtak.in हालांकि, कुछ मामलों में, कॉन्वेंट स्कूलों में आयु सीमा को लेकर लचीलापन देखा जाता है, जिससे अभिभावकों में यह धारणा बनती है कि निजी स्कूलों को अधिक छूट दी जाती है। प्राइमरी स्कूलों में 6 वर्ष की आयु सीमा: RTE अधिनियम के अनुसार, प्राइमरी स्कूल (कक्षा 1) में प्रवेश के लिए बच्चे की आयु 6 वर्ष होनी चाहिए। यह नियम सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों में सख्ती से लागू किया जाता है।aajtak.in आलोचना यह है कि कॉन्वेंट स्कूलों में प्री-प्राइमरी स्तर पर कम आयु में दाखिला होने के कारण बच्चे जल्दी औपचारिक शिक्षा शुरू कर देते हैं, जबकि सरकारी स्कूलों में 6 वर्ष की आयु तक इंतजार करना पड़ता है। इससे सरकारी स्कूलों में दाखिला लेने वाले बच्चों को शैक्षिक प्रगति में देरी का सामना करना पड़ सकता है। दोहरे मानदंड की धारणा: निजी स्कूलों (कॉन्वेंट) में प्री-स्कूल शिक्षा की शुरुआत 3 वर्ष से होने और सरकारी स्कूलों में प्राइमरी शिक्षा के लिए 6 वर्ष की आयु सीमा के कारण अभिभावकों में असमानता की भावना पैदा होती है। यह धारणा और प्रबल होती है जब निजी स्कूलों को आयु सीमा में छूट मिलती है, जबकि सरकारी स्कूलों में नियमों का सख्ती से पालन किया जाता है। इसके अलावा, कॉन्वेंट स्कूलों में बेहतर बुनियादी ढांचा और संसाधन उपलब्ध होने से सरकारी स्कूलों की तुलना में उनकी गुणवत्ता को लेकर भी सवाल उठते हैं। प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए उत्तर प्रदेश सरकार के प्रयास उत्तर प्रदेश सरकार ने प्राथमिक शिक्षा को मजबूत करने के लिए कई पहल शुरू की हैं, जो इन असमानताओं को कम करने और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करने पर केंद्रित हैं:

मुख्यमंत्री मॉडल कम्पोजिट विद्यालय: प्रत्येक जिले में प्री-प्राइमरी से कक्षा 12 तक मुफ्त शिक्षा प्रदान करने वाले मुख्यमंत्री मॉडल कम्पोजिट विद्यालय स्थापित किए जा रहे हैं। इन स्कूलों में कॉन्वेंट स्कूलों जैसा माहौल, स्मार्ट क्लास, कंप्यूटर लैब, और खेल के मैदान जैसी सुविधाएं दी जाएंगी, ताकि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों में हीन भावना न रहे।@UPGovt स्कूल युग्मन (Pairing) नीति: कम नामांकन वाले प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूलों को निकटवर्ती स्कूलों के साथ जोड़ा जा रहा है, ताकि संसाधनों का बेहतर उपयोग हो सके। यह नीति स्कूलों को बंद करने के बजाय उनके संसाधनों (जैसे शिक्षक, कक्षा-कक्ष, और डिजिटल सुविधाएं) का समन्वित उपयोग सुनिश्चित करती है।inanews.orguptak.in इस नीति के तहत, स्कूलों में स्मार्ट क्लास और आईसीटी लैब स्थापित किए जा रहे हैं, जिससे डिजिटल शिक्षा को बढ़ावा मिलेगा और डिजिटल डिवाइड कम होगा।inanews.org राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 का कार्यान्वयन: NEP 2020 के तहत, सरकारी स्कूलों में प्री-प्राइमरी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए बालवाटिकाएं शुरू की जा रही हैं। इससे सरकारी स्कूलों में भी 3 वर्ष से अधिक आयु के बच्चों को प्री-स्कूल शिक्षा मिल सकेगी, जिससे निजी और सरकारी स्कूलों के बीच की खाई कम होगी।inanews.org CBSE पाठ्यक्रम को राज्य बोर्ड स्कूलों में लागू करने की योजना है, जो शैक्षणिक वर्ष 2025-26 से प्रभावी होगी। इससे शिक्षा में एकरूपता और मानकीकरण आएगा।aajtak.in विशेष शिक्षा जोन (SEZ): लखनऊ, गोरखपुर, अयोध्या, आगरा, गौतम बुद्ध नगर, और बुंदेलखंड में विशेष शिक्षा जोन स्थापित किए जा रहे हैं। इनमें प्री-प्राइमरी से विश्वविद्यालय स्तर तक के शैक्षणिक संस्थान होंगे, जो शिक्षा और कौशल विकास को बढ़ावा देंगे।jagranjosh.com डिजिटल शिक्षा और बुनियादी ढांचे में सुधार: शिक्षा मंत्रालय ने 75 छात्रों वाले स्कूलों में स्मार्ट क्लास और 125 छात्रों वाले स्कूलों में आईसीटी लैब स्थापित करने की मंजूरी दी है। यह सुविधा युग्मन नीति के माध्यम से कम नामांकन वाले स्कूलों के छात्रों को भी उपलब्ध होगी।inanews.org प्रोग्रेसिव ग्रेडिंग इंडेक्स (PGI) 2023-24 में उत्तर प्रदेश की रेटिंग में 29 पॉइंट की बढ़ोतरी हुई है, जो शिक्षा के स्तर और बुनियादी ढांचे में सुधार को दर्शाता है।etvbharat.com आश्रम पद्धति विद्यालय: अनुसूचित जाति, जनजाति, और विमुक्त जाति के बच्चों के लिए 94 राजकीय आश्रम पद्धति विद्यालय संचालित किए जा रहे हैं, जहां निःशुल्क शिक्षा, छात्रावास, और अन्य सुविधाएं प्रदान की जाती हैं।lalitpur.nic.in चुनौतियां और समाधान चुनौतियां: निजी और सरकारी स्कूलों के बीच संसाधनों और गुणवत्ता में असमानता। आयु सीमा के नियमों को लेकर अभिभावकों में भ्रम और असंतोष। ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षकों की कमी और कम नामांकन। डिजिटल शिक्षा तक पहुंच में असमानता। समाधान: आयु सीमा के नियमों को स्पष्ट करने और अभिभावकों को जागरूक करने के लिए जागरूकता अभियान चलाए जाएं। सरकारी स्कूलों में प्री-प्राइमरी शिक्षा को और मजबूत किया जाए, ताकि कॉन्वेंट स्कूलों के साथ प्रतिस्पर्धा हो सके। शिक्षकों की भर्ती और प्रशिक्षण पर जोर देकर शिक्षण की गुणवत्ता में सुधार किया जाए। डिजिटल शिक्षा को ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुंचाने के लिए और अधिक निवेश किया जाए। निष्कर्ष उत्तर प्रदेश सरकार की योजनाएं, जैसे मॉडल कम्पोजिट विद्यालय, स्कूल युग्मन नीति, और विशेष शिक्षा जोन, प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था को मजबूत करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं। हालांकि, कॉन्वेंट और सरकारी स्कूलों के बीच आयु सीमा और संसाधनों की असमानता को दूर करने के लिए और अधिक एकरूपता और पारदर्शिता की आवश्यकता है। इन सुधारों के प्रभावी कार्यान्वयन से न केवल शिक्षा की गुणवत्ता में वृद्धि होगी, बल्कि अभिभावकों का सरकारी स्कूलों में विश्वास भी बढ़ेगा।@UPGovtinanews.orgjagranjosh.com

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उत्तर प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था: दोहरे मानदंड का तमाशा

माननीय उत्तर प्रदेश सरकार, आपकी शिक्षा नीतियों का लोहा तो मानना पड़ेगा! एक तरफ कॉन्वेंट स्कूलों में तीन साल का नन्हा-मुन्ना, जिसने अभी ठीक से "ए फॉर एप्पल" भी नहीं सीखा, उसे नर्सरी में दाखिल कर लिया जाता है। दूसरी तरफ, सरकारी स्कूलों में छह साल का बच्चा, जो शायद अब तक गलियों में गिल्ली-डंडा खेल रहा हो, उसे प्राइमरी में प्रवेश के लिए लाइन में खड़ा कर दिया जाता है। वाह! क्या खूबसूरत दोहरा मानदंड है! एक तरफ निजी स्कूलों में बच्चे तीन साल की उम्र में अंग्रेजी में कविताएं रट रहे हैं, और दूसरी तरफ सरकारी स्कूलों में बच्चे छह साल की उम्र तक "अ" से "ज्ञ" तक पहुंचने की जद्दोजहद में हैं। इसे कहते हैं समानता का सबक!

कॉन्वेंट स्कूलों में तो जैसे शिक्षा का पंचतारा होटल खुला है। स्मार्ट क्लास, एसी कमरे, और टीचर जो बच्चों को "डार्लिंग" कहकर बुलाते हैं। वहां बच्चा तीन साल में ही "ट्विंकल-ट्विंकल" गाकर स्टार बन जाता है। लेकिन सरकारी स्कूल? अरे, वहां तो बच्चे को पहले यह समझाना पड़ता है कि बेंच पर बैठना है, जमीन पर नहीं। और अगर बेंच टूटी हो, तो फिर जमीन ही ठीक है। शिक्षक? हां, वो कभी-कभी आते हैं, जब चाय और समोसे का मूड न हो। फिर भी सरकार कहती है, "हम शिक्षा में क्रांति ला रहे हैं!" क्रांति तो दिखती है, लेकिन वो क्रांति कहीं कॉन्वेंट स्कूलों के गेट के बाहर ही थम जाती है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 का हवाला देकर सरकार बालवाटिकाएं खोलने की बात करती है। सुनने में तो बड़ा अच्छा लगता है, लेकिन जमीनी हकीकत? ग्रामीण स्कूलों में न बिजली, न पानी, न शौचालय। फिर बालवाटिका में बच्चे क्या करेंगे? गर्मी में पसीना बहाते हुए "अ" से "आ" सीखेंगे? और ऊपर से युग्मन नीति! कम नामांकन वाले स्कूलों को जोड़ा जा रहा है, ताकि संसाधन साझा हो सकें। लेकिन सवाल यह है कि जब संसाधन ही नहीं, तो साझा क्या होगा? टूटी बेंच और खाली ब्लैकबोर्ड? या फिर शिक्षक की वो थकी-हारी सी मुस्कान, जो कहती है, "बस, अब और नहीं!"

सरकार की मॉडल कम्पोजिट स्कूल योजना भी कमाल की है। प्री-प्राइमरी से बारहवीं तक मुफ्त शिक्षा, स्मार्ट क्लास, और कंप्यूटर लैब! सुनकर तो लगता है जैसे सरकारी स्कूल अब कॉन्वेंट को टक्कर देंगे। लेकिन जरा गौर करें—ये स्कूल कितने गांवों तक पहुंचे? और अगर पहुंचे भी, तो क्या वहां शिक्षक समय पर पहुंचते हैं? या फिर कंप्यूटर लैब में बिजली है? नहीं, नहीं, ये सवाल पूछना तो सरकार के "विकास" के खिलाफ साजिश है!

और हां, विशेष शिक्षा जोन (SEZ) का आइडिया तो जैसे शिक्षा का मेक इन इंडिया है। लखनऊ, गोरखपुर, अयोध्या में ये जोन बनेंगे, जहां प्री-प्राइमरी से लेकर यूनिवर्सिटी तक सब होगा। लेकिन साहब, जब गांव का बच्चा स्कूल तक पहुंचने के लिए कीचड़ भरे रास्तों से गुजर रहा हो, तो ये जोन उसके लिए कितने काम के हैं? शायद उतने ही, जितना चांद पर प्लॉट बुक करना!

तो भैया, उत्तर प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था में सुधार की बात तो बहुत होती है, लेकिन हकीकत में ये दोहरा मानदंड ही चल रहा है। कॉन्वेंट स्कूलों में बच्चे तीन साल में अंग्रेजी बोलने लगते हैं, और सरकारी स्कूलों में छह साल का बच्चा अभी "क" से "ख" की जुगत में है। सरकार से बस यही गुजारिश है—या तो दोनों के लिए एक जैसा नियम बनाइए, या फिर इस तमाशे को बंद कीजिए। वरना, शिक्षा का ये रंगमंच चलता रहेगा, और दर्शक बनकर ताली बजाते रहेंगे हम और आप, जबकि बच्चे का भविष्य मंच के पीछे कहीं अंधेरे में खो जाएगा।

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