मेक इन इंडिया और मेड इन इंडिया का अंतर समझें .

 कई लोग दोनों का एक ही अर्थ लेते हैं। लेकिन दोनों एक नहीं हैं “मेक इन इंडिया“ और “मेड इन इंडिया“ दोनों में काफी कुछ अंतर है। देशी या घरेलू से विदेशी तक या घरेलू से वैश्वीकरण तक की कहानी को बयां करता हैं यह शब्दों का जाल। एक परिवार के रूप में बात की जाए तो संयुक्त हिंदू परिवार (एचयूएफ) व्यवसाय से साझेदारी व्यवसाय के अन्तर बीच के अन्तर को राष्ट्रीय स्तर के अन्तर को प्रकट करती है। देखे -

मेड इन इंडिया - स्वदेशी संसाधनो और पूंजी के उपयोग से भारत में बना शुद्ध देशी उत्पाद। उदाहरण के तौर पर अमूल के सभी उत्पाद इस श्रेणी के उत्पाद हैं।

मेक इन इंडिया - इसमे संसाधन और श्रम भारत के उपयोग होते हैं तो वहीं पूँजी विदेशी, सामन्यतः एफडीआई।

चित्रः मेक इन इंडिया का लोगो

मेक इन इंडिया के अंतर्गत न केवल पूंजी अपितु विदेशी तकनीकी और डिजाइन भी उत्पादन के लिए प्रयोग में ली जा रही है।

 स्पष्ट भाषा में कोई भी विदेशी कंपनी भारत में निवेश कर भारत की सीमाओं के भीतर भारतीय श्रम शक्ति के सहारे अपनी तकनीकी और डिजाइन का उपयोग कर भारत में उत्पादित करने के लिए निवेश करती हैं तो इसे मेक इन इंडिया की श्रेणी में रखा जा सकता है। भारत सरकार ने 25 क्षेत्रो में इसे अनुमति दे रखी है। इसका उदेश्य अतिरिक्त श्रम शक्ति का उपयोग करने के लिए विदेशी निवेशकों को आकर्षित करना है, जबकि मेक इन इंडिया का उदेश्य घरेलू संसाधनो और पूंजी का प्रयोग कर उत्पादन कर विदेशी निवेश और तकनीक निर्भरता को कम करना होता है।

क्यों उठता है प्रश्न?

मेक इन इंडिया 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा, जब एनडीए सरकार ने भारतीय संसद के शासनकाल को संभाला था, शुरू की गई एक पहल है जो भारतीय अर्थव्यवस्था को स्थिर करने और देश के आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के मुद्दे से निपटने के लिए लांच की गई थी। हालांकि, इसमे कुछ नियमो की पहले से ढील हैं लेकिन बिल्कुल नया अभियान नहीं कहा जा सकता है। राजनैतिक कारणों से अक्सर इस अभियान पर प्रश्न खड़े किए जाते रहे हैं जिसका कारण काफी हद तक इसकी सफ़लता भी है। इस अभियान से भारत अपरम्परा उत्पादों का निर्यातक बनता जा रहा है भले बात मोबाइल निर्यात की हो या कार निर्यात की।

मेक इन इंडिया, मेड इन इंडिया की तरफ कदम -

आयात या असेंबल इन इंडिया (विदेशों से विभिन्न उपकरणों का आयात कर भारत में असेंबल करना) के मुकाबले में मेक इन इंडिया एक उपयुक्त कदम है। इससे भारत की श्रम शक्ति में तकनीकी विकास संभव हैं जिससे घरेलू स्तर पर अच्छी गुणवत्ता वाले उत्पादों का निर्माण किए जाने की संभावना बढ़ेगी।

 कुल मिलाकर मेक इन इंडिया अभियान मेड इन इंडिया की तरफ एक कदम है ना कि उसका पर्याय।

ऐसा सरकार पहली बार नहीं कर रहीं हैं पहले से ऐसा होता आया है, जिसे कभी जॉइंट वेंचर का नाम दिया तो कभी कुछ और। हिरो साइकिल के साथ होंडा का मिलन भी तकनीकी रूप से ऐसा ही संयोग था, जिसमें विदेशी कंपनी भारतीय कंपनी मे निवेश कर तकनीकी और डिजाइन दोनो देती रहीं। एक समय के बाद इसके विघटन से मेड इन इंडिया के उत्पादों को ले हीरो सामने आयी।

विशेष - वर्तमान समय में विश्व के सभी देश तकनीकी विकास और मूल्य प्रतिस्पर्धी मूल्य नियंत्रण के कारण असेंबल प्रोसेसिंग में अधिक विश्वास करते हैं, जिसके कारण गिने चुने देश ही मेड इन का उत्पादन कर रहे हैं। वर्तमान में मेड इन उत्पादन आधारित की बजाय लाइसेंस आधारित होता जा रहा है।


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