बुर्किना फासो का राष्ट्रपति,अरब देशों ने कहा तुम्हारे देश में 200 मस्जिदें बनवा देते हैं,इब्राहिम ने कहा अल्लाह की इबादत तो कही से भी की जासकती है,मुझे मस्जिद नहीं स्कूल कालेज चाहिए.

 राजेंद्र नाथ तिवारी

नौजवान जो पूरे अफ्रीका के लिए नजीर बन गया




उच्च शिक्षा हासिल करते हुए इब्राहिम को मुल्क के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का शिद्दत से एहसास हुआ। वह मनुहार करते रहे कि मां उन्हें फौज में भर्ती होने की इजाजत दे दें! मां किसी भी मुल्क की हो, अपने बच्चों के अरमान पर वह बार-बार निछावर होती है। इब्राहिम को अनुमति मिल गई।


दुनिया के सबसे गरीब व हिंसा-ग्रस्त मुल्कों में से एक है बुर्किना फासो। वह उसके राष्ट्रपति हैं। शायद संसार के सबसे कम उम्र के सदर । मगर साहस, साफगोई और दूरदर्शिता उन्हें आफ्रीका के नेताओं से अलग करती हैं। उनकी बातें पश्चिम को चुभती है, मगर वे दुनिया भर में सुनी और सराही जा रही हैं। वह कहते है-कुदरत ने तो हमें (आफ्रीका को) बेशुमार दौलत से नवाजा है, मगर पश्चिमी देश हमें लूटते रहे और हमें ही हिकारत से देखते भी रहे। आश्चर्य नहीं, उनकी लोकप्रियता बुर्किना फासो और आफ्रीकी महाद्वीप को पार कर अब अमेरिका, यूरोप व एशिया में असरंदाज हो रही है। 37 साल के राष्ट्रपति इब्राहिम ट्राऔरे सोशल मीडिया में खूब ट्रेंड कर रहे हैं।


मार्च 1988 में मौहौन सूबे के केरा, बोंडाकुई गांव में इब्राहिम पैदा हुए। पिता फौज में थे, पर उनकी तनख्वाह में बड़ी मुश्किल से गुजारा होता था। फिर वह काफी लंबे-लंबे अंतराल पर घर लौटते, जिसके कारण परिवार की देखभाल में मां को काफी तकलीफें उठानी पड़ती। दादी और मां की स्नेहिल छांव में इब्राहिम बड़े हुए। बोंडाकुई के प्राइमरी स्कूल में बेटे ने अच्छा प्रदर्शन किया, तो माता-पिता का हौसला बढ़ा। इब्राहिम को आगे पढ़ाने का फैसला किया गया। देश के दूसरे बड़े शहर बोबो डिउलासो में हाईस्कूल था। इब्राहिम को वहां दाखिला तो मिल गया, मगर वह घर से करीब सात किलोमीटर दूर था। इब्राहिम को पैदल ही यह दूरी तय करनी पड़ती। कई बार तो उनके पास इतने पैसे भी नहीं होते कि वह दोपहर में कुछ कुछ खा सकें, लिहाजा एक वक्त के भोजन से ही काम चलाना पड़ता। इब्राहिम की खामोश तबीयत, अनुशासन और विषयों को समझने की जबर्दस्त काबिलियत ने शिक्षकों के बीच उन्हें जल्द ही लोकप्रिय बना दिया। वे सब उन पर विशेष ध्यान देने लगे। इब्राहिम की विज्ञान में काफी दिलचस्पी थी। उनका बारहवीं का नतीजा भी बेहतरीन आया। अब वह फौज में जाने के योग्य हो चुके थे। इब्राहिम बचपन से ही पिता की तरह एक फौजी बनना चाहते थे, मगर मां को यह मंजूर न था। पति के फौजी जीवन की कठिनाइयों को वह भुगत चुकी थीं। उन्होंने इब्राहिम को फौज में जाने की इजाजत नहीं दी।


जन्मभूमि की सेवा के लिए जननी की नाफरमानी की बड़ी चुनौती आ खड़ी हुई थी। इब्राहिम दोनों से वफा करना चाहते थे। लिहाजा वह देश की सबसे प्रतिष्ठित औगाडौगू यूनिवर्सिटी में जूलॉजी ऑनर्स करने पहुंच गए। उच्च शिक्षा हासिल करते हुए इब्राहिम को मुल्क के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का एहसास कहीं अधिक शिद्दत से हुआ। यह मनुहार करते रहे कि मां उन्हें फौज में भर्ती होने की इजाजत दे दें। मां किसी भी मुल्क की हो, बच्चों के अरमान पर बार-बार निछावर होती है। इब्राहिम को अनुमति मिल गई।


साल 2009 में स्नातक की डिग्री लेने के बाद उन्होंने फौज में आवेदन किया और फौरन उनका चयन भी हो गया। इब्राहिम को प्रारंभिक प्रशिक्षण के लिए मोरक्को भेजा गया। वहां उन्होंने एंटी एयरक्राफ्ट ऑपरेशन में महारत हासिल की। उन्होंने देश में और संयुक्त राष्ट्र शांति सेना के तहत दूसरे देशों में भी कई सैन्य अभियानों को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। खासकर माली में उनके सफल अभियान ने एक निर्भीक व सक्षम सैन्य लीडर के रूप में उनकी धाक जमा दी। 2020 में इब्राहिम को कैप्टन बना दिया गया। नई हैसियत में आते ही पता चल गया कि आखिर फौजियों के पास जरूरी साजो-सामान की कमी की कमी न हो  देश में.

अरब देशों ने इब्राहिम से कहा तुम्हारे देश में 200 मस्जिदें बनवा देते हैं,इब्राहिम ने कहा अल्लाह की इबादत तो कही  से भी की जासकती है,मुझे मस्जिद नहीं स्कूल कालेज चाहिए.

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