नकली आईएएस का खेल और कानून का मजाक
लखनऊ की घटना ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि फर्जीवाड़ा करने वाले अपराधी अब किसी भी हद तक जा सकते हैं। शहीद स्मारक के पास पकड़ा गया युवक जब खुद को आईएएस अधिकारी बताकर पुलिस को गुमराह करने लगा तो यह केवल धोखाधड़ी नहीं बल्कि प्रशासन और व्यवस्था पर सीधा हमला था।
कार में लगी लाल-नीली बत्ती, हाथ में विजिटिंग कार्ड और जुबान पर झूठा रौब—यह सब मिलकर जनता को ठगने का हथियार बन चुका है। ऐसे नकली अफसर समाज का विश्वास तोड़ते हैं, कानून को धता बताते हैं और सिस्टम की खामियों को उजागर कर देते हैं।
पुलिस ने समय रहते इस ढोंगी को पकड़कर बड़ा नुकसान होने से बचा लिया, लेकिन सवाल यह है कि आखिर कैसे कोई साधारण युवक इतनी आसानी से फर्जी पहचान और प्रतीक चिह्न जुटा लेता है? अगर चौकसी न होती तो न जाने कितने लोग उसके झांसे में फंसते।
यह घटना प्रशासनिक तंत्र के लिए चेतावनी है। फर्जी अफसरों पर सिर्फ गिरफ्तारी नहीं, बल्कि कठोरतम दंड जरूरी है, ताकि कोई दूसरा व्यक्ति इस तरह की हरकत करने की हिम्मत न जुटा सके।
समाज को भी चौकन्ना रहना होगा। हर लाल-नीली बत्ती दिखाने वाला, हर विजिटिंग कार्ड थमाने वाला असली अफसर हो, यह जरूरी नहीं। सवाल पूछना, पहचान की पुष्टि करना और संदेह होने पर पुलिस को सूचित करना नागरिकों की जिम्मेदारी है।
यह मामला केवल एक युवक की गिरफ्तारी भर नहीं, बल्कि व्यवस्था की परीक्षा है। अगर इस बार भी सख्त कार्रवाई न हुई तो कल फिर कोई नया “नकली आईएएस” निकल आएगा और जनता को मूर्ख बनाता फिरेगा।