सांसद के मुंह से लोकतंत्र की हत्या,महुआ मोइत्रा पर अराजकता फैलाने का आरोप

 

बस्ती,नई दिल्ली



महुआ मोइत्रा का बयान भारतीय लोकतंत्र की मर्यादाओं के खिलाफ एक खतरनाक मिसाल है। संसद की शपथ लेने वाली और संविधान की रक्षा का वचन देने वाली सांसद का यह कहना कि “गृहमंत्री का सिर काटकर टेबल पर रख देना चाहिए”—सिर्फ आपत्तिजनक ही नहीं बल्कि उग्र और हिंसात्मक मानसिकता का प्रदर्शन है। यह बयान किसी स्वस्थ लोकतांत्रिक बहस का हिस्सा नहीं बल्कि राजनीतिक हताशा और अराजकता का परिचायक है।

  1. हिंसा का समर्थन, बहस का गला घोंटना
    किसी भी जनप्रतिनिधि का कर्तव्य होता है कि वह मुद्दों को तथ्यों और तर्कों के आधार पर रखे। लेकिन जब एक सांसद केंद्रीय गृह मंत्री जैसे संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति के लिए हिंसात्मक भाषा का प्रयोग करे, तो यह सीधा लोकतंत्र की आत्मा पर हमला है। यह बयान न सिर्फ अमित शाह पर बल्कि पूरे गृह मंत्रालय, संसद और भारतीय जनता पर प्रहार है।

  2. राजनीतिक निराशा का विस्फोट
    महुआ मोइत्रा पहले भी विवादित बयानों के लिए चर्चित रही हैं। लेकिन इस बार उन्होंने सारी सीमाएं लांघ दीं। बंगाल की राजनीति में टीएमसी जिस दबाव का सामना कर रही है—सीएए, एनआरसी और अवैध घुसपैठ पर कड़ा रुख—उस हताशा की झलक इस बयान में दिखती है। जो पार्टी खुद को “जनता की आवाज” कहती है, उसकी सांसद खुलेआम हिंसा की बात कर रही हैं—यह उनकी राजनीतिक नैतिकता का दिवालियापन है।

  3. घुसपैठ का असली सच छिपाने की कोशिश
    अवैध घुसपैठ पर सवाल उठाना जायज है। यह केंद्र और राज्य, दोनों की जिम्मेदारी है। लेकिन इस पर गंभीर बहस करने की बजाय, गृह मंत्री पर हमला करना और हिंसात्मक भाषा इस्तेमाल करना यह दर्शाता है कि महुआ असल मुद्दे—घुसपैठ, जनसंख्या असंतुलन और राष्ट्रीय सुरक्षा—से ध्यान भटकाना चाहती हैं।

  4. संविधान और कानून का अपमान
    भारत जैसे लोकतंत्र में असहमति दर्ज कराने के अनगिनत तरीके हैं—संसद से लेकर कोर्ट तक। लेकिन “सिर काटने” जैसी बात कहना न सिर्फ भड़काऊ और असंवैधानिक है बल्कि यह दंडनीय अपराध की श्रेणी में आता है। सांसद होने के नाते उनका अपराध और भी बड़ा हो जाता है क्योंकि


    उनके शब्द जनता को हिंसा के लिए उकसा सकते हैं।


महुआ मोइत्रा का यह बयान भारतीय लोकतंत्र और राजनीतिक संस्कृति दोनों के लिए काला धब्बा है। यह साबित करता है कि तृणमूल कांग्रेस मुद्दों पर लड़ने के बजाय उग्र, अराजक और हिंसात्मक राजनीति का सहारा लेने लगी है। अब सवाल यह है—क्या संसद और न्यायपालिका इस बयान पर कड़ी कार्रवाई करेगी, या फिर ऐसे खतरनाक बयानों को सिर्फ “राजनीतिक बयानबाजी” कहकर छोड़ दिया जाएगा?


1 Comments

Previous Post Next Post

Contact Form