सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम है, पर ब्रह्म से नहीं!
यतो धर्मस्तोज्य: इस ध्येय वाक्य का भी स्मरण नहीं आया सुप्रीम कोर्ट के सुप्रीम जज को !जब कोई संस्था अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर ऐसे विषयों पर टिप्पणी करती है, जो उसकी पकड़ से परे हैं, तो यह न केवल हास्यास्पद लगता है बल्कि अज्ञान का परिचायक भी बन जाता है। सुप्रीम कोर्ट संविधान की रक्षा में सर्वोच्च है, परंतु ब्रह्म या उसके अवतारों पर “सुप्रीम” की टिप्पणी करना एक ऐसी भूल है जिसे भारत की दार्शनिक चेतना कभी स्वीकार नहीं करेगी।
राम और कृष्ण कौन हैं? क्या वे दो अलग व्यक्तित्व हैं? नहीं। वे दोनों ही ब्रह्म के रूप हैं। अंतर सिर्फ इतना है कि राम बारह कलाओं के साथ आए और कृष्ण सोलह कलाओं के साथ। कार्य की आवश्यकता के अनुसार ब्रह्म स्वयं को विभाजित करता है, परंतु उसकी पूर्णता में कभी कमी नहीं आती। वेदों ने स्पष्ट कहा है –
“ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते।”
अर्थात पूर्ण से जब भी पूर्ण निकलेगा, वह फिर भी पूर्ण ही रहेगा।
तो फिर यह कैसा न्याय है कि धरती का सर्वोच्च न्यायालय ब्रह्म की सत्ता को “सुप्रीम” कहकर आंकने लगे? क्या अदालत यह तय करेगी कि राम छोटे थे और कृष्ण बड़े? क्या यह न्याय का विषय है या दर्शन का अपमान?
वास्तविकता यह है कि सुप्रीम कोर्ट की सुप्रीमसी संविधान तक सीमित है, वहीं ब्रह्म की सुप्रीमसी सृष्टि के कण-कण तक फैली है। विष्णु पर टिप्पणी करना, या अवतारों की तुलना करना, भारतीय अध्यात्म का अनादर है। यह वही अध्यात्म है जिसने हजारों वर्षों तक सभ्यता को जीवित रखा, जिसने हर परिस्थिति में मनुष्य को धर्म, नीति और सत्य का मार्ग दिखाया।
राम और कृष्ण को बड़ा-छोटा कहना वैसा ही है जैसे सूर्य और चंद्रमा में कौन बड़ा है, यह पूछना। दोनों ही आवश्यक हैं, दोनों ही पूजनीय हैं। ब्रह्म के अवतार किसी “रैंकिंग” के लिए नहीं उतरते, बल्कि सृष्टि संतुलन के लिए आते हैं। सुप्रीम कोर्ट यदि यह भूल करता है कि उसकी टिप्पणी से धर्म का आकलन होगा, तो यह आत्ममुग्धता की पराकाष्ठा है।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट संविधान के लिए “सुप्रीम” है, लेकिन ब्रह्म के लिए नहीं।
राम और कृष्ण में न कोई छोटा है, न बड़ा। वे दोनों ही ब्रह्म के ही रूप हैं – अनंत, असीम और अखंड।
सवाल यह नहीं है कि किस अवतार में कितनी कला थी, सवाल यह है कि क्या हम अपनी ही परंपरा की गहराई को समझ पाए हैं?
भारत के आध्यात्मिक सत्य को अदालत की टिप्पणी से नापा नहीं जा सकता।
ब्रह्म तो ब्रह्म है – अद्वितीय, अजेय और सर्वोच्च।