सम्पादकीय
"वोट की राजनीति या बारूद की खेती?"
देश में लोकतंत्र की आत्मा चुनाव हैं और मतदाता उसका प्राण। लेकिन जब वोट पाने की भूख इतनी अंधी हो जाए कि अवैध मतदाताओं का सहारा लिया जाने लगे, तब यह केवल लोकतंत्र का अपमान नहीं, बल्कि राष्ट्र की स्थिरता पर खुला हमला है।
आज पूरा विपक्ष कटघरे में है। कारण स्पष्ट है—जहाँ-जहाँ चुनाव होते हैं, वहाँ विपक्ष की ओर से अवैध घुसपैठियों, फर्जी वोटरों और पहचान छिपाए मतदाताओं को संरक्षण दिए जाने की खबरें बार-बार सामने आती हैं। यह सिर्फ़ चुनावी अनैतिकता नहीं, बल्कि भविष्य में राष्ट्रीय संकट की जड़ है। वोट बैंक की राजनीति में विपक्ष जिस तरह से राष्ट्रहित को दाँव पर लगाकर “बारूद के ढेर” पर बैठा रहा है, वह आने वाले कल की सबसे बड़ी त्रासदी का संकेत है।
लोकतंत्र की मर्यादा यह कहती है कि सत्ता पाने के लिए विचार और कार्यनीति से जनता को जीतना चाहिए, लेकिन विपक्ष का चरित्र इस मर्यादा का घोर उल्लंघन करता दिख रहा है। उन्हें न तो देश की एकता की चिंता है, न ही सामाजिक ताने-बाने की। उन्हें सिर्फ़ कुर्सी चाहिए—चाहे उसके लिए देश को सांप्रदायिक तनाव, अवैध जनसंख्या विस्फोट और आंतरिक सुरक्षा संकट की आग में क्यों न झोंकना पड़े। और भाजपा सहित मोदी को बंगाल की खाड़ी में ही क्यों न फेकना पड़े.
याद कीजिए—जब-जब विपक्ष सत्ता से बाहर हुआ, उसने अवैध मतदाताओं को संरक्षण देकर जातीय, सांप्रदायिक और क्षेत्रीय समीकरण बनाने का घृणित खेल खेला। यही कारण है कि सीमावर्ती क्षेत्रों में घुसपैठ को नज़रअंदाज़ किया गया, बांग्लादेशी और रोहिंग्या तत्वों को राजनीतिक संरक्षण मिला और “मतदाता” के नाम पर “मज़हबी जनसंख्या” को बढ़ावा दिया गया। यह वोट बैंक की विषाक्त राजनीति है, जो अंततः राष्ट्र को दीमक की तरह खोखला करती है।
आज सवाल सिर्फ़ विपक्ष से नहीं है—क्या यह लोकतंत्र का मार्ग है, या विध्वंस का षड्यंत्र?
#विपक्ष ने अवैध मतदाताओं का संरक्षण कर भारत के चुनावी तंत्र की जड़ों में जहर घोलने का पाप किया है।
#विपक्ष ने वोट की भूख में राष्ट्रीय सुरक्षा को बलि चढ़ाने का दुस्साहस किया है।
#विपक्ष ने यह साबित कर दिया है कि उसके लिए लोकतंत्र एक साधन नहीं, केवल सत्ता हथियाने का व्यापार है।
#इसलिए अब समय आ गया है कि जनता विपक्ष से कठोर प्रश्न पूछे: क्या लोकतंत्र बारूद पर खड़ा किया जाएगा? क्या वोट की राजनीति देश की सुरक्षा से बड़ी है?
#राष्ट्र स्पष्ट देख रहा है—विपक्ष लोकतंत्र का प्रहरी नहीं, बल्कि उसका कब्र खोदने वाला बन चुका है।
अब जनता को ही यह तय करना है कि वह इस “बारूद की खेती” करने वाली राजनीति को और कितनी देर सहन करेगी।
बिहार बना है अवैध वोटो का राणांगन, जहां देश की एका से नहीं वरन किसी भी प्रकार से सत्ताशीन होना ही अभिप्रेत है!