जब विचार खत्म हो जाते हैं,तब शुरू होती हे गाली! राहुल के मंच से प्रधानमंत्री की मां को अपशब्द !

 बस्ती,उत्तर प्रदेश,मनोज श्रीवास्तव

बिहार की धरती पर ,बिहारी रामधारी सिंह दिनकर ने कहा था

जब नाश मनुज का आता है पहले विवेक मर जाता है 
अपनी आसन्न इच्छा मृत्यु को करीब जानकर विश्वास,अविवेकी नेताओं के सनक्षण में देश के प्रधान मंत्री की मां को गली देना इस बात का प्रमाण है राहुल ओर तेजस्वी की मां को भी गली दी गई,मोदी की मां को गालियां सुनकर जो खुश हैं उनके पूरे परिवारकर हंसने का समय आगया है.यह गालीवप्रधानमंत्री को नहीं भारत के 140 करोड़ को गाली है.



राजनीति की गालियों में डूबा विपक्ष,बिहार के दरभंगा में महागठबंधन के मंच से जो दृश्य सामने आया, वह भारतीय राजनीति के इतिहास पर एक काला धब्बा है। राहुल गांधी और तेजस्वी यादव के साथ साझा मंच से, देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बार-बार माँ की गालियाँ दी गईं—और वह भी माइक पर, खुलेआम, भीड़ के सामने। यह सिर्फ मोदी का अपमान नहीं है, बल्कि उन 140 करोड़ भारतीयों का अपमान है जिन्होंने लोकतांत्रिक प्रक्रिया से उन्हें प्रधानमंत्री चुना है।

गाली की राजनीति = दिवालिया राजनीति ,जब किसी दल या नेता के पास विचार न हों, दृष्टि न हो, और भविष्य की कोई ठोस योजना न हो—तो वह गाली-गलौज पर उतर आता है।
आज का विपक्ष यही कर रहा है। जनता को रोजगार, शिक्षा, विकास का कोई रोडमैप नहीं दिखा सकता, तो बस मंच से माँ-बहन की गालियाँ सुना रहा है।


"गांधी मीडिया" की चुप्पी,सोचिए, अगर यही गालियाँ भाजपा के किसी नेता ने विपक्ष के किसी बड़े चेहरे के लिए दी होतीं, तो आज टीवी स्टूडियो से लेकर अख़बारों के पहले पन्ने तक तूफ़ान मचा होता।
लेकिन यहाँ तो पूरा का पूरा “गांधी मीडिया” गूंगा-बहरा हो गया। यह वही मीडिया है जो एक फोटो या ट्वीट पर हफ़्तों का शोर मचाता है, पर प्रधानमंत्री को सार्वजनिक रूप से दी गई माँ की गालियों पर चुप्पी साधे बैठा है।

जनता के लिए सवाल,भारत की राजनीति किस दलदल में धकेली जा रही है? क्या विपक्ष गालियाँ देकर सत्ता में आएगा? क्या यही लोकतंत्र है—जहाँ विचार की जगह गाली और बहस की जगह अश्लीलता हो?

 सच यह है कि विपक्ष अब जनता का भरोसा जीतने की स्थिति में नहीं है। गालियाँ उनकी हताशा और निराशा का प्रतीक हैं।  और मीडिया की चुप्पी यह साबित करती है कि चौथा स्तंभ अब केवल एक एजेंडा-चालित खोखला ढाँचा बन चुका है।

भारत की जनता को यह तय करना होगा कि क्या वह राजनीति को इस गटर में गिरने देगी, या फिर गाली की राजनीति करने वालों को आईना दिखाकर लोकतंत्र की असली गरिमा बचाएगी।

 

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