विशेष सम्पादकीय: राजेंद्र नाथ तिवारी
कांग्रेस का इतिहास गांधी–नेहरू पर क्यों अटक गया?
कांग्रेस की राजनीति आज एक ऐसे मरीज़ की तरह है जिसका इतिहास वंशवाद के वेंटिलेटर पर टिका है।
पिछले 75 वर्षों में कांग्रेस ने पूरे राष्ट्र को यह समझाने की कोशिश की कि आज़ादी सिर्फ गांधी–नेहरू की “भेंट” थी। बाकी क्रांतिकारी, बाकी राष्ट्रनायक — सब “फुटनोट” भर हैं। यही कारण है कि जैसे ही मोदी लाल किले से वीर सावरकर का नाम लेते हैं, कांग्रेस का खून खौल उठता है।
कांग्रेस ने अपने इतिहास का दरवाज़ा बंद कर दिया है। उसमें न भगत सिंह के लिए जगह है, न सुभाष बोस के लिए, न ही सरदार पटेल या सावरकर के लिए। क्यों? क्योंकि अगर इन नामों को सही स्थान दिया गया तो कांग्रेस का वंश-आधारित मिथक ध्वस्त हो जाएगा।
विडंबना देखिए—
- कांग्रेस मुस्लिम लीग से समझौता करती है तो उसे “धर्मनिरपेक्ष रणनीति” कहती है।
- लेकिन संघ या सावरकर का नाम आते ही “सांप्रदायिकता” का नारा लगाने लगती है।
यानी मुस्लिम लीग के साथ खड़ा होना पवित्र, मगर राष्ट्रवादियों का नाम लेना अपराध!
सच्चाई यह है कि कांग्रेस अपने ही गढ़े हुए झूठ की कैदी है। वह स्वीकार नहीं कर सकती कि आज़ादी की लड़ाई बहुस्तरीय थी — उसमें क्रांतिकारी भी थे, समाज-सुधारक भी, राष्ट्रवादी संगठन भी। कांग्रेस ने पूरे इतिहास को गांधी–नेहरू के इर्द-गिर्द सीमित कर दिया क्योंकि वही उसकी राजनीतिक ऑक्सीजन है।
आज जब मोदी लाल किले से सावरकर की चर्चा करते हैं, संघ के योगदान की बात करते हैं, तब असल में कांग्रेस के झूठे आख्यान पर प्रहार होता है। यही कारण है कि कांग्रेस के नेताओं को ऐंठन होती है। उन्हें डर है कि अगर असली इतिहास सामने आ गया तो उनकी दुकानदारी खत्म हो जाएगी।
कांग्रेस की समस्या यही है— इतिहास उनके लिए राष्ट्र का आईना नहीं, बल्कि परिवार का आईना है।
और जब परिवारवाद का नकली आईना टूटता है, तब कांग्रेस को हर बार वही “पेट दर्द होता है