संपादकीय
त्रयंबक त्रिपाठी
“16 वर्ष बाद सत्य की विजय: भगवा को कलंकित करने का षड्यंत्र उजागर”
16 वर्षों की लंबी न्यायिक प्रक्रिया, अनगिनत आरोप, अपमान, शारीरिक-मानसिक प्रताड़ना और राजनीतिक प्रहारों के बाद आखिरकार वह दिन आ गया जब भारत की अदालत ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया कि सत्य चाहे जितना विलंबित हो, पराजित नहीं हो सकता। मालेगांव बम विस्फोट (2008) मामले में NIA कोर्ट ने साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित और अन्य को बाइज्जत बरी कर दिया। यह केवल कुछ व्यक्तियों को मिली राहत नहीं, बल्कि भारत के राष्ट्रवादी चेतना और सनातन संस्कृति पर लगे उस झूठे कलंक के ध्वंस का निर्णायक क्षण है जिसे “भगवा आतंकवाद” कहकर उछाला गया था।
भगवा को बदनाम करने का कुटिल प्रयास भारतीय परंपरा में भगवा वस्त्र त्याग, तपस्या और राष्ट्रसमर्पण का प्रतीक रहा है। किन्तु एक योजनाबद्ध प्रयास के तहत इसी भगवा को आतंकवाद से जोड़ने की साजिश रची गई। तत्कालीन कांग्रेस नेतृत्व द्वारा प्रयोजित जांच एजेंसियों ने ऐसा राजनीतिक माहौल तैयार किया जिसमें हिंदू प्रतीकों, संतों और राष्ट्रवादी संगठनों को संदेह की दृष्टि से देखा जाने लगा।एक महिला साध्वी पर न केवल शारीरिक यातनाएं, बल्कि चरित्रहनन के षड्यंत्र तक रचे गए। यदि उनके दिए गए साक्षात्कारों में वर्णित यातनाएं सत्य हैं, तो यह भारतीय लोकतंत्र के उस चेहरे को भी उजागर करता है जो सत्ता के लिए मूल्यों की बलि चढ़ाने से नहीं हिचकता।
न्याय ने पुनः विश्वास दिलाया NIA कोर्ट का फैसला उस राजनीतिक एजेंडे की विफलता है जिसमें तथाकथित “हिंदू आतंकवाद” शब्द को स्थापित करने की चेष्टा हुई थी। इस निर्णय से यह स्पष्ट हो गया कि न तो पर्याप्त सबूत थे और न ही निष्पक्ष जांच। इस निर्णय से यह भी स्थापित होता है कि भारत की न्यायिक प्रणाली, चाहे जितनी धीमी क्यों न हो, अंततः सत्य के साथ खड़ी होती है।
यह सिर्फ निर्णय नहीं, चेतावनी है यह फैसला केवल पूर्व आरोपियों के लिए राहत नहीं है। यह उन राजनीतिक शक्तियों के लिए चेतावनी है जो वोटबैंक की राजनीति के लिए धर्म, संस्कृति और समाज को विभाजित करती हैं।
अब प्रश्न यह है —क्या उन पुलिस अधिकारियों और नेताओं पर भी कार्रवाई होगी जिन्होंने झूठे आरोपों में निर्दोषों को फंसाया? क्या भारतीय लोकतंत्र में “माफ़ी” या “प्रायश्चित” जैसी कोई राजनीतिक नैतिकता शेष है?सीक्या मीडिया संस्थान जो वर्षों तक “भगवा आतंकवाद” का झूठा विमर्श चलाते रहे, अब आत्मावलोकन करेंगे?
हिन्दू समाज से संवाद का समय समाज को अब आत्ममंथन करना चाहिए —कि वह कब तक चुप रहेगा जब उसकी संत परंपरा, राष्ट्रवादी सेना अधिकारी, और संघ-संस्कृति को अपमानित किया जाता है?
क्या अब भी वोट डालते समय स्मृति कमजोर हो जाएगी?वोअब समय आ गया है कि भारत एक ऐसे राजनीतिक विमर्श की ओर बढ़े जो न संप्रदाय आधारित हो, न प्रतिशोध आधारित, बल्कि सत्य, शुचिता और राष्ट्रहित आधारित हो।
परिणति मालेगांव मामले का यह फैसला राजनीतिक साजिश की हार है और हिंदू समाज के आत्मसम्मान की पुनर्प्राप्ति। यह दिन न्याय का दिन है। यह दिन भगवा के पुनर्मर्यादित होने का दिन है। और यह दिन भारतीय लोकतंत्र के पुनः विश्वास अर्जन का दिन है। यतो धर्मस् ततो जय: