"घी में बहता प्रशासन, काजू-बादाम में डूबा जल संरक्षण!

 

"घी में बहता प्रशासन, काजू-बादाम में डूबा जल संरक्षण!"

"खाओ-पियो, सरकार का पैसा उड़ाओ, और फिर भाषण में बोलो – जल ही जीवन है!


शहडोल,मध्यप्रदेश

मध्य प्रदेश के शहडोल जिले में जल संरक्षण पर एक ऐतिहासिक कार्य हुआ है — ऐतिहासिक इसलिए नहीं कि जल बचा, बल्कि इसलिए कि अफसरों ने ऐसा 'घी' बहाया कि गंगा भी शर्मा जाए। जी हां! जहां जनता पानी के लिए कतार में है, वहीं जल संरक्षण कार्यक्रम में अफसर 2 किलो घी पी गए, 13 किलो काजू-बादाम चबा गए और ऊपर से 30 किलो नमकीन से 'पर्यावरणीय नमकीनता' बढ़ा दी।


सुनकर आपके मुंह में पानी आ गया? अफसोस, वो पानी पीने के लिए नहीं, अफसरों की मेहमाननवाजी की लागत सुनने के बाद गुस्से में आया है।


कार्यक्रम एक घंटे का था, मगर खुराक देखकर लगता है जैसे लोग जल संरक्षण नहीं, "जठर संरक्षण अभियान" में आए थे। अफसरों ने पेट को इतना भर लिया कि अब शायद पानी की जरूरत ही न पड़े। जल बचाने का इससे बेहतर तरीका क्या होगा?


बताया गया कि इस 'बौद्धिक भक्षण' में 24,000 रुपये खर्च हुए। अब आप सोचिए, जल संकट से जूझ रहे ग्रामीणों को दो बाल्टी पानी मिले न मिले, मगर अफसरों को पांच किलो शक्कर और छह किलो दूध ज़रूर मिलना चाहिए — वरना ज्ञान कैसे बरसेगा?


एक घंटे की बैठक में ही 13 किलो ड्राई फ्रूट चबाना कोई सामान्य बात नहीं, ये तो "राष्ट्रीय स्तर की चबाई" है। ऐसा कौशल तो ओलंपिक में भेजने लायक है। अफसरों के दांतों और पेट को ‘पद्म पुरस्कार’ मिलना चाहिए — और रसोइये को ‘भारतीय खजाना चूसने का सम्मान’!


अब इस घटना के बाद जल संरक्षण की परिभाषा बदल गई है। अब इसका मतलब है:

"खाओ-पियो, सरकार का पैसा उड़ाओ, और फिर भाषण में बोलो – जल ही जीवन है!"


इस घटना पर विपक्ष ने व्यंग्य किया: "भैंसों जैसा खा गए!" — पर शायद ये अपमान नहीं, सम्मान है। भैंसें तो कम से कम दूध भी देती हैं, ये अफसर सिर्फ बिल देते हैं।



---

 

निष्कर्ष:

शहडोल में जो हुआ, वह एक गंभीर प्रशासनिक बीमारी की हल्की सी झलक है। लेकिन व्यंग्य यही

Post a Comment

Previous Post Next Post

Contact Form