राजेंद्र नाथ तिवारी
कांग्रेस पाताल गामी पार्टी बन गई है,उसे वेल्टीनेटर के बजाय कठोर फैसलों की आवश्यकता आ पड़ी है,तय उसे करना होगा पार्टी चाहिए या बेटा.जाती हुई पार्टी से लेकर बेटा भी बचाइए और पार्टी भी.पर दिग्विजयों, खरगे से.
सर्व नाशे समुत्पने प् अर्धम त्यजती पंडित:
आज भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (कांग्रेस) अपने 140 साल के इतिहास में एक महत्वपूर्ण चौराहे पर खड़ी है। सवाल यह उठता है कि क्या उसे एक सक्षम नेता की जरूरत है, जो संगठन को नई दिशा दे सके, या फिर वह फिर से गांधी परिवार के किसी सदस्य (बेटे/बेटी) पर निर्भर रहना चाहती है। यह प्रश्न 2025 के भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में और भी प्रासंगिक हो गया है, जहां कांग्रेस को अपनी साख और संगठनात्मक ताकत को पुनर्जनन की आवश्यकता है।
गांधी परिवार का प्रभाव और चुनौतियां
गांधी परिवार—जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी, और अब राहुल गांधी—लंबे समय से कांग्रेस का चेहरा रहा है। सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने पिछले दो दशकों में पार्टी की कमान संभाली, लेकिन परिणाम निराशाजनक रहे हैं। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में पार्टी की हार, साथ ही हाल के राज्य चुनावों में कमजोर प्रदर्शन, यह दर्शाते हैं कि गांधी परिवार की लोकप्रियता और प्रभाव में कमी आई है। राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने कुछ मुद्दों पर मजबूत विपक्ष की भूमिका निभाई, लेकिन संगठनात्मक सुधार और क्षेत्रीय नेताओं को सशक्त करने में असफल रही। प्रियंका गांधी वाड्रा की एंट्री ने कुछ उत्साह जगाया, परंतु उनके प्रभाव का विस्तार सीमित रहा। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या गांधी परिवार का "बेटा" (या बेटी) ही कांग्रेस का भविष्य है, या यह परिवार अब बोझ बन गया है?
नए नेतृत्व की आवश्यकता
कई विश्लेषकों और पार्टी के भीतर के असंतुष्ट नेताओं का मानना है कि कांग्रेस को एक गैर-गांधी नेता की जरूरत है, जो युवा, ऊर्जावान, और क्षेत्रीय स्तर पर स्वीकार्य हो। नाम जैसे सचिन पायलट, प्रियंका चतुर्वेदी, या शशि थरूर सामने आए हैं, जो बौद्धिक और संगठनात्मक क्षमता रखते हैं। इन नेताओं के पास नई पीढ़ी से जुड़ने और पार्टी को वंशवाद की छवि से बाहर निकालने की संभावना है। 2025 में, जब देश टेक्नोलॉजी और वैश्विक पहचान की ओर बढ़ रहा है, कांग्रेस को एक ऐसे नेता की जरूरत है जो आधुनिक चुनौतियों का जवाब दे सके, न कि पारंपरिक वंशवाद पर टिका रहे।
राजनीतिक परिदृश्य और चुनौतियां
वर्तमान में, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का दबदबा और क्षेत्रीय दलों की बढ़ती ताकत कांग्रेस के लिए खतरा है। महाराष्ट्र और बिहार जैसे राज्यों में पार्टी की हार ने यह स्पष्ट कर दिया कि गांधी परिवार के भरोसे जीत संभव नहीं। प्रित्वीराज चव्हाण जैसे वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी के भीतर सुधार और गठबंधन की रणनीति पर जोर दिया है, लेकिन निर्णय लेने में देरी और केंद्रीकृत नेतृत्व ने प्रगति में बाधा डाली। दूसरी ओर, युवा नेताओं को आगे बढ़ाने से गांधी परिवार की अनिच्छा ने पार्टी में असंतोष बढ़ाया है, जैसा कि 2020 में 23 नेताओं के पत्र में देखा गया।
निष्कर्ष: एक कठिन निर्णय
चुनना तो एक को ही होगा—नेता या बेटा। यदि कांग्रेस गांधी परिवार पर टिकी रही, तो उसे वंशवाद की आलोचना और जनता के बदलते रुझान का सामना करना पड़ेगा। वहीं, एक नया नेता चुनने से पार्टी को नई ऊर्जा मिल सकती है, लेकिन यह जोखिम भरा है, क्योंकि गांधी परिवार का भावनात्मक जुड़ाव अभी भी पार्टी के वोट बैंक में गहरा है। 2025 का राजनीतिक परिदृश्य यह सुझाता है कि कांग्रेस को लंबे समय के लिए टिकाऊ बनने के लिए वंशवाद से मुक्त होकर एक सक्षम, समावेशी नेतृत्व अपनाना होगा। यह निर्णय पार्टी के भविष्य को तय करेगा—या तो पुनर्जनन, या धीरे-धीरे विलुप्ति।
तय कांग्रेस और कांग्रेसी को करना है वह जिंदा रहना चाहती है या इच्छा मृत्यु!!